🌍🌿🔥 “पर्यावरणीय संकट”-"प्रकृति पुकारती है" 🌱

Started by Atul Kaviraje, June 03, 2025, 10:24:29 PM

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Atul Kaviraje

🌍🌿🔥

दीर्घ हिंदी कविता
📜 विषय: "पर्यावरणीय संकट"
🗓� प्रस्तुत: अर्थपूर्ण, सरल तुकबंदी में – 7 चरण, प्रत्येक में 4 पंक्तियाँ, हर चरण के बाद हिंदी अर्थ + चित्र, प्रतीक और इमोजी सहित

🌳 कविता शीर्षक: "प्रकृति पुकारती है" 🌱

🌲 चरण 1: संकट में है धरती माता
पेड़ कटे, पहाड़ हटे,
हरियाली अब आँख से हटे।
प्रकृति रोए, मौन में कहे,
"कहाँ गए वो जो मुझसे बहें?"

🔸 अर्थ:
पेड़ों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से धरती की सुंदरता और संतुलन बिगड़ रहा है। प्रकृति आहत है और हमें पुकार रही है।

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🌬� चरण 2: हवा में ज़हर, सांसें थमीं
शुद्ध वायु अब दुर्लभ सी बात,
धुएं में उलझे जीवन के जज़्बात।
हर साँस में घुलती पीड़ा,
प्रदूषण की बढ़ती चीख सी सीधा।

🔸 अर्थ:
वायु प्रदूषण के कारण सांस लेना मुश्किल हो गया है। यह संकट इंसान की जीवनशैली और स्वास्थ्य दोनों पर असर डाल रहा है।

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🌊 चरण 3: सूखते झरने, बहते आँसू
नदियाँ रोईं, तालाब सूखे,
जल की बूँदें जैसे चुपचाप भूखे।
पानी का संकट गहराया,
धरती ने हरियाली गंवाया।

🔸 अर्थ:
जल स्रोत सूख रहे हैं, जिससे खेती, जीवन और जलवायु पर गहरा असर पड़ रहा है। जल संकट एक वैश्विक आपदा बन चुका है।

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🔥 चरण 4: जलता जंगल, बुझती साँसें
आग लगे जो वन की छाया,
बिना पत्तों के पेड़ दुख पाया।
जीव-जंतु ढूँढें ठिकाना,
मानव ही बना अब विध्वंसक दीवाना।

🔸 अर्थ:
जंगलों की कटाई और आग से जैव विविधता खत्म हो रही है। वन्य जीवन का अस्तित्व खतरे में है, और इसका कारण मानव गतिविधियाँ हैं।

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🌡� चरण 5: गर्मी बढ़ी, हिम पिघले
ग्लोबल वार्मिंग का है कहर,
बर्फ पिघले, बढ़े समंदर।
जलवायु बदले रोज़ नया रंग,
जीवन डरे इस मौसम संग।

🔸 अर्थ:
ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं और मौसम के असंतुलन में इज़ाफा हो रहा है।

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🦋 चरण 6: गायब होती जीवन विविधता
पक्षी चुप, कीट नहीं दिखते,
नदियों में मछलियाँ भी सिमटे।
प्रजातियाँ विलुप्ति की ओर,
प्रकृति झुकी, जीवन कमजोर।

🔸 अर्थ:
जैव विविधता की कमी हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर रही है। कई प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं।

🖼�: 🦉🐝🐠🚫🌾

🙏 चरण 7: अब भी वक़्त है जागो
पेड़ लगाओ, जल बचाओ,
प्रकृति को अब और न सताओ।
संकल्प लो, मिलकर चलो,
धरती को फिर से हरा करो।

🔸 अर्थ:
यह समय चेतने का है। हमें मिलकर वृक्षारोपण, जल-संरक्षण और प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।

🖼�: 🌱💧🤝🌎🕊�

🌟 समापन संदेश:
🌿 "धरती हमारी माँ है, इसका रोना अब सुनाई देता है।
आइए, अपने कर्मों से इसे फिर मुस्कराने का अवसर दें।" 🌿

--अतुल परब
--दिनांक-03.06.2025-मंगळवार.
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