अष्टान्हिक पर्व का शुभारंभ: जैन धर्म का पवित्र अवसर 🙏 ३ जुलाई, २०२५ - गुरुवार-

Started by Atul Kaviraje, July 04, 2025, 10:34:09 AM

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Atul Kaviraje

अष्टान्हिक पर्वारंभ - जैन-

अष्टान्हिक पर्व का शुभारंभ: जैन धर्म का पवित्र अवसर 🙏
३ जुलाई, २०२५ - गुरुवार

आज, ३ जुलाई २०२५, गुरुवार का दिन, जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण दिन है। आज से अष्टान्हिक पर्व का शुभारंभ हो रहा है। यह आठ दिवसीय पर्व जैन समुदाय में विशेष भक्ति, तपस्या और आत्म-चिंतन का प्रतीक है। अष्टान्हिक पर्व वर्ष में तीन बार आता है - फाल्गुन, कार्तिक और आषाढ़ मास में। आज आषाढ़ मास के अष्टान्हिक पर्व का प्रारंभ है, जो जैनों को अपनी आत्मा के करीब जाने और धार्मिक अनुष्ठानों में लीन होने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है।

इस दिन का महत्व और विवेचन (१० प्रमुख बिंदु) 🌟
आत्म-शुद्धि का पर्व: अष्टान्हिक पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्म-शुद्धि और आत्म-कल्याण है। इन आठ दिनों में जैन धर्मावलंबी सात्विक जीवन जीते हुए उपवास, तपस्या और धार्मिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं। यह आत्मा को पवित्र करने का समय है। ✨

तीर्थंकरों की आराधना: इस पर्व के दौरान, चौबीस तीर्थंकरों की विशेष रूप से आराधना की जाती है। मंदिरों में अभिषेक, पूजा और स्तोत्र पाठ के माध्यम से उनकी शिक्षाओं और आदर्शों को याद किया जाता है, जिससे भक्तों को प्रेरणा मिलती है। 🕉�

मेरु पर्वत की पूजा: जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, इन दिनों में देवता मेरु पर्वत पर जाकर शाश्वत जिन-प्रतिमाओं की पूजा करते हैं। इसलिए, भक्त भी मंदिरों में जिन-प्रतिमाओं की पूजा कर उस पुण्य का लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ⛰️

दशलक्षण धर्म का अभ्यास: हालांकि दशलक्षण पर्व अलग है, अष्टान्हिक पर्व में भी उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य जैसे दस धर्मों का अभ्यास करने पर जोर दिया जाता है। यह चरित्र निर्माण में सहायक है। 🧘

सामूहिक साधना: इन आठ दिनों में जैन मंदिरों और उपाश्रयों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। सामूहिक पूजा, स्वाध्याय, प्रवचन और ध्यान का आयोजन किया जाता है, जिससे सामुदायिक भावना और भक्ति का वातावरण निर्मित होता है। 🤝

ज्ञान और स्वाध्याय का महत्व: अष्टान्हिक पर्व केवल उपवास का नहीं, बल्कि ज्ञान और स्वाध्याय का भी पर्व है। इन दिनों में लोग जैन आगमों का अध्ययन करते हैं, धार्मिक ग्रंथों को पढ़ते हैं और प्रवचनों के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। 📖

अहिंसा का पालन: जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है। अष्टान्हिक पर्व के दौरान अहिंसा का विशेष रूप से पालन किया जाता है। लोग जीव दया पर अधिक ध्यान देते हैं और सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव रखते हैं। 🕊�

सात्विक जीवनशैली: इन आठ दिनों में भोजन और दिनचर्या में सात्विकता बरती जाती है। कई लोग एकासन (एक बार भोजन), आयंबिल (विशेष प्रकार का भोजन) या पूर्ण उपवास करते हैं, जिससे शारीरिक शुद्धि के साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। 🍏

कर्मों का क्षय: जैन दर्शन के अनुसार, तपस्या और साधना से कर्मों का क्षय होता है। अष्टान्हिक पर्व में की गई तपस्या को विशेष फलदायी माना जाता है, जिससे आत्मा को मुक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता मिलती है। 🌀

पर्व की विशिष्टता: वर्ष में तीन बार आने वाले इस पर्व का हर बार अपना विशेष महत्व है। आषाढ़ मास का यह पर्व वर्षा ऋतु के प्रारंभ में आता है, जब प्रकृति भी एक नई ऊर्जा के साथ खिल उठती है, जो आत्म-चिंतन के लिए एक आदर्श समय है। 🌧�

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.07.2025-गुरुवार.
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