"पौधों और कॉफी के साथ आरामदायक पोर्च"

Started by Atul Kaviraje, December 23, 2024, 09:32:14 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, सोमवार मुबारक हो

"पौधों और कॉफी के साथ आरामदायक पोर्च"

एक नर्म सुबह, चुपचाप और शांति से,
पॉर्च खड़ा है, समय से परे,
बाहर की दुनिया में हलचल मच रही है,
लेकिन यहाँ, इस ठंडी जगह, एक शांति बसी है।

सूरज की किरणें पेड़ों की शाखों से छनकर,
मुलायम तरीके से फर्श पर बिखरी हैं,
वह रतन की कुर्सी, जिस पर मैं बैठा हूँ,
इस छोटे से कोने में, जहां सब कुछ शांत है।

हवा हल्की, न तो गर्म और न ही ठंडी,
प्रत्येक सांस में ताजगी और सुकून,
वह फुसफुसाती हुई आवाज, जैसे कोई ग़म,
हमें बताने की कोशिश कर रहा हो कुछ।

पौधे हरियाली में लहराते हैं,
उनकी पत्तियाँ हवा में नृत्य करती हैं,
मिट्टी से निकलती उनकी खुशबू,
जैसे एक सुखद अहसास, हर अंग में समाई हो।

गुड़हल और चमेली के फूलों की महक,
सर्दी में गर्मी का अहसास कराती है,
कभी लाल, कभी पीले, कभी सफेद,
हर रंग में एक नई कहानी बसाई जाती है।

कॉफी की कप में गहरी काली तरल,
जो मेरे हाथों में गर्मी से सुलझी है,
उसे धीरे-धीरे चाय की तरह सिप करता हूँ,
हर घूंट में बस एक नयी राहत बसी है।

वाफ़ की घुमावदार लकीरें, हवा में घुलती हैं,
जैसे कोई प्रिय मित्र पास बैठा हो,
प्याली का किनारा, मेरे होंठों से लगते ही,
मुझे देती है एक परिचित प्यार का अहसास।

चिरपिंग बर्ड्स की आवाज़ें बगिया में गूंजती हैं,
एक कोयल क़ल से आकर मचाती है,
चिड़ियाँ यहाँ वहां उड़ती जाती हैं,
सपनों जैसी फिजा में सब कुछ रंगीन हो जाता है।

घड़ी की टिक-टिक धीमी हो जाती है,
क्योंकि इस क्षण में समय का कोई हिसाब नहीं,
चरणों की आवाज़ धीमी, मन की धड़कन सधी,
बस इन लम्हों में खो जाने की कोशिश की जाती है।

यह पोर्च, यह पौधे, यह प्याली,
सब मिलकर जीवन की सादगी को बयां करते हैं,
हर एक घूंट में, हर एक पौधे की मुस्कान में,
एक गहरी शांति की छाप बनती है।

यह छोटे छोटे पल, बस यहीं रहते हैं,
हमारे दिलों में बसते, आराम की तरह,
इस आरामदायक पोर्च में, जहां सब कुछ सुलझा है,
जहां कोई चिंता नहीं, केवल प्रेम और संतुलन है।

जैसे यह क्षण सवेरा हो, बस यही गुनगुनाता है,
इस छोटी सी जगह में, दिल पूरी दुनिया पा जाता है।

--अतुल परब
--दिनांक-23.12.2024-सोमवार.
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