डोळे मिटून घेना कशी मी व्यक्त होऊ

Started by amoul, August 26, 2011, 10:17:02 AM

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amoul

डोळे  मिटून  घेना  कशी  मी  व्यक्त  होऊ,
या  प्रणयाच्या  महाली  अशीच  कशी  येऊ.

वाऱ्यालाही  कधी  अवखळतेने  स्पर्शू  दिलेनाही,
पावसालाही   अति  सलगीने  बरसू  दिले  नाही,
इतके    जपले  स्वतःला  कि  जपले  नसेल  कोणी,
अशी  हि  अनमोल  ठेव  एकाएकी  कशी  मीदेऊ.

तुझ्या  इतकेच  माझ्याही  मनातगूढ  आहे,
काय  करू  संस्कारांची साखळीही   द्रूढआहे.
लाजेचा   पहारा  काही  केल्या  सुटेचना  बाई,
भय  नसले  तुझे  तरी  कशी  रे  मिठीत  सामाऊ.

माझ्या  मनाचं  दुखणं  तुला  नाही   कळायचं,
कस्सं  समजाऊ  कि  असंनाही  छळायचं.
मन   उचंबळून  येतंय  मिलनासाठी  जरी  माझं,
अडखळत्या  पावलाला   कसं  काय  समजाऊ.

जरा  वेळ  देना  आणि  मला  समजून  घेना,
अजूनही    ओलाच  आहे  हळदीचा  उखाणा,
नवा   प्रवास   हा  उगमाच्या दिशेस जाणारा ,
नव्या    संगमाला  एकाकी  कसा  प्रतिसाद  देऊ.

................अमोल

या    कवितेतल्या   मागणीवर   कवितेतूनच   उत्तर   खाली  दिलेल्या   लिंकवरती

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