स्वातंत्र्यवीर सावरकर: एक विवादित विरासत -1-💔⚔️🇮🇳🤝🤔🚫↔️🚧🧩🤷‍♂️♟️🗣️🔑🧐🛣

Started by Atul Kaviraje, July 12, 2025, 04:28:13 PM

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Atul Kaviraje

स्वातंत्र्यवीर सावरकर: एक विवादित विरासत - प्रो. शेषराव मोरे के परिप्रेक्ष्य में-

भारत के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे हैं, जिन पर दशकों बाद भी बहस और राजनीति जारी है। स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर उनमें से एक हैं। उन्हें जितना सराहा गया, उतना ही विवादों में भी घेरा गया। प्रोफेसर शेषराव मोरे जैसे विचारकों ने सावरकर के जीवन और विचारों पर गहराई से प्रकाश डाला है, खासकर उनके हिंदुत्व की अवधारणा पर। यह लेख उन्हीं विचारों पर आधारित है, जो सावरकर के नुकसान, उनके हिंदुत्व की वास्तविक परिभाषा, और उन पर आज भी हो रही राजनीति को समझने का प्रयास करता है।

1. सावरकर का सर्वाधिक नुकसान किसने किया? 🕵��♂️
प्रोफेसर शेषराव मोरे जैसे कई विद्वानों का मानना है कि सावरकर का सबसे ज्यादा नुकसान उनके विचारों को गलत तरीके से पेश करने वाले लोगों ने किया, चाहे वे उनके समर्थक हों या विरोधी। समर्थकों ने उन्हें एकतरफा रूप से महिमामंडित किया, अक्सर उनके कुछ विवादास्पद पहलुओं को नजरअंदाज करते हुए, जबकि विरोधियों ने उन्हें केवल कुछ चुनिंदा घटनाओं और बयानों के आधार पर ही चित्रित किया, उनके समग्र योगदान और दूरदर्शिता को अनदेखा किया। इस ध्रुवीकरण ने उनकी वास्तविक छवि को धुंधला कर दिया।

उदाहरण: अंडमान की सेलुलर जेल में उनकी कैद और उनकी दया याचिकाओं को लेकर अक्सर एकतरफा बहस होती है, जिससे उनके क्रांतिकारी संघर्षों को गौण कर दिया जाता है।

प्रतीक: एक दर्पण जो कई टुकड़ों में टूट गया हो।

इमोजी: 💔, ⚔️

2. स्वातंत्र्यवीर सावरकर का हिंदुत्व क्या था? 🕉�
सावरकर का हिंदुत्व एक भौगोलिक, सांस्कृतिक और राष्ट्र-आधारित अवधारणा थी, न कि केवल एक धार्मिक। उन्होंने 'हिंदुत्व' को "एक साझा संस्कृति, साझा इतिहास और साझा भूमि पर आधारित राष्ट्रवाद" के रूप में परिभाषित किया था। उनके अनुसार, भारत भूमि पर रहने वाला हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, अगर वह इस भूमि को अपनी पितृभूमि (पिता की भूमि) और पुण्यभूमि (पवित्र भूमि) मानता है, तो वह 'हिंदू' है। यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का एक रूप था, जो आज के धार्मिक हिंदुत्व से भिन्न था।

उदाहरण: उन्होंने अपनी पुस्तक 'हिंदुत्व: हू इज अ हिंदू?' में स्पष्ट किया कि ईसाई और मुस्लिम भी हिंदू हो सकते हैं, यदि वे भारत को अपनी मातृभूमि और पुण्यभूमि मानते हैं।

