श्री स्वामी समर्थ आणि त्यांच्या ध्यान पद्धतीचा अभ्यास-1

Started by Atul Kaviraje, January 30, 2025, 11:08:59 PM

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Atul Kaviraje

श्री स्वामी समर्थ आणि त्यांच्या ध्यान पद्धतीचा अभ्यास-
(The Practice of Meditation by Shri Swami Samarth)

श्री स्वामी समर्थ एवं उनकी ध्यान पद्धति का अध्ययन-
(The Practice of Meditation by Shri Swami Samarth)

श्री स्वामी समर्थ एक महान संत और ध्यान योगी थे, जिनकी शिक्षा और ध्यान पद्धतियाँ आज भी लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं। उनका जीवन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से प्रेरणादायक था, बल्कि उन्होंने हमें ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा की शुद्धता और ईश्वर के साथ अटूट संबंध स्थापित करने का मार्ग भी दिखाया। श्री स्वामी समर्थ की ध्यान पद्धति न केवल मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करने का एक साधन है, बल्कि यह एक आत्मिक उन्नति का मार्ग भी है, जिसके द्वारा साधक अपने जीवन को दिव्य बना सकता है।

श्री स्वामी समर्थ का जीवन और उनका ध्यान
श्री स्वामी समर्थ का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, और वे आदर्श योगी, गुरु और संत के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनका जीवन ध्यान, समाधि, और तपस्या का जीवन था। वे हमेशा आध्यात्मिक उन्नति और सच्चे आत्मज्ञान की ओर लोगों को मार्गदर्शन करते थे। स्वामी समर्थ की विशेषता यह थी कि वे न केवल स्वयं ध्यान में लीन रहते थे, बल्कि अपने भक्तों को भी ध्यान के महत्व को समझाते थे और उन्हें ध्यान साधना में संलग्न करते थे।

स्वामी समर्थ का ध्यान जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और शरीर-मन-आत्मा के सामंजस्य के लिए सबसे प्रभावी साधन था। उनका मानना था कि ध्यान से मन की शांति और आत्मा की पवित्रता प्राप्त होती है, और इसके द्वारा व्यक्ति ईश्वर के साथ एकाकार हो सकता है। उन्होंने ध्यान को केवल मानसिक शांति प्राप्त करने का साधन नहीं, बल्कि एक जीवन की गहरी समझ और आत्मज्ञान के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया।

स्वामी समर्थ की ध्यान पद्धति
स्वामी समर्थ की ध्यान पद्धति सरल लेकिन प्रभावशाली थी। उन्होंने ध्यान को प्राचीन योग विद्या के अनुसार जीवन का हिस्सा बनाने का आग्रह किया। स्वामी समर्थ की ध्यान पद्धति में चरण, क्रिया और समाधि की तीन प्रमुख अवस्थाएँ थीं।

चरण (Preparation):
ध्यान की पहली अवस्था थी मन को शांत करना। स्वामी समर्थ ने अपने भक्तों को यह सिखाया कि ध्यान शुरू करने से पहले, साधक को अपने विचारों को शांति देने के लिए कुछ समय तक मौन रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि मौन से मन में आई हुई उथल-पुथल को शांत किया जा सकता है। इसके साथ ही, साधक को अपने शरीर को आरामदायक स्थिति में रखना होता था ताकि ध्यान में कोई विघ्न न आए।

क्रिया (Practice):
ध्यान की दूसरी अवस्था थी सांसों पर नियंत्रण और मंत्र जाप। स्वामी समर्थ ने मंत्रों के महत्व पर विशेष ध्यान दिया। वे कहते थे कि मंत्र जाप से मानसिक शांति प्राप्त होती है और साधक अपने मन को बाहरी विक्षेपों से मुक्त कर सकता है। वे "राम" या "सोम" जैसे सरल मंत्रों का जाप करने की सलाह देते थे। मंत्र का जाप करने से साधक को आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव होता है, और धीरे-धीरे वह ईश्वर के ध्यान में लीन हो जाता है।

समाधि (Meditative State):
जब साधक अपने मन और शरीर को पूरी तरह से शांत और नियंत्रित कर लेता था, तब वह ध्यान की अंतिम अवस्था, समाधि में प्रवेश करता था। स्वामी समर्थ के अनुसार, यह वह अवस्था होती है जब साधक को आत्मा और परमात्मा के बीच एकत्व का अनुभव होता था। समाधि के दौरान साधक को साक्षात्कार का अनुभव होता था, और उसे यह एहसास होता था कि वह स्वयं ईश्वर के साथ एक है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-30.01.2025-गुरुवार.
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