देवी दुर्गा की 'विजय दशमी' और धार्मिक महत्व-1

Started by Atul Kaviraje, December 27, 2024, 10:43:47 PM

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Atul Kaviraje

देवी दुर्गा की 'विजय दशमी' और धार्मिक महत्व-

विजय दशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा और उनके द्वारा असुरों के विनाश की विजय का प्रतीक है। विजय दशमी का त्योहार भारत में विशेष रूप से बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और यह न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनता है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, जो असुरों पर विजय प्राप्त करने के बाद धर्म की रक्षा करती हैं। इस लेख में हम देवी दुर्गा की विजय दशमी के धार्मिक महत्व, इसके ऐतिहासिक संदर्भ, पूजा विधि और इससे जुड़े प्रतीकों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

देवी दुर्गा की विजय दशमी और उसका धार्मिक महत्व

1. देवी दुर्गा की पूजा और विजय
विजय दशमी का पर्व देवी दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप से जुड़ा हुआ है। महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। वह इतनी शक्तिशाली था कि कोई भी देवता या देवी उसके सामने नहीं टिक पा रहे थे। अंततः देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा को उत्पन्न किया। देवी दुर्गा ने महिषासुर से भीषण युद्ध किया और उसे पराजित कर धर्म की पुनर्स्थापना की।

विजय दशमी उस दिन को चिह्नित करती है जब देवी दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। यह दिन धर्म की विजय, सत्य की विजय और अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व न केवल असुरों के वध की खुशी का उत्सव है, बल्कि यह आत्मिक और मानसिक विजय की ओर भी एक संकेत है। इस दिन भक्त देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ताकि वे जीवन की कठिनाइयों और विघ्नों से उबर सकें और अपने मार्ग पर विजयी हो सकें।

उदाहरण: इस दिन का त्यौहार विशेष रूप से नवरात्रि के समापन पर मनाया जाता है, जब पूरे नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और दसवें दिन (विजय दशमी) उनके विजय के प्रतीक के रूप में उनकी आराधना की जाती है।

2. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
विजय दशमी का पर्व भारतीय समाज में धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व केवल देवी दुर्गा की विजय का ही नहीं, बल्कि जीवन के सभी क्षेत्र में संघर्ष और परिश्रम के बाद सफलता पाने का प्रतीक भी है।

यह दिन हमें यह सिखाता है कि जीवन में कठिनाइयाँ और समस्याएँ आना स्वाभाविक हैं, लेकिन यदि हम साहस, धैर्य और ईश्वर पर विश्वास रखें तो हम किसी भी संकट से उबर सकते हैं। विजय दशमी का पर्व हमें अपने भीतर के राक्षसों (अहम, क्रोध, भय, और लोभ) पर विजय पाने के लिए प्रेरित करता है। देवी दुर्गा के इस दिन को जीतने से यह सिद्ध होता है कि सच्चाई और धर्म हमेशा जीतते हैं, चाहे वे किसी भी परिस्थिति में हों।

उदाहरण: विजय दशमी पर कुछ स्थानों पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई के प्रतीक माने जाते हैं। यह दृश्य यह दर्शाता है कि बुराई और अधर्म का नाश हमेशा सत्य और धर्म की विजय के बाद होता है।

3. विजय दशमी और शस्त्र पूजा
विजय दशमी का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है शस्त्र पूजा। इस दिन विशेष रूप से शस्त्रों की पूजा की जाती है। व्यापारी वर्ग अपने व्यापारिक उपकरणों की पूजा करते हैं, और युद्धकला के विशेषज्ञ (जैसे सैनिक, शस्त्रधारी) अपने अस्तबल और शस्त्रों की पूजा करते हैं। इस दिन को भारतीय समाज में शास्त्रों और विज्ञान के प्रति सम्मान और श्रद्धा के रूप में देखा जाता है।

उदाहरण: कई स्थानों पर व्यापारी और व्यवसायी वर्ग अपने दुकान और व्यापारिक उपकरणों की पूजा करके देवी दुर्गा से समृद्धि और व्यापार में सफलता की कामना करते हैं। यह दिन उन्हें अपने कर्मों में सफलता पाने की प्रेरणा देता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-27.12.2024-शुक्रवार.
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