"लकड़ी की मेज़ पर ताज़े चुने हुए फल"-2

Started by Atul Kaviraje, January 26, 2025, 09:42:03 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

शुभ दोपहर, रविवार मुबारक हो

"लकड़ी की मेज़ पर ताज़े चुने हुए फल"

बगीचे के पेड़ों से ताज़े चुने हुए,
फलों की भरमार, बहुत मीठे, बहुत मुफ़्त।
रसदार आड़ू, चमकीले सेब,
रंगों का इंद्रधनुष, शुद्ध आनंद। 🍑🍏🍇

मेज़ गर्म है, लकड़ी बहुत सच्ची है,
सूरज की रोशनी को प्रतिबिंबित करती हुई, नरम और नई।
प्रत्येक फल एक खजाना है, पका हुआ और सुंदर,
प्रकृति के स्पर्श के साथ, तुलना से परे। 🍓🍉🍍

गर्मियों की खुशबू हवा में भर जाती है,
एक मिठास जो तुलना से परे है।
हर निवाले में जीवन का स्वाद,
पृथ्वी से एक उपहार, एक शुद्ध आनंद। 🌞🍒🍊

हाथों में हाथ डालकर, हम इस दावत को साझा करते हैं,
हर स्वाद के साथ, जीवन पूर्ण लगता है।
फसल की खुशी, इतनी सरल, इतनी शुद्ध,
खुशी का एक पल, इतना सुरक्षित। 🌳💫💚

जब हम दिलों में चमक के साथ बैठते हैं,
हम जो फल बोते हैं उसके लिए आभारी होते हैं।
इस लकड़ी की मेज़ पर, प्यार मिलता है,
हर निवाले में, खुशी गूंजती है। 🍏💖🍓

अर्थ:
यह कविता प्रकृति से चुने गए और दूसरों के साथ साझा किए गए ताजे फलों की खुशी का जश्न मनाती है। यह जीवन में सरल सुखों, पृथ्वी से जुड़ाव और साथ के क्षणों में मिलने वाली खुशी को उजागर करती है।

प्रतीक और इमोजी: 🍑🍏🍇🍓🍉🍍🌞🍒🍊🌳💫💚

--अतुल परब
--दिनांक-26.01.2025-रविवार.
===========================================