स्त्रीवाद क्या है? - राजू परुळेकर-⚖️🤝🕊️✊💔💖🌍✨

Started by Atul Kaviraje, July 18, 2025, 06:14:26 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

Woman -Society - Liberty - स्त्रीवाद म्हणजे काय ? - राजू परुळेकर- VISHLESHAK-मनातलं (Manatale)-

स्त्रीवाद क्या है? - राजू परुळेकर के 'मनातलं' से एक विश्लेषणात्मक दृष्टि-

राजू परुळेकर ने अपने 'मनातलं' (मन के भाव) में स्त्रीवाद की संकल्पना पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं, विशेषकर समाज में स्त्री की स्थिति और उसके प्रति होने वाले भेदभाव पर. स्त्री और पुरुष को एक ही सिक्के के दो पहलू माने जाने के बावजूद, लैंगिक भेदभाव का आज भी कायम रहना एक विडंबना है. स्त्री की लैंगिकता को लक्ष्य बनाना और हर संघर्ष में उसे निशाना बनाना किस प्रकार के समाज का लक्षण है, यह एक गहन चिंतन का विषय है. आइए, इस जटिल विषय को 10 प्रमुख बिंदुओं में गहराई से समझते हैं.

1. स्त्रीवाद: एक बहुआयामी संकल्पना 📚
स्त्रीवाद कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं रखता. यह विभिन्न विचारकों और आंदोलनों द्वारा अपने-अपने तरीकों से व्याख्यायित किया गया है. मूल रूप से, स्त्रीवाद स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता की वकालत करता है. इसका लक्ष्य उन पितृसत्तात्मक संरचनाओं को चुनौती देना है जो लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती हैं.

2. स्त्री और पुरुष: एक ही सिक्के के दो पहलू (मूल विचार) 🌓
भारतीय दर्शन और कई प्राचीन संस्कृतियों में स्त्री और पुरुष को एक-दूसरे का पूरक माना गया है, जैसे शिव और शक्ति, अर्धनारीश्वर. यह अवधारणा स्वीकार करती है कि दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं. परुळेकर इस मूल विचार को रेखांकित करते हुए भी आज की कटु वास्तविकता पर सवाल उठाते हैं.

3. लिंगभेद: समाज की कटु वास्तविकता 💔
इस आदर्श विचार के बावजूद, समाज में लिंगभेद आज भी एक गहरी जड़ वाली समस्या है. यह केवल शिक्षा या रोजगार तक सीमित नहीं है, बल्कि दैनिक जीवन के हर पहलू में परिलक्षित होता है - भाषा में, पारिवारिक भूमिकाओं में, और सामाजिक अपेक्षाओं में. यह भेदभाव स्त्री की क्षमताओं को सीमित करता है और उसे उसके उचित स्थान से वंचित करता है.

4. स्त्री की लैंगिकता पर आक्षेप: पितृसत्ता का हथियार 🗣�
राजू परुळेकर का यह अवलोकन कि "स्त्री की लैंगिकता को लेकर समाज में गालियाँ दी जाती हैं" अत्यंत मार्मिक है. यह दर्शाता है कि कैसे पितृसत्तात्मक सोच स्त्री के सम्मान और स्वतंत्रता को कुचलने के लिए उसकी लैंगिकता को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है. स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाना, उसे नैतिक रूप से कम आंकना - यह सब उसे नियंत्रित करने का एक तरीका है.

5. संघर्षों में स्त्री को लक्ष्य बनाना: एक विकृत मानसिकता 🎯
"किसी भी विवाद या संघर्ष में स्त्री को लक्ष्य बनाया जाता है" - यह कथन समाज की एक अत्यंत विकृत मानसिकता को उजागर करता है. चाहे घरेलू कलह हो या बड़े सामाजिक/राजनीतिक संघर्ष, स्त्री अक्सर हिंसा, अपमान और बदले की भावना का शिकार होती है. यह दर्शाता है कि समाज में स्त्री को अभी भी व्यक्तिगत संपत्ति या अपमानित करने के एक साधन के रूप में देखा जाता है.

6. स्त्रीवाद का मूल उद्देश्य: समानता और न्याय ⚖️
स्त्रीवाद का उद्देश्य स्त्री को पुरुष से 'बेहतर' साबित करना नहीं है, बल्कि उसे पुरुष के बराबर अधिकार और सम्मान दिलाना है. यह स्त्री को समाज में एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में स्थापित करने की वकालत करता है, न कि किसी की बेटी, पत्नी या माँ के रूप में उसकी पहचान को सीमित करना. इसका लक्ष्य न्यायपूर्ण समाज का निर्माण है.

7. व्यक्तिगत से राजनीतिक तक: स्त्रीवाद का विस्तार 🏡➡️🏛�
स्त्रीवाद केवल बड़े राजनीतिक आंदोलनों तक सीमित नहीं है. राजू परुळेकर के 'मनातलं' का विश्लेषण करते हुए, यह स्पष्ट होता है कि "व्यक्तिगत ही राजनीतिक है" का सिद्धांत स्त्रीवाद में महत्वपूर्ण है. घर के भीतर होने वाला भेदभाव, घरेलू हिंसा, लैंगिक भूमिकाओं का थोपना - ये सभी राजनीतिक मुद्दे हैं जो सामाजिक संरचनाओं से जुड़े हैं.

8. आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता की पुकार ✊
स्त्रीवाद केवल अधिकारों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह स्त्री के आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता की पुकार है. यह उसे अपनी आवाज़ उठाने, अपने निर्णय लेने और अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने का अधिकार दिलाता है. यह उसे 'पीड़ित' से 'सशक्त' बनने की प्रेरणा देता है.

9. पुरुष की भूमिका: स्त्रीवाद में सहयोगी 🤝
अक्सर यह गलत धारणा होती है कि स्त्रीवाद पुरुषों के खिलाफ है. राजू परुळेकर के विश्लेषण से हम समझ सकते हैं कि सच्चा स्त्रीवाद पुरुषों को भी पितृसत्तात्मक बंधनों से मुक्त करता है. यह पुरुषों को लैंगिक रूढ़ियों से बाहर आने और स्त्री के साथ बराबरी के भागीदार के रूप में खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करता है. पुरुष भी समानता के इस संघर्ष में महत्वपूर्ण सहयोगी हैं.

10. एक सभ्य समाज का लक्षण: लैंगिक समानता 🌍
परुळेकर का प्रश्न "यह किस समाज का लक्षण है?" हमें सोचने पर मजबूर करता है. एक सभ्य, प्रबुद्ध और प्रगतिशील समाज की पहचान उसकी लैंगिक समानता से होती है. जहाँ स्त्री को सम्मान मिलता है, जहाँ उसकी आवाज़ सुनी जाती है और जहाँ उसे पूर्ण स्वतंत्रता होती है, वही समाज वास्तव में विकसित कहलाता है. स्त्रीवाद इसी आदर्श समाज की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

सारांश इमोजी: ⚖️🤝🕊�✊💔💖🌍✨

यह लेख राजू परुळेकर के विचारों की गहराई को छूते हुए, स्त्रीवाद की जटिल संकल्पना को सरलता से समझाने का प्रयास करता है.

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-18.07.2025-शुक्रवार.
===========================================