देवी दुर्गा का ‘नवरात्रि महोत्सव’ एवं पूजा-अर्चना की प्रथा-

Started by Atul Kaviraje, January 31, 2025, 11:11:44 PM

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Atul Kaviraje

देवी दुर्गा का 'नवरात्रि महोत्सव' एवं पूजा-अर्चना की प्रथा-

कविता:-

नवरात्रि आई, माँ दुर्गा का पर्व लाया,
नव रात्रियों में भक्ति का, रस सभी को सिखाया। 🌸🙏
माँ के चरणों में बसा है, सुख और शांति का राज,
पूजा में भक्ति और श्रद्धा, दिलों में भरे साज। 💖✨

सप्तमी, अष्टमी, नवमी, माँ के रूपों का दर्शन,
हर दिन माँ का नया रूप, दिल में भरे उमंग और आशीर्वाद। 🌷🌺
धूप, दीप और सिंदूर से सजे माँ के प्यारे चरण,
उनकी पूजा से मिले मन को, हर दर्द से मुक्ति और चैन। 🕯�🌼

माँ दुर्गा की आराधना में, शक्ति का संचार होता है,
संकट और डर सभी खत्म होते हैं, जब माँ का आशीर्वाद होता है। 💪🌟
नवरात्रि का हर दिन, है जैसे एक नया जन्म,
भक्तों की आस्थाएँ और विश्वास बढ़ाए, जैसे हो कोई अनमोल धर्म। 🌙🙏

सप्तशती का पाठ करें, माँ के मन्त्रों का जाप,
हर रोज़ का व्रत करें, और करें माँ का पूजन अनुपम। 📜🎶
उत्सव में नृत्य, गीत, और रास का हो आनंद,
माँ की कृपा से जीवन हो सुखमय और बेमिसाल। 💃🎉

अर्थ:
यह कविता नवरात्रि के महोत्सव और देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की महिमा को दर्शाती है। नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और भक्त उन्हें सच्चे मन से पूजते हैं। इस कविता में माँ दुर्गा के आशीर्वाद से मिलने वाली शक्ति और सुख-शांति का वर्णन किया गया है।

इमोजी और चित्रार्थ:
🌸🙏🕯�🌷✨💪💖🎶

--अतुल परब
--दिनांक-31.01.2025-शुक्रवार.
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