क्या प्रगतिशीलों की गलतियों से हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा? - प्रा. शेषराव मोरे-1-⚖️

Started by Atul Kaviraje, July 18, 2025, 06:20:48 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

-ज्येष्ठ विचारवंत प्रा. शेषराव मोरे-

क्या प्रगतिशीलों की गलतियों से हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा? - प्रा. शेषराव मोरे के विचारों पर एक विस्तृत विवेचन-

ज्येष्ठ विचारक प्रा. शेषराव मोरे ने भारतीय समाज में हिंदू-मुस्लिम संबंधों, समान नागरिक संहिता, लोकतंत्र की प्रकृति और हिंदुत्व के उदय जैसे संवेदनशील विषयों पर कई तीखे प्रश्न उठाए हैं। उनके विचार अक्सर स्थापित धारणाओं को चुनौती देते हैं और एक नए दृष्टिकोण से इन मुद्दों को देखने के लिए प्रेरित करते हैं। आइए, उनके द्वारा उठाए गए प्रमुख प्रश्नों और उनसे जुड़े विचारों को 10 मुख्य बिंदुओं में समझते हैं।

1. हिंदू-मुस्लिम तनाव में 'प्रगतिशीलों' की भूमिका 🌉
प्रा. मोरे का एक मुख्य तर्क यह है कि भारत में हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ने में तथाकथित 'प्रगतिशीलों' (प्रोग्रेसिव्स) की कुछ नीतियों और दृष्टिकोणों का योगदान रहा है। उनका मानना है कि इन समूहों ने अल्पसंख्यकों को खुश करने की आड़ में ऐसी नीतियां अपनाईं, जिससे बहुसंख्यक समुदाय में असंतोष पनपा, और दूरियाँ कम होने के बजाय बढ़ गईं। यह एक विवादास्पद विचार है, जो भारत की धर्मनिरपेक्षता पर नए सिरे से सोचने को मजबूर करता है।

2. समान नागरिक संहिता (UCC) और मुस्लिम विरोध ⚖️
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) भारत में लंबे समय से बहस का विषय रहा है। प्रा. मोरे इस बात पर सवाल उठाते हैं कि मुस्लिम समुदाय इसका विरोध क्यों करता है? उनका तर्क है कि UCC सभी नागरिकों के लिए समान कानून सुनिश्चित करेगा, जिससे लैंगिक न्याय और सामाजिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कुछ प्रावधानों को वे आधुनिक समाज के अनुकूल नहीं मानते और उनके विरोध को तुष्टीकरण की राजनीति का परिणाम बताते हैं।

3. भारत में समान अधिकार: एक कटु सत्य? 🧐
क्या भारत में हिंदू और मुसलमानों को समान अधिकार नहीं हैं? प्रा. मोरे इस प्रश्न के माध्यम से उस धारणा को चुनौती देते हैं कि सभी नागरिक कानून की दृष्टि में समान हैं। वे मुस्लिम पर्सनल लॉ और कुछ विशेष प्रावधानों की ओर इशारा करते हैं, जो उनके अनुसार, मुसलमानों को कुछ अलग अधिकार देते हैं या उन्हें मुख्यधारा से अलग रखते हैं। यह तर्क भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और उसकी व्याख्याओं पर बहस छेड़ता है।

4. भारतीय लोकतंत्र और हिंदुओं का योगदान 🇮🇳
प्रा. मोरे यह दावा करते हैं कि भारत में लोकतंत्र हिंदुओं के कारण ही जीवित है। उनका तर्क है कि हिंदू धर्म की सहिष्णुता, विविधता को स्वीकार करने की प्रवृत्ति और 'एक ईश्वर अनेक रूप' के दर्शन ने भारतीय समाज को लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए उपजाऊ बनाया है। वे अन्य धर्मों और संस्कृतियों की तुलना में हिंदू धर्म को लोकतंत्र के लिए अधिक अनुकूल मानते हैं, यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो अक्सर बहस का केंद्र बनता है।

5. हिंदू-मुस्लिम तनाव का असली जिम्मेदार कौन? 🕵��♂️
यह एक जटिल प्रश्न है, और प्रा. मोरे इसके लिए किसी एक पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराते, बल्कि अपने विश्लेषण में उन नीतियों और दृष्टिकोणों की पड़ताल करते हैं जिन्होंने इस तनाव को बढ़ावा दिया। उनके अनुसार, यह सिर्फ धार्मिक कट्टरता का मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ, इतिहास की गलत व्याख्या और कुछ समूहों द्वारा अल्पसंख्यकों के नाम पर चलाए गए आंदोलनों का भी परिणाम है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-18.07.2025-शुक्रवार.
===========================================