"बगीचे में झूले पर दोपहर की झपकी"-2

Started by Atul Kaviraje, January 23, 2025, 07:46:53 PM

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Atul Kaviraje

शुभ दोपहर, शुभ गुरुवार मुबारक हो

"बगीचे में झूले पर दोपहर की झपकी"

बगीचे में, इतना शांत और स्थिर,
एक झूला कोमल रोमांच के साथ झूमता है।
सूरज की किरणें कोमल आलिंगन में नीचे आती हैं,
जैसे-जैसे इस शांतिपूर्ण स्थान में समय धीमा होता जाता है। 🌞🌿

मैं एक शांतिपूर्ण आह के साथ वापस लेट जाता हूँ,
बादलों को आलस से बहते हुए देखता हूँ।
मेरे आस-पास की दुनिया बहुत करीब लगती है,
फिर भी मेरे दिल में, सब कुछ स्पष्ट है। ☁️💭

पक्षी अपनी मधुर धुन गा रहे हैं,
बारिश में एक सुकून देने वाली लय।
पत्ते नाच रहे हैं, एक कोमल हवा,
पेड़ों के बीच फुसफुसाती कहानियाँ। 🌳🎶

मेरी त्वचा पर सूरज की गर्मी,
जैसे ही मैं अपनी आँखें बंद करता हूँ, शांति शुरू होती है।
एक झपकी इतनी शांत, इतनी नरम, इतनी गहरी,
बगीचे की बाहों में, मैं धीरे से सोता हूँ। 😴💤

फूलों की खुशबू हवा में भर जाती है,
कोई भी जगह इससे ज़्यादा परिपूर्ण नहीं है, कोई भी तुलना नहीं कर सकता।
इस पल में, मैं अपना आनंद पाता हूँ,
प्रकृति के प्यार भरे चुंबन में लिपटा हुआ। 🌸💚

अर्थ:
यह कविता प्रकृति से घिरे झूले में दोपहर की झपकी की शांति और आराम को दर्शाती है। यह पल की शांति, कोमल हवा और पर्यावरण के साथ सामंजस्य में होने की शांत खुशी को उजागर करती है।

प्रतीक और इमोजी: 🌞🌿☁️💭🌳🎶😴💤🌸💚

--अतुल परब
--दिनांक-23.01.2025-गुरुवार.
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