क्या प्रगतिशीलों की गलतियों से हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा? - प्रा. शेषराव मोरे-2-⚖️

Started by Atul Kaviraje, July 18, 2025, 06:21:20 PM

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Atul Kaviraje

-ज्येष्ठ विचारवंत प्रा. शेषराव मोरे-

क्या प्रगतिशीलों की गलतियों से हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ा? - प्रा. शेषराव मोरे के विचारों पर एक विस्तृत विवेचन-

6. हिंदुत्व के उदय में 'प्रगतिशीलों' का योगदान 📈
प्रा. मोरे का एक और विवादास्पद बिंदु यह है कि हिंदुत्व के बढ़ते प्रभाव के लिए स्वयं 'प्रगतिशील' ही जिम्मेदार हैं। उनका तर्क है कि 'प्रगतिशीलों' ने जिस तरह से हिंदू धर्म को नकारात्मक रूप से चित्रित किया, उसकी परंपराओं का उपहास किया, और तथाकथित 'सेकुलर' एजेंडे को बढ़ावा दिया, उसने हिंदुओं को अपने धर्म और पहचान के प्रति अधिक मुखर होने के लिए प्रेरित किया। इस प्रक्रिया में हिंदुत्व एक प्रतिक्रिया के रूप में उभरा और मजबूत हुआ।

7. धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा पर पुनर्विचार 🤔
प्रा. मोरे के विचार भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल देते हैं। क्या धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सभी धर्मों से समान दूरी है, या अल्पसंख्यकों का विशेष ध्यान रखना? उनके अनुसार, भारत में धर्मनिरपेक्षता को अक्सर अल्पसंख्यक-केंद्रित नीति के रूप में व्याख्यायित किया गया, जिससे बहुसंख्यक वर्ग में अलगाव की भावना बढ़ी।

8. इतिहास की भूमिका और उसकी व्याख्या 📜
हिंदू-मुस्लिम संबंधों में इतिहास की व्याख्या एक महत्वपूर्ण कारक है। प्रा. मोरे अक्सर इतिहास के उन पहलुओं पर जोर देते हैं जो शायद मुख्यधारा के विमर्श में कम शामिल होते हैं। उनका मानना है कि इतिहास को केवल एकतरफा ढंग से प्रस्तुत करने से दोनों समुदायों के बीच की खाई और गहरी हुई है। सत्य को उसके पूरे संदर्भ में जानना आवश्यक है।

9. 'तुष्टीकरण' की राजनीति का प्रभाव 💸
प्रा. मोरे अक्सर 'तुष्टीकरण' (appeasement) की राजनीति की आलोचना करते हैं। उनका मानना है कि राजनीतिक दलों ने वोट बैंक के लिए अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधाएं दीं या उनकी गलत मांगों का समर्थन किया, जिससे समाज में विभाजन बढ़ा। यह नीति अल्पसंख्यकों को भी नुकसान पहुँचाती है, क्योंकि यह उन्हें विकास और प्रगति की मुख्यधारा से अलग कर देती है।

10. राष्ट्रीय एकता का भविष्य 🤝
इन सभी प्रश्नों के मूल में प्रा. मोरे राष्ट्रीय एकता के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। वे एक ऐसे भारत की कल्पना करते हैं जहाँ सभी नागरिक वास्तव में समान हों, जहाँ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न हो, और जहाँ सभी समुदाय सद्भाव से रह सकें। उनके विचार भले ही विवादास्पद हों, पर वे भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण संवाद को जन्म देते हैं।

सारांश इमोजी: ⚖️🇮🇳💔🤔📈🤝

यह लेख प्रा. शेषराव मोरे के विचारों को एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का प्रयास करता है, जिससे इन जटिल सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर गहरी समझ विकसित हो सके।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-18.07.2025-शुक्रवार.
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