भारत में बेरोज़गारी की समस्या: एक गंभीर चुनौती और समाधान की राह 📊📉

Started by Atul Kaviraje, July 04, 2025, 10:38:26 AM

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Atul Kaviraje

भारत में बेरोज़गारी की समस्या-

भारत में बेरोज़गारी की समस्या: एक गंभीर चुनौती और समाधान की राह 📊📉

भारत, एक युवा राष्ट्र होने के नाते, जहाँ विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी निवास करती है, वहीं बेरोज़गारी की समस्या एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। यह केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय संकट भी है जो युवाओं के सपनों को तोड़ता है और देश के विकास की गति को धीमा करता है। रोज़गार के अवसरों की कमी, शिक्षा और कौशल के बीच बेमेल, और आर्थिक मंदी जैसे कई कारक इस समस्या को और भी जटिल बना रहे हैं। इस समस्या का समाधान करना भारत के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 🇮🇳

भारत में बेरोज़गारी की समस्या और विवेचन (१० प्रमुख बिंदु) 🌟
जनसंख्या वृद्धि और रोज़गार के अवसर: भारत की विशाल और बढ़ती जनसंख्या रोज़गार सृजन पर लगातार दबाव डालती है। हर साल लाखों युवा कार्यबल में शामिल होते हैं, लेकिन पर्याप्त नौकरियों का सृजन नहीं हो पाता। 📈

उदाहरण: कृषि से विस्थापित होने वाले श्रमिकों को विनिर्माण या सेवा क्षेत्र में तुरंत रोज़गार नहीं मिल पाता, जिससे अदृश्य बेरोज़गारी (disguised unemployment) बढ़ती है।

कौशल की कमी (Skill Gap): भारतीय शिक्षा प्रणाली अक्सर उद्योगों की ज़रूरतों के अनुसार कौशल प्रदान नहीं करती। कॉलेज से पढ़कर निकलने वाले कई युवाओं में आवश्यक व्यावहारिक कौशल की कमी होती है, जिससे वे रोज़गार के लिए तैयार नहीं होते। 🧑�🎓

उदाहरण: इंजीनियरिंग स्नातकों की बड़ी संख्या होने के बावजूद, आईटी और विनिर्माण क्षेत्रों में विशिष्ट कौशल वाले पेशेवरों की कमी।

औपचारिक क्षेत्र में धीमी वृद्धि: भारत में संगठित क्षेत्र (formal sector) में रोज़गार सृजन की गति धीमी रही है, जबकि असंगठित क्षेत्र (informal sector) में अधिकांश रोज़गार हैं जो कम वेतन और असुरक्षित होते हैं। 🏢

उदाहरण: छोटे पैमाने के उद्योगों और स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देने में कमी, जिससे बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजित नहीं हो पा रहा।

कृषि क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता: भारत की बड़ी आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है, जहाँ मौसमी बेरोज़गारी और प्रच्छन्न बेरोज़गारी आम है। कृषि से बाहर रोज़गार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं। 🚜

उदाहरण: कटाई और बुवाई के मौसम के अलावा, किसान अक्सर बेरोजगार रहते हैं या उनके पास पर्याप्त काम नहीं होता।

निवेश और आर्थिक विकास में कमी: निजी निवेश में कमी और धीमी आर्थिक वृद्धि रोज़गार सृजन को सीधे प्रभावित करती है। जब अर्थव्यवस्था धीमी होती है, तो कंपनियाँ नई भर्तियाँ कम करती हैं। 📉

उदाहरण: COVID-19 महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के कारण बड़े पैमाने पर नौकरियाँ गईं।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की चुनौतियाँ: MSMEs रोज़गार सृजन के प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन उन्हें अक्सर पूंजी, प्रौद्योगिकी और बाजार तक पहुंच जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी वृद्धि बाधित होती है। 🏭

उदाहरण: छोटे उद्योगों को बैंक ऋण प्राप्त करने में कठिनाई या सरकारी नीतियों का जटिल होना।

सरकारी नीतियों और उनके कार्यान्वयन में कमी: रोज़गार सृजन के लिए कई सरकारी योजनाएं हैं, लेकिन उनके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधाएं आती हैं, जिससे उनका पूरा लाभ लक्षित वर्ग तक नहीं पहुँच पाता। 📝

उदाहरण: 'मेक इन इंडिया' या 'स्किल इंडिया' जैसी पहलों का अपेक्षित परिणाम न दे पाना।

बुनियादी ढांचे का अभाव: बेहतर सड़कों, बिजली, और इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसे बुनियादी ढांचे की कमी से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करना मुश्किल हो जाता है, जिससे वहां रोज़गार के अवसर कम होते हैं। 🌐

उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों के लिए विश्वसनीय बिजली आपूर्ति का अभाव।

ऑटोमेशन और तकनीकी परिवर्तन: ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ने से कुछ क्षेत्रों में नौकरियों का विस्थापन हो रहा है, जिससे कार्यबल को नए कौशल सीखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 🤖

उदाहरण: निर्माण क्षेत्र में रोबोटिक्स का उपयोग कुछ मैनुअल नौकरियों को खत्म कर सकता है।

अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में अधिकांश कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा, निश्चित वेतन या अन्य लाभ नहीं मिलते, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति असुरक्षित रहती है। 👷�♂️

उदाहरण: दैनिक मज़दूरी करने वाले श्रमिक जो मौसम या काम की उपलब्धता के आधार पर रोज़गार पाते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.07.2025-गुरुवार.
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