कविता: प्राकृतिक आपदाएँ और उनका समाज पर असर-🌍🌪️🔥💔👨‍👩‍👧‍👦🏗️🌾💸😷🧠😥📚

Started by Atul Kaviraje, July 03, 2025, 11:07:58 AM

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Atul Kaviraje

दीर्घ हिंदी कविता: प्राकृतिक आपदाएँ और उनका समाज पर असर-

१. (पहला चरण)
धरती पर जब कहर बरसे, प्रकृति का तांडव होता,
भूकंप आए, बाढ़ उमड़े, तूफान भी जब सोता।
सूखे की मार पड़े, या अग्नि दावानल हो जाए,
जीवन का हर रंग फीका, पल भर में मिट जाए।
अर्थ: जब धरती पर प्रकृति का कहर बरसता है, भूकंप आता है, बाढ़ आती है या तूफान शांत होता है। सूखे की मार पड़े या जंगल में आग लग जाए, जीवन का हर रंग फीका पड़ जाता है और पल भर में मिट जाता है।
🌍🌪�🔥

२. (दूसरा चरण)
इंसान के जीवन पर, गहरा ये घाव करते हैं,
लाशों के ढेर दिखें, लाखों लोग मरते हैं।
घर-बार उजड़ जाते, परिवार बिखरते हैं,
छूट जाते हैं अपने, आँसू भी न रुकते हैं।
अर्थ: ये आपदाएँ इंसान के जीवन पर गहरे घाव करती हैं। लाशों के ढेर दिखते हैं, लाखों लोग मरते हैं। घर-बार उजड़ जाते हैं, परिवार बिखर जाते हैं। अपने बिछड़ जाते हैं, और आँसू भी नहीं रुकते।
💔👨�👩�👧�👦

३. (तीसरा चरण)
सड़कें टूटी, पुल गिरे, अस्पताल भी ढह जाते,
शहरों की रौनकें सारी, माटी में मिल जाते।
खेतों में सूनापन छाए, फसलें सब सूखें,
आर्थिक कमर टूट जाती, हर मन में दुःख है।
अर्थ: सड़कें टूट जाती हैं, पुल गिर जाते हैं, अस्पताल भी ढह जाते हैं। शहरों की सारी रौनकें मिट्टी में मिल जाती हैं। खेतों में सूनापन छा जाता है, फसलें सब सूख जाती हैं। आर्थिक कमर टूट जाती है, और हर मन में दुख होता है।
🏗�🌾💸

४. (चौथा चरण)
पानी दूषित हो जाए, बीमारी का घर बन जाए,
कोई दवा न मिले, जीवन ही संकट में आए।
मानसिक आघात भी देते, लोगों को ये आपदाएँ,
डर, चिंता और अवसाद, जीवन को जकड़ जाएँ।
अर्थ: पानी दूषित हो जाता है, बीमारियों का घर बन जाता है। कोई दवा नहीं मिलती, जीवन ही संकट में आ जाता है। ये आपदाएँ लोगों को मानसिक आघात भी देती हैं। डर, चिंता और अवसाद जीवन को जकड़ लेते हैं।
😷🧠😥

५. (पांचवां चरण)
स्कूल-कॉलेज बंद पड़े, शिक्षा का हो नुकसान,
बच्चों का भविष्य भी, खतरे में आए जान।
मज़दूर और किसान भी, हो जाते बेहाल,
पेट भरने की चिंता में, हो जाते हैं कंगाल।
अर्थ: स्कूल-कॉलेज बंद पड़ जाते हैं, शिक्षा का नुकसान होता है। बच्चों का भविष्य भी खतरे में आ जाता है। मजदूर और किसान भी बेहाल हो जाते हैं। पेट भरने की चिंता में वे कंगाल हो जाते हैं।
📚😔👨�🌾

६. (छठा चरण)
पर्यावरण पर भी इनका, पड़ता है भारी असर,
जंगल जल जाते, नदियाँ हो जाती बेघर।
जैव विविधता मिट जाए, हवा में फैले ज़हर,
प्रकृति का संतुलन बिगड़े, छा जाए काला कहर।
अर्थ: इन आपदाओं का पर्यावरण पर भी भारी असर पड़ता है। जंगल जल जाते हैं, नदियाँ बेघर हो जाती हैं। जैव विविधता मिट जाती है, हवा में ज़हर फैल जाता है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है और काला कहर छा जाता है।
🌳💨🌍

७. (सातवां चरण)
तैयारी है ज़रूरी, आपदा प्रबंधन हो खास,
मिलकर चलना होगा, रखना होगा विश्वास।
बचाव और राहत में, दें हम सबको साथ,
प्रकृति का सम्मान करें, थामे रहें ये हाथ।
अर्थ: तैयारी जरूरी है, आपदा प्रबंधन खास हो। मिलकर चलना होगा, विश्वास रखना होगा। बचाव और राहत में हम सबको साथ दें। प्रकृति का सम्मान करें और उसके हाथ थामे रहें।
🛡�🤝❤️

आपके दिन के लिए दृश्य और भावनाएँ

पृथ्वी और तूफान: 🌍🌪� - प्राकृतिक आपदा का प्रतीक।

टूटा हुआ दिल और परिवार: 💔👨�👩�👧�👦 - जानमाल का नुकसान और सामाजिक विखंडन।

गिरा हुआ भवन, फसल और पैसे: 🏗�🌾💸 - आर्थिक तबाही।

मास्क, दिमाग और रोता हुआ चेहरा: 😷🧠😥 - स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक प्रभाव।

किताबें, उदास चेहरा और किसान: 📚😔👨�🌾 - शैक्षिक और आर्थिक नुकसान।

जलता हुआ पेड़, धुआँ और पृथ्वी: 🌳💨🌍 - पर्यावरणीय क्षति।

शील्ड, हाथ मिलाना और दिल: 🛡�🤝❤️ - तैयारी, प्रबंधन और सम्मान।

इमोजी सारांश:
🌍🌪�🔥💔👨�👩�👧�👦🏗�🌾💸😷🧠😥📚😔👨�🌾🌳💨🌍🛡�🤝❤️

प्राकृतिक आपदाओं से स्वयं और समाज को सुरक्षित रखने के लिए जागरूक रहें और तैयार रहें।

--अतुल परब
--दिनांक-02.07.2025-बुधवार.
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