एक शांत झील पर दोपहर की नाव की सवारी"

Started by Atul Kaviraje, December 21, 2024, 07:40:00 PM

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Atul Kaviraje

शुभ दोपहर, शनिवार मुबारक हो

"एक शांत झील पर दोपहर की नाव की सवारी"

दोपहर की धूप में चमकता आकाश,
नर्म हलकी हवा, जैसे दिल में विश्राम।
शांत झील की पानी में बसी, गहरी सुकून की बात,
जैसे हर लहर कह रही हो, तुम हो यहाँ, यही है हर रात।

नाव धीरे-धीरे तैरती है, झील के संग,
हर पल में है एक कविता, जो धीरे से रंग।
पानी की सतह पर सूर्य की किरणें खेलें,
जैसे सोने की लकीरें, झील की चुप्प में झिलमिलाएँ।

हर लहर में बसी, कुछ न कुछ गुमनाम सी कहानी,
एक पुराना गीत, जो कभी किसी ने गाया था जवानी।
नाव का डोलना, और पानी का हलका स्पर्श,
मानो समय भी ठहर गया हो, और हर विचार हो साक्षात्कार।

आसपास के पेड़, हल्के-हल्के हिलते हैं,
वो भी जैसे इस शांति में खोते हैं।
चिरपिंग की आवाज़, नदियों का संगीत,
हर पल कुछ नया, दिल को देते एक मधुर गीत।

आकाश में बादल, कभी कभी घेर लें,
पर फिर भी ये झील, अपनी शांति से हंसें।
नाव की सवारी में बसी है एक अद्भुत दुनिया,
सिर्फ एक पल में पूरी हो जाती है, जैसे कोई पुरानी शेरनी की कहानी।

तलवों के नीचे ठंडक, और आँखों के सामने दृश्य,
झील की हरीतिमा, और आसमान की नीली लकीरें सजी।
यह नाव की सवारी एक दिन की यात्रा नहीं,
यह एक जीवन का सफर, जो बताता है हमें, शांति में बसी है संजीवनी।

पानी की लहरों में बसी है लहराती आवाज़,
हर लहर के साथ मन की उलझनें भी पिघल जाएं आज।
नाव के साथ तैरते-तैरते न जाने कितने राज़ खुलते हैं,
मन के भीतर छुपी शांति के कई रूप उभरते हैं।

समय का पल-पल धीरे-धीरे गुजरता है,
जैसे एक सुंदर स्वप्न अपनी ओर खींचता है।
यह झील, यह नाव, यह शांति का मोती,
सिर्फ यह कुछ नहीं, यह है जीवन की सबसे प्यारी छांव, इसकी बातें।

अब नाव लौटने को है, लेकिन मन में एक विचार,
यह शांति और शीतलता, कभी खोने न पाए, हर बार।
झील की शांत लहरों में, बस जाए एक अद्भुत आवाज,
जो दिल से कहे, "सच में, शांति में बसी है सच्ची यात्रा का राज़।"

—यह कविता एक शांत झील पर नाव की सवारी का अनुभव है, जो हमें जीवन की सुकून और शांति को समझने का एक अवसर प्रदान करती है।

--अतुल परब
--दिनांक-21.12.2024-शनिवार.
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