अशून्य शयन व्रत: महत्त्व और भक्तिभाव ✨🛌

Started by Atul Kaviraje, July 13, 2025, 11:00:50 AM

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Atul Kaviraje

अशून्य श्ययन व्रत-

अशून्य शयन व्रत: महत्त्व और भक्तिभाव ✨🛌

आज 12 जुलाई 2025, शनिवार है। आज का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि आज अशून्य शयन व्रत है। यह व्रत वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौहार्द और अटूट संबंध बनाए रखने के लिए रखा जाता है। यह मुख्यतः भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है। इस व्रत का शाब्दिक अर्थ है 'शून्य शय्या न हो', यानी पति-पत्नी के बीच कभी खालीपन न आए और उनका संबंध हमेशा प्रेम से भरा रहे।

अशून्य शयन व्रत का महत्व और उदाहरण (१० प्रमुख बिंदु)
अशून्य शयन व्रत का पालन करने से दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और पति-पत्नी के बीच का प्रेम और विश्वास और गहरा होता है। यहाँ इस व्रत के महत्व को समझाने वाले १० प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:

दांपत्य प्रेम में वृद्धि: यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और आपसी समझ को बढ़ाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे रखने से संबंध मजबूत होते हैं और रिश्तों में कभी कड़वाहट नहीं आती। 💖

सौभाग्य की प्राप्ति: विवाहित महिलाएं यह व्रत अपने पति के लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए रखती हैं, जिससे उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 🙏

पारिवारिक सुख: व्रत का पालन करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य बना रहता है। 👨�👩�👧�👦

विष्णु-लक्ष्मी की कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। उनकी कृपा से घर में धन-धान्य और खुशहाली आती है। 🕉�💰

संतान सुख: कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी फलदायी होता है, विशेषकर उन दंपतियों के लिए जिन्हें संतान सुख की कामना होती है। 👶

नकारात्मक ऊर्जा का नाश: व्रत के दौरान की गई पूजा और अर्चना से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। ✨

आत्मिक शुद्धि: व्रत रखने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और शुद्धि का अनुभव होता है। यह मन को शांत और एकाग्र बनाता है।🧘�♀️

स्वास्थ्य लाभ: धार्मिक लाभ के साथ-साथ, व्रत रखने से शरीर को भी आराम मिलता है और यह शारीरिक शुद्धि में सहायक होता है। 💪

पुण्य फल की प्राप्ति: इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, जो उसे लोक-परलोक दोनों में सुख प्रदान करता है। 🌟

संबंधों की मजबूती का प्रतीक: यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे के प्रति समर्पण का प्रतीक है। 🤝

उदाहरण: प्राचीन काल में राजा दशरथ और रानी कौशल्या ने अपने दांपत्य सुख के लिए यह व्रत रखा था। आधुनिक युग में भी कई विवाहित जोड़े अपने रिश्ते में मधुरता और स्थायित्व बनाए रखने के लिए इस व्रत का पालन करते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-12.07.2025-शनिवार.
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