"धुंधले सूर्योदय के साथ पर्वतीय पगडंडियाँ"

Started by Atul Kaviraje, December 29, 2024, 09:35:05 AM

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Atul Kaviraje

सुप्रभात, रविवार मुबारक हो

"धुंधले सूर्योदय के साथ पर्वतीय पगडंडियाँ"

धुंध में लिपटी सुबह की पहली किरण, 🌫�
पर्वतों की ऊँचाई, जैसे शांत हो कोई सन्नाटा, हर ओर चुप। ⛰️
सूरज की रोशनी धीरे-धीरे बिखरती है, 🌞
पगडंडी पर मेरे कदम बढ़ते हैं, हर कदम में एक नई शुरुआत। 👣

विंध्याचल की घाटियाँ, गहरी और रहस्यमयी, 🌄
जैसे धरती की छाती से निकलती हो कुछ पुरानी यादें,
आसमां में बादल बुनते हैं सफेद सुतली, ☁️
और मैं चलता हूँ, पर्वत की संजीवनी से, गहरी धुंध में, निरंतर। 🌫�

चढ़ाई कठिन, पर मन में एक उमंग,
पगडंडी के मोड़ों में बसी कुछ अनकही बातें। 🛤�
हर कदम पर, धुंध में खो जाती राह,
फिर भी अंदर एक अदृश्य रोशनी की राह। ✨

चंदन के पेड़, कुछ दूर खड़े हैं, 🌿
घनी छांव में बसी हुई शांति की साँस, 🌬�
हर सापेक्षता, हर श्वास में घुली हुई खुशबू, 🍃
सूर्योदय के साथ लहराती है पर्वतीय हवा। 🌬�

पगडंडी पर चलते हुए, शांति और डर का सम्मिलन,
सुरम्य दृश्य, चुपचाप बदलते हैं। 🌅
सूरज की किरण, धीरे-धीरे पर्वतों को रंग देती है,
और धुंध में, कुछ नये रास्ते, कुछ नये सपने दिखते हैं। 🌈

हर मोड़ पर, हर पल में जीवन की नई कहानी, 📖
यहां की हवा, यहां का आकाश, सब कुछ बहुत अजीब सा लगता है।
लेकिन इस यात्रा में कुछ खास है, जो दिल को सुकून देती है, ❤️
धुंधले सूर्योदय के साथ पगडंडियाँ, जो हमें खुद से मिला देती हैं। 🤝

सफर न कभी खत्म होता है, न कभी रुकता है,
पगडंडियाँ चलती जाती हैं, और हम साथ-साथ बढ़ते जाते हैं। 🏞�
मंजिल तो दूर है, लेकिन इस रास्ते पर हर कदम पर एक नई उम्मीद है,
धुंधले सूर्योदय के साथ पर्वतीय पगडंडियाँ, हमें जीवन का असली अर्थ दिखाती हैं। 🌅

कविता में प्रतीक और इमोजी का उपयोग:

🌫� (धुंध)
⛰️ (पर्वत)
🌞 (सूर्य)
👣 (पगडंडी पर कदम)
🌄 (पर्वतीय दृश्य)
☁️ (बादल)
🛤� (पगडंडी)
✨ (रोशनी)
🌿 (चंदन के पेड़)
🌬� (हवा)
🍃 (प्राकृतिक गंध)
🌅 (सूर्योदय)
🌈 (सपने, नए रास्ते)
📖 (कहानी)
❤️ (दिल से सुकून)
🏞� (यात्रा और रास्ते)

     यह कविता एक यात्रा का प्रतीक है, जहां हर कदम पर न केवल प्राकृतिक सौंदर्य बल्कि जीवन की गहरी सच्चाई और शांति छिपी हुई है। धुंध और सूर्योदय के बीच यह यात्रा हमारे भीतर की रोशनी और उन्नति को उजागर करती है। पगडंडियाँ जो हमें कहीं और नहीं, बल्कि खुद के भीतर ले जाती हैं, हमें यह समझाने की कोशिश करती हैं कि हर यात्रा, चाहे वह कितनी भी कठिन हो, अपनी जगह पर एक अमूल्य अनुभव है।

--अतुल परब
--दिनांक-29.12.2024-रविवार.
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