स्त्रीवाद क्या है? - राजू परुळेकर- 💖⚖️🕊️🤝🌍✨

Started by Atul Kaviraje, July 18, 2025, 06:15:17 PM

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Atul Kaviraje

स्त्रीवाद क्या है? - राजू परुळेकर के 'मनातलं' पर आधारित कविता-

यह कविता राजू परुळेकर के 'मनातलं' में व्यक्त विचारों और स्त्रीवाद की भावना से प्रेरित है, जिसे सरल और अर्थपूर्ण तुकबंदी में पिरोया गया है.

1. पहला चरण
स्त्रीवाद का अर्थ, समझो ज़रा तुम,
न पुरुष से ऊँचा, न खुद से है कम।
समानता की चाह, सम्मान का गीत,
समाज की बदलें, जो रीति है विपरीत।
अर्थ: स्त्रीवाद का अर्थ समझो, यह न पुरुष से ऊपर है और न खुद से कम. यह समानता की चाह और सम्मान का गीत है, जो समाज की विपरीत रीतियों को बदलना चाहता है.

2. दूसरा चरण
कहते हैं दोनों, एक सिक्के की धार,
पर भेदभाव क्यों, हर एक दीवार?
लिंग के नाम पर, जो करते हैं भेद,
मानवता के दिल में, भरते हैं छेद।
अर्थ: कहते हैं कि स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, फिर क्यों हर जगह भेदभाव की दीवारें हैं? जो लिंग के नाम पर भेद करते हैं, वे मानवता के दिल में छेद करते हैं.

3. तीसरा चरण
लैंगिकता को क्यों, बनाते हैं शस्त्र?
गालियाँ देते क्यों, वचन हैं अपवित्र?
स्त्री का शरीर, क्यों बनता है लक्ष्य?
असंस्कार का ये, है कैसा साक्ष्य?
अर्थ: लैंगिकता को क्यों हथियार बनाते हैं? अपवित्र वचनों से गालियाँ क्यों देते हैं? स्त्री का शरीर क्यों निशाना बनता है? यह किस प्रकार के असभ्य समाज का प्रमाण है?

4. चौथा चरण
हर वाद-विवाद में, हर एक झगड़े में,
स्त्री को ही क्यों, लाते हैं आगे में?
ये किस सभ्यता का, है लक्षण बता,
जहाँ स्त्री को बस, समझा जाता सत्ता।
अर्थ: हर वाद-विवाद में, हर झगड़े में, स्त्री को ही क्यों आगे लाते हैं? यह किस सभ्यता का लक्षण है, बताओ, जहाँ स्त्री को केवल सत्ता (यानी नियंत्रित करने का माध्यम) समझा जाता है.

5. पाँचवाँ चरण
है स्त्री स्वतंत्र, है उसका अधिकार,
निज जीवन का, करे वो श्रृंगार।
न किसी की दासी, न किसी की पहचान,
वो स्वयं में पूर्ण है, वो गौरव है महान।
अर्थ: स्त्री स्वतंत्र है, उसका अधिकार है कि वह अपने जीवन का श्रृंगार स्वयं करे. वह न किसी की दासी है, न किसी की पहचान, वह स्वयं में पूर्ण है, वह महान गौरव है.

6. छठा चरण
पुरुष भी समझे, इस सत्य की बात,
समानता से ही, बनती है सौगात।
कदम से कदम मिला, जब दोनों चलें,
तब ही समाज में, सुख-शांति मिले।
अर्थ: पुरुष भी इस सत्य को समझें कि समानता से ही खुशियाँ मिलती हैं. जब दोनों कदम से कदम मिलाकर चलेंगे, तभी समाज में सुख-शांति मिलेगी.

7. सातवाँ चरण
राजू परुळेकर का, ये 'मनातलं' गहरा,
उठाता सवाल, मिटे अज्ञान का घेरा।
हो जहाँ सम्मान, प्रेम और न्याय,
वही सच्चा स्त्रीवाद, वही जीवन सुखदाय।
अर्थ: राजू परुळेकर का यह 'मनातलं' गहरा है, जो अज्ञान के घेरे को मिटाने के लिए सवाल उठाता है. जहाँ सम्मान, प्रेम और न्याय हो, वही सच्चा स्त्रीवाद है, वही जीवन सुखदायक है.

कविता का सारांश इमोजी: 💖⚖️🕊�🤝🌍✨

--अतुल परब
--दिनांक-18.07.2025-शुक्रवार.
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