पुजार्याची लेक

Started by अमोल कांबळे, July 18, 2011, 02:37:51 PM

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अमोल कांबळे

तुझ्या  पाठी  चालताना
तुझ्या  पावलांच्या  खुणा  जपत  आलो ,
तू  वळलीस  अन  मुस्कटात  दिलीस ,
त्याच  रस्त्याने  डोळे  पुसत  घरी  आलो .
तू  नाही  म्हटल्यावर  जगुन  उपयोग  नव्हता .
विष  प्यायला  एक  पैसा  खिशात  नव्हता ,
विहिरीत  उडी  मारावी  असं  वाटलं.
अंग  भिजलं  असतं  अन  त्यादिवशी  बैल पोळ्यांचा सण  होता .
अंगात  आलं कि  मला  तुझी  आठवण  येते,
नारळ  फोडला  कि  मला  तुझी  आठवण  येते ,
पुजार्याची  लेक  तू ,
देवळात  दिसलो  कि  पुजार्याला  तुझी  आठवण येते .
                                                               मैत्रेय (अमोल कांबळे)

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dokyavarun gele he kavita.............sorry

Nitesh Joshi

try to maintain quality rather to go for quantity

sorry