देवी दुर्गा का 'विजय महोत्सव' और इसका सांस्कृतिक महत्व-2

Started by Atul Kaviraje, December 20, 2024, 10:23:57 PM

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Atul Kaviraje

देवी दुर्गा का 'विजय महोत्सव' और इसका सांस्कृतिक महत्व-
(The 'Victory Festival' of Goddess Durga and Its Cultural Significance)

3. 'विजय महोत्सव' के विभिन्न रूप और उनका सांस्कृतिक महत्व
विजय महोत्सव, या दुर्गा पूजा, का आयोजन मुख्य रूप से नवरात्रि के अंतिम दिन, दशहरे के दिन किया जाता है। यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है।

पश्चिम बंगाल और ओडिशा में दुर्गा पूजा: बंगाल और ओडिशा में दुर्गा पूजा विशेष रूप से धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ पर देवी दुर्गा की प्रतिमा बड़े धूमधाम से सजाई जाती है, और भक्तगण नृत्य, संगीत, और भजन के माध्यम से उनकी पूजा करते हैं। यहाँ पर सप्तशती का पाठ और द्वादश नामावली का भी आयोजन होता है। इस क्षेत्र में दुर्गा पूजा का महत्व अत्यधिक है, और यह त्योहार पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

उत्तर भारत में विजय दशमी: उत्तर भारत में यह पर्व विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद की प्रतिमाओं का दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से राम की लंका विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, लेकिन देवी दुर्गा के साथ जुड़ी हुई इस विजय को भी प्रमुख माना जाता है।

दक्षिण भारत में: दक्षिण भारत में इस दिन विशेष रूप से देवी दुर्गा के स्वरूपों की पूजा की जाती है और लोगों को नवरात्रि के दौरान उपवासी रहने और विशेष पूजा अर्चना करने की प्रेरणा दी जाती है। यहाँ पर माता की पूजा बहुत सादगी से की जाती है, लेकिन उनका आध्यात्मिक महत्व और सामाजिक प्रभाव उतना ही बड़ा होता है।

4. देवी दुर्गा का विजय महोत्सव और समाज पर प्रभाव
देवी दुर्गा का विजय महोत्सव केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाज के एक पूरे ताने-बाने के रूप में भी महत्वपूर्ण है। इस पर्व के माध्यम से समाज में निम्नलिखित बदलाव आते हैं:

समानता और न्याय का संदेश: विजय महोत्सव समाज को यह संदेश देता है कि हर व्यक्ति को समान सम्मान और न्याय मिलना चाहिए। देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर जैसे राक्षस को हराने का प्रतीक यह है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह समाज का शोषित वर्ग हो या शक्तिशाली वर्ग, उसे हमेशा सम्मान और न्याय मिलना चाहिए।

संस्कारों की पुन:स्थापना: यह पर्व लोगों को अपनी पुरानी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को याद दिलाता है। लोग इस दौरान अपने परिवार, समाज, और धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं और इसका पालन करने का प्रयास करते हैं।

समाज में शांति और भाईचारे का माहौल: दुर्गा पूजा के दौरान सभी वर्ग, समुदाय और जातियों के लोग एकत्र होते हैं और एक साथ मिलकर पूजा करते हैं। इस दौरान जाति-धर्म के भेद को भुलाकर एकजुट होने का संदेश दिया जाता है, जिससे समाज में शांति और भाईचारे का माहौल बनता है।

5. उदाहरण और निष्कर्ष
उदाहरण 1: एक छोटे से गाँव में जहां जातिवाद और असमानता फैली हुई थी, वहाँ पर दुर्गा पूजा के आयोजन ने सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। लोग अपने भेदभाव को भुलाकर पूजा में शामिल हुए और एकजुट होकर समाज में समरसता का माहौल पैदा किया।

उदाहरण 2: एक शहर में जहाँ धार्मिक भेदभाव था, वहाँ दुर्गा पूजा के दौरान हर धर्म और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर पूजा करने आए और इस पर्व ने उन्हें एकजुट करने का काम किया। इससे समाज में भाईचारे और आपसी सम्मान का विकास हुआ।

निष्कर्ष में, देवी दुर्गा का विजय महोत्सव न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सांस्कृतिक, सामाजिक और मानसिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्व है। यह पर्व समाज में बदलाव, एकता, समानता और शांति की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। देवी दुर्गा की पूजा और उनके विजय महोत्सव का संदेश यह है कि अच्छाई की हमेशा जीत होती है और हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानते हुए समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-20.12.2024-शुक्रवार.
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