27 जनवरी, 2025 – मेरू त्रयोदशी: जैन धर्म का विशेष पर्व-

Started by Atul Kaviraje, January 27, 2025, 11:02:30 PM

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Atul Kaviraje

मेरू त्रयोदशी-जैन-

27 जनवरी, 2025 – मेरू त्रयोदशी: जैन धर्म का विशेष पर्व-

मेरू त्रयोदशी का महत्व:

"मेरू त्रयोदशी" जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जिसे विशेष रूप से जैन समुदाय द्वारा श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। यह पर्व प्रतिवर्ष की तेरहवीं तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर माघ मास में पड़ती है। मेरू त्रयोदशी के दिन जैन भक्त विशेष रूप से तीर्थंकरों की पूजा, तप, ध्यान, उपवासी व्रत और तपस्या करते हैं। यह दिन उनके आत्मशुद्धि के लिए, पापों के नाश के लिए, और पुण्य की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

मेरू त्रयोदशी का धार्मिक महत्व:

मेरू त्रयोदशी का नाम "मेरू" पर्वत से जुड़ा हुआ है, जो हिंदू और जैन धर्म में एक पवित्र स्थान माना जाता है। जैन धर्म में यह पर्व विशेष रूप से आत्मशुद्धि और साधना के लिए समर्पित होता है। इस दिन विशेष रूप से तीर्थंकरों के आदर्शों का पालन करने, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के व्रत लेने का महत्व होता है। जैन धर्म में पवित्रता और तपस्या का महत्व सर्वोपरि है, और मेरू त्रयोदशी इस तपस्या और साधना के सर्वोत्तम अवसर के रूप में देखा जाता है।

इस दिन को जैन भक्त भगवान आदिनाथ, भगवान महावीर और अन्य तीर्थंकरों की पूजा करते हुए उनके मार्गदर्शन के अनुरूप जीवन जीने का संकल्प लेते हैं। उनका उद्देश्य संसारिक सुखों से परे जाकर आत्मा के शुद्धिकरण और अंतिम मोक्ष की ओर अग्रसर होना होता है।

मेरू त्रयोदशी का आचार:

मेरू त्रयोदशी के दिन जैन भक्त उपवास करते हैं, और उपवासी रहकर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन विशेष रूप से पंचैतिक तप (पाँच प्रकार के व्रत) किए जाते हैं, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह का पालन किया जाता है। इसके अलावा, जैन धर्म में इस दिन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की विशेष पूजा की जाती है, जिसमें शांति और आत्मशुद्धि की प्रार्थना की जाती है।

मेरू त्रयोदशी के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें:

उपवास: इस दिन उपवास रखने से शरीर को शुद्धि मिलती है और आत्मा की पवित्रता बढ़ती है।
पाँच व्रतों का पालन: अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, और अस्तेय का पालन करना इस दिन के मुख्य व्रत होते हैं।
तीर्थंकरों की पूजा: इस दिन भगवान आदिनाथ, महावीर और अन्य तीर्थंकरों की पूजा अर्चना करके उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।
ध्यान और साधना: इस दिन विशेष ध्यान और साधना की जाती है, जिससे आत्मा के भीतर की शांति और स्थिरता बढ़ती है।
संपूर्ण तृष्णा का त्याग: इस दिन जैन भक्त अपनी सभी संसारिक तृष्णाओं का त्याग करके केवल आत्मा की पवित्रता की ओर अग्रसर होते हैं।

मेरू त्रयोदशी पर एक छोटी कविता:

"मेरू त्रयोदशी की महिमा" 🌸

तपस्या की महिमा, साधना का पर्व,
मेरू त्रयोदशी, शुद्धि का अद्भुत हर्ष।
सत्य, अहिंसा, अस्तेय का पालन,
जीवन में आए पुण्य का उबाल।

पाँच व्रतों का पालन करें हम,
मुक्ति के मार्ग पर चलें हम।
पावन हो मन, शुद्ध हो आत्मा,
मेरू त्रयोदशी का हो हर दिन समर्पण, हर शरण।

निष्कर्ष:

मेरू त्रयोदशी एक ऐसा पवित्र पर्व है, जो आत्मशुद्धि, तपस्या, और पवित्रता की ओर बढ़ने का प्रेरणा देता है। जैन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि यह व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति दिलाने और परम शांति की प्राप्ति करने के लिए प्रेरित करता है। इस दिन जैन भक्तों का संकल्प और ध्यान उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है और उन्हें मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

मेरू त्रयोदशी का पालन करके हम अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह के व्रतों का पालन करते हुए आत्मा की शुद्धि की ओर कदम बढ़ाते हैं। यह पर्व हमें यह समझाता है कि वास्तविक शांति और सुख का अनुभव तब होता है जब हम संसारिक सुखों से परे होकर आत्मा की सच्ची शांति की ओर बढ़ते हैं।

जय जिनेन्द्र! 🌺🙏

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-27.01.2025-सोमवार. 
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