हिंदू-मुