श्रीविठोबा और भक्तिरत्न संत तुकाराम-1

Started by Atul Kaviraje, December 26, 2024, 11:33:19 AM

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Atul Kaviraje

श्रीविठोबा और भक्तिरत्न संत तुकाराम (Lord Vitthal and the Devotee-Saint Tukaram)-

श्रीविठोबा, जिन्हें पंढरपूर का विठोबा या पंढरपूर के विठोलेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, भगवान विष्णु का एक प्रमुख रूप हैं। वे महाराष्ट्र के विशेष रूप से प्रसिद्ध देवता हैं, जिनकी भक्ति पूरे भारत में व्यापक रूप से फैली हुई है। पंढरपूर में स्थित श्रीविठोबा का मंदिर, जो उनकी उपासना का प्रमुख स्थल है, लाखों भक्तों के लिए आध्यात्मिक स्थल और शक्ति का स्रोत है। भगवान विठोबा की उपासना से संबंधित भक्ति का मार्ग, सरलता, आस्था, प्रेम और सच्चे समर्पण का प्रतीक है।

संत तुकाराम, जिनका जीवन विठोबा की भक्ति में समर्पित था, उन भारतीय संतों में से एक थे, जिन्होंने अपने भक्ति साहित्य और अभिव्यक्तियों के माध्यम से समाज को प्रेम और भक्ति का वास्तविक रूप दिखाया। उन्होंने अपने अनुभवों और भक्ति के संदेशों को भजन, अभंग और काव्य रचनाओं के रूप में प्रस्तुत किया, जिन्हें आज भी बड़े सम्मान से पढ़ा जाता है और गाया जाता है। तुकाराम के भजनों में भगवान विठोबा के प्रति अपार प्रेम, श्रद्धा और समर्पण व्यक्त होता है।

1. श्रीविठोबा का स्वरूप और महिमा
श्रीविठोबा की उपासना विशेष रूप से महाराष्ट्र में की जाती है, और वे न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे भारत में एक अद्वितीय भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। उनका रूप एक बालक के रूप में होता है, जो अपनी पांवों में गहने पहनकर और पंखुड़ी के आसन पर बैठा होता है। उनके मंदिर का प्रमुख स्थल पंढरपूर है, जो सालभर लाखों भक्तों से भरा रहता है।

विठोबा का स्वरूप किसी भी भेदभाव से परे है और उनकी उपासना में जाति, धर्म, रंग या पंथ का कोई भेदभाव नहीं है। यही कारण है कि विठोबा की भक्ति ने भारतीय समाज में सामाजिक असमानता और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई और सभी को समान रूप से भगवान की भक्ति में शामिल किया।

2. भक्तिरत्न संत तुकाराम का जीवन और भक्ति मार्ग
संत तुकाराम का जन्म 1608 के आसपास महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव, देहण में हुआ था। वे एक अत्यंत पवित्र और सरल जीवन जीते हुए भगवान विठोबा के प्रति अपनी भक्ति में पूरी तरह समर्पित थे। तुकाराम ने न केवल अपने जीवन में भगवान विठोबा की भक्ति की, बल्कि उन्होंने समाज में भक्ति के महत्व को भी समझाया।

तुकाराम का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी भक्ति से समझौता नहीं किया। उनका विश्वास था कि केवल भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा और प्रेम से ही जीवन का उद्देश्य पूरा किया जा सकता है। तुकाराम के भजन और अभंग न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाते हैं, बल्कि ये सामाजिक जागरण का भी माध्यम बने।

3. विठोबा के प्रति तुकाराम की भक्ति
तुकाराम की भक्ति भगवान विठोबा के प्रति अत्यधिक समर्पित थी। उन्होंने अपने भजनों और अभंगों में भगवान विठोबा के अद्वितीय रूप, उनके गुण और उनके प्रति प्रेम को व्यक्त किया। तुकाराम का विश्वास था कि भगवान विठोबा केवल एक देवता नहीं हैं, बल्कि वे मानवता के उद्धारक हैं। उनका भक्ति मार्ग पूरी तरह से निःस्वार्थ और प्रेमपूर्ण था, जिसमें किसी प्रकार का कोई आडंबर या दिखावा नहीं था।

तुकाराम के भजनों में विठोबा का स्मरण, उनके प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास को व्यक्त किया जाता था। उनके भजन सुनने से भक्तों के मन को शांति और समर्पण की भावना मिलती थी। तुकाराम का यह कहना था कि भगवान की भक्ति ही जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है।

उदाहरण: तुकाराम का एक प्रसिद्ध अभंग है:

"तुका म्हणे, विठोबा तुझ्या पायांच्या वारी जाऊं, घरी निघालो आहे, खेळ करु नको जाऊं"
(तुकाराम कहते हैं, हे विठोबा! मैं तुम्हारे चरणों की वारी करने जा रहा हूँ, अब मुझे घर लौटने दो, मुझे खेल खेलने की कोई इच्छा नहीं है।)

इस अभंग में तुकाराम विठोबा के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त कर रहे हैं और यह दर्शा रहे हैं कि भगवान के चरणों में समर्पित होकर ही जीवन का असली आनंद प्राप्त होता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-25.12.2024-बुधवार.
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