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इमोजी: 🇮🇳, 🤝

3. क्या उज्‍जवों को भी सावरकर मान्य नहीं हैं? 🤨
यह एक विरोधाभासी स्थिति है। जहाँ एक ओर दक्षिणपंथी विचारधारा सावरकर को अपना आदर्श मानती है, वहीं प्रोफेसर मोरे जैसे विचारकों का तर्क है कि दक्षिणपंथी भी उनके हिंदुत्व की पूरी अवधारणा को नहीं अपनाते। सावरकर का हिंदुत्व जातिवाद के खिलाफ था और उन्होंने वैज्ञानिक सोच पर जोर दिया था, जबकि कुछ दक्षिणपंथी समूह अभी भी जातिगत भेदभाव या रूढ़िवादी विचारों से ग्रस्त दिखते हैं। सावरकर ने 'गोमांस' खाने पर भी कोई धार्मिक पाबंदी नहीं लगाई थी, बल्कि इसे एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा माना था, जो कई उज्‍जवों के विचारों से मेल नहीं खाता।

उदाहरण: सावरकर ने अछूतों के मंदिर प्रवेश का समर्थन किया था और जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए काम किया था, जो कुछ पारंपरिक दक्षिणपंथी समूहों के लिए असहज हो सकता है।

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इमोजी: 🤔, 🚫

4. क्या सावरकर का हिंदुत्व संघ को मान्य नहीं? 🚩
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सावरकर को एक महान राष्ट्रवादी और विचारक मानता है, लेकिन उनके हिंदुत्व की व्याख्या में सूक्ष्म अंतर हैं। आरएसएस का हिंदुत्व अधिक धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर केंद्रित है, जबकि सावरकर का हिंदुत्व एक भू-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था जिसमें धर्म की भूमिका गौण थी। सावरकर ने हिंदू महासभा की स्थापना की थी, जो एक राजनीतिक संगठन था, जबकि आरएसएस खुद को एक सांस्कृतिक संगठन कहता है। कुछ मुद्दों पर, जैसे कि जातिवाद और गोमांस, संघ की स्थिति सावरकर से भिन्न हो सकती है।

उदाहरण: सावरकर ने 'एक राष्ट्र, एक भाषा' का विचार नहीं दिया था, बल्कि उन्होंने भारतीय भाषाओं की विविधता को स्वीकार किया था, जबकि संघ हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर जोर देता रहा है।

प्रतीक: दो अलग-अलग रास्ते जो समानांतर चलते हैं लेकिन कभी मिलते नहीं।

इमोजी: ↔️, 🚧

5. क्या वीर सावरकर मुस्लिमधार्जिणे थे? 🤝
यह आरोप अक्सर उनके आलोचकों द्वारा लगाया जाता है, खासकर उनके खिलाफत आंदोलन के विरोध और मुस्लिम लीग के साथ कुछ समय के जुड़ाव के कारण। हालांकि, प्रोफेसर मोरे का विश्लेषण बताता है कि सावरकर का दृष्टिकोण 'हिंदू-मुस्लिम एकता' का नहीं, बल्कि 'हिंदू-मुस्लिम राष्ट्रवाद' का था। उनका मानना था कि अगर मुसलमान भारत को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानते हैं, तो वे राष्ट्र के अभिन्न अंग हैं। उनके कुछ कार्यों को राजनीतिक मजबूरी या दूरदर्शिता के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि मुस्लिम-तुष्टिकरण के रूप में।

उदाहरण: उन्होंने खिलाफत आंदोलन का विरोध किया था क्योंकि उन्हें लगा था कि यह भारत के बजाय बाहरी धार्मिक मुद्दों पर केंद्रित था, जिससे भारत की राष्ट्रीय एकता कमजोर हो सकती थी।

प्रतीक: दो अलग-अलग पहेली के टुकड़े जिन्हें जोड़ने की कोशिश की जा रही हो।

इमोजी: 🧩, 🤷�♂️

इमोजी सारांश:
💔⚔️🇮🇳🤝🤔🚫↔️🚧🧩🤷�♂️♟️🗣�🔑🧐🛣�🎯💡🪷🌱🔄

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-12.07.2025-शनिवार.
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