"पहाड़ के ऊपर आकाशगंगा"

Started by Atul Kaviraje, December 20, 2024, 11:56:11 PM

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Atul Kaviraje

शुभ रात्रि, शुक्रवार मुबारक हो

"पहाड़ के ऊपर आकाशगंगा"

जब सूर्य की किरणें ढलने लगती हैं,
और दिन का शोर धीरे-धीरे चुप हो जाता है,
तब एक अद्भुत दृश्य, शांत और गहरा,
पहाड़ के शिखर से दिखता है आकाशगंगा का नजारा।

आसमान में अनगिनत तारे टिमटिमाते हैं,
जैसे कोई देवदूत अपनी राह पर चलते हैं,
आकाशगंगा की धारा, सफेद और चमकीली,
सिर्फ एक दृश्य नहीं, एक कथा है पुरानी, एक यादें प्यारी।

पहाड़ की ऊंचाई पर खड़ा, मैं निहारता हूं उसे,
संगम है यह धरती और आकाश का,
जहां हर तारा अपने आप में एक सपना बन जाता है,
आकाशगंगा के बीचों-बीच, एक रहस्य पलता है।

चाँद की हल्की सी रौशनी, तारे की झिलमिलाहट,
सब कुछ एक नई कहानी गढ़ता है,
क्या हम भी इसी तरह आकाश में कहीं,
किसी तारे के चमकने के बीच छिपे हुए हैं?

पहाड़ की चुप्प में बसी यह आकाशगंगा,
मन के अनकहे सवालों को आकाश से जोड़ देती है,
यह नक्षत्रमाला हमारी ज़िंदगी की तरह,
अपरिमित और अनजान, मगर सुंदर और रहस्यमयी।

आकाशगंगा के पार, कहीं एक और दुनिया होगी,
जहां हम नहीं, फिर भी एक हिस्सा होंगे,
ये आकाश, ये तारे, यह धारा, सब एक हैं,
हम सभी तो उसी आकाश का हिस्सा हैं।

चाहे समय कितना भी बदल जाए,
यह आकाशगंगा अपनी रौशनी नहीं खोती,
हर रात, हर तारा, उसी सजे हुए आकाश में,
हमेशा अपनी जगह पाता है, बिना किसी शोर-गुल के।

पहाड़ की चोटी से जब मैं देखता हूं,
तो लगता है जैसे मैं खुद एक तारा बन गया हूं,
आकाशगंगा की विशालता में खो जाता हूं,
एक क़दम और बढ़ा, तो शायद मैं उस धारा का हिस्सा बन जाऊं।

आकाशगंगा की वह रेशमी धारा,
जो हमें इंसानियत की याद दिलाती है,
सब कुछ कितना छोटा लगता है,
जब हम आकाश के विशालता को समझते हैं।

हर तारा अपनी राह पर चलता है,
जैसे हमारी ज़िंदगी भी अपनी राह पर चलती है,
पर क्या फर्क है उस तारे और हम में,
जब हम सब एक ही आकाश के हिस्से हैं, और एक ही रोशनी में चमकते हैं।

आकाशगंगा के ऊपर, पहाड़ के शिखर पर,
मन में अजीब सा सुकून होता है,
सिर्फ एक तारा, एक चाँद, एक धारा,
मुझे महसूस कराती है कि हम सब एक हैं, और यही है जीवन का प्यारा।

--अतुल परब
--दिनांक-20.12.2024-शुक्रवार.
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