सिद्धार्थ गौतम का त्याग और तपस्या- (भक्तिपूर्ण काव्य)-

Started by Atul Kaviraje, January 22, 2025, 11:25:30 PM

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Atul Kaviraje

सिद्धार्थ गौतम का त्याग और तपस्या-
(भक्तिपूर्ण काव्य)-

सिद्धार्थ गौतम का रूप था निराकार,
त्याग और तपस्या में बसा था संसार।
धन-वैभव और ऐश्वर्य छोड़ दिया,
तप की राह पर कदम बढ़ा दिया।

🌄🛕✨
महल में बैठकर चित्त न था शांत,
दुख और दर्द ने किया था उसे संतप्त।
राजमहल में सुख का मिलन नहीं था,
मन का कलह हमेशा सताता था। 💭👑

एक दिन बैठा था वह सोच में गहरी,
सांसारिक मोह-माया से वह था थकी।
त्याग की राह उसने अपनाई,
सच्चाई की ओर, उसने दृष्टि बढ़ाई। 🌿💫

🌄
संस्कारों की बंदी कंठ से मुक्त,
हर बंधन से वह हुआ विक्षिप्त।
ज्ञान की जिज्ञासा ने जगा दिया,
सिद्धार्थ ने ध्यान से जगा दिया। 🧘�♂️🌟

तप के माध्यम से, आत्मा में रंग आया,
आत्मज्ञान का सूरज वहां से लहराया।
आखिरकार बोधि वृक्ष के नीचे,
सिद्धार्थ ने पाया सत्य का अद्भुत समीकरण। 🌳💡

✋👣
त्याग की शक्ति में समाहित था सच,
संघर्ष और तपस्या का पाया था फल।
धन, वैभव और महल को छोड़ दिया,
नया रास्ता, आत्मा ने चुना दिया। 🏞�💭

समाज के दुखों को समझा उसने,
जीवन की कठिनाईयों को जान लिया।
सिद्धार्थ गौतम ने दिया संदेश सच्चा,
"शांति में ही है मोक्ष का रास्ता।" 🕊�🌼

कभी नहीं रुका था वह तपस्वी,
हर कठिनाई को किया स्वीकार।
हंसते-हंसते समर्पित हुआ ज्ञान में,
भगवान बुद्ध का रूप पाया, शरण में। 💖🙏

🌟 कविता का अर्थ 🌟
यह कविता सिद्धार्थ गौतम की तपस्या और त्याग की गाथा को प्रस्तुत करती है। उन्होंने भोग-विलास की पूरी दुनिया को छोड़कर, सत्य और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए कठिन तप किया। बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर उन्हें बोध मिला और वे बुद्ध बन गए। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि जब हम संसारिक सुखों को त्याग कर अपनी आंतरिक शांति की तलाश करते हैं, तो हमें जीवन का सर्वोत्तम सत्य मिल सकता है। उनके जीवन के संघर्ष, त्याग और तपस्या ने दुनिया को यह सिखाया कि सच्ची शांति भीतर से आती है, न कि बाहरी संसार से।

--अतुल परब
--दिनांक-22.01.2025-बुधवार.
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