भारत में महिलाओं की स्थिति और सुधार की आवश्यकता-

Started by Atul Kaviraje, July 02, 2025, 10:58:48 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

भारत में महिलाओं की स्थिति और सुधार की आवश्यकता-

भारत में महिलाओं की स्थिति और सुधार की आवश्यकता: एक समग्र विश्लेषण 🇮🇳 empower_woman_emoji

भारत में महिलाओं की स्थिति सदियों से एक जटिल और विकसित होती रही है। एक ओर, भारतीय समाज में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है और उन्हें 'शक्ति' का प्रतीक माना जाता है; वहीं दूसरी ओर, उन्हें पितृसत्तात्मक संरचनाओं, सामाजिक रूढ़ियों और लैंगिक असमानता का भी सामना करना पड़ा है। आजादी के बाद से, भारतीय संविधान ने महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए हैं और कई कानूनों व नीतियों के माध्यम से उनकी स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया गया है। आज महिलाएं शिक्षा, राजनीति, विज्ञान और खेल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर रही हैं। हालांकि, अभी भी उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और पूर्ण समानता प्राप्त करने के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।

भारत में महिलाओं की स्थिति और सुधार की आवश्यकता (१० प्रमुख बिंदु)
शिक्षा में प्रगति, फिर भी चुनौतियाँ: 📚 भारत में लड़कियों की शिक्षा दर में काफी सुधार हुआ है, और अब अधिक लड़कियाँ स्कूल जा रही हैं। उदाहरण के लिए, "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान ने लैंगिक समानता और शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद की है। हालाँकि, अभी भी दूरदराज के इलाकों और गरीब परिवारों में लड़कियों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है, खासकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में।

स्वास्थ्य और पोषण: 🍎 महिलाओं के स्वास्थ्य, विशेषकर ग्रामीण और गरीब तबके में, अभी भी कई समस्याएँ हैं। एनीमिया, कुपोषण और मातृ मृत्यु दर जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए, सरकारी योजनाएँ जैसे जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने का प्रयास कर रही हैं, पर जागरूकता और पहुँच की कमी एक बड़ी बाधा है।

आर्थिक सशक्तिकरण और कार्यबल में भागीदारी: 💰 भारतीय महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी दर अपेक्षाकृत कम है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। हालाँकि, कृषि और असंगठित क्षेत्र में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, स्वयं सहायता समूह (SHGs) महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद कर रहे हैं। फिर भी, वेतन में लैंगिक असमानता और नेतृत्व पदों पर कम प्रतिनिधित्व एक चुनौती है।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व: 🏛� स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण (जैसे पंचायती राज संस्थाओं में ३३%) ने निचले स्तर पर उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाया है। उदाहरण के लिए, कई महिला सरपंचों ने अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। हालांकि, राज्य विधानसभाओं और संसद में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी काफी कम है।

हिंसा और सुरक्षा: 💔 महिलाओं के खिलाफ हिंसा, जैसे घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और दहेज संबंधी अपराध, भारत में एक गंभीर समस्या बनी हुई है। उदाहरण के लिए, "निर्भया फंड" और "वन स्टॉप सेंटर" जैसी पहलें पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गई हैं, लेकिन सामाजिक मानसिकता में बदलाव की धीमी गति चुनौती बनी हुई है।

कन्या भ्रूण हत्या और लिंगानुपात: 👶 भारत में कन्या भ्रूण हत्या एक गंभीर चिंता का विषय रहा है, जिसके कारण लिंगानुपात में असंतुलन आया है। सरकार द्वारा "प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (PCPNDT) एक्ट" जैसे कानून इस पर रोक लगाने का प्रयास करते हैं, लेकिन सामाजिक प्राथमिकताएं अभी भी लड़कों के पक्ष में हैं।

सामाजिक रूढ़ियाँ और पितृसत्तात्मक मानसिकता: 🧠 भारतीय समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक सोच और रूढ़िवादिता महिलाओं की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। उदाहरण के लिए, महिलाओं को घर के काम तक सीमित रखना, शिक्षा से वंचित करना, और उनके फैसलों को महत्व न देना आम बात है।

न्याय तक पहुँच: ⚖️ महिलाओं के लिए न्याय प्रणाली तक पहुँच अक्सर चुनौतीपूर्ण होती है, खासकर ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए। कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलता, सामाजिक दबाव और जागरूकता की कमी इसमें बाधक बनती है।

साइबर सुरक्षा और ऑनलाइन उत्पीड़न: 💻 डिजिटल युग में, महिलाओं को ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबरबुलिंग और निजता के उल्लंघन जैसी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियाँ और धमकाव एक आम समस्या बन गई है।

नेतृत्व और निर्णय लेने में भागीदारी: 📊 विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन अभी भी शीर्ष नेतृत्व और निर्णय लेने वाले पदों पर उनका प्रतिनिधित्व कम है। उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट बोर्डों, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी विभागों में महिलाएँ अभी भी कम संख्या में हैं।

महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि सामाजिक मानसिकता में गहरा बदलाव लाना भी आवश्यक है। शिक्षा, जागरूकता और समान अवसरों के माध्यम से ही भारत में महिलाएं सही मायने में सशक्त हो सकती हैं और राष्ट्र निर्माण में अपनी पूरी क्षमता के साथ योगदान कर सकती हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-01.07.2025-मंगळवार.
===========================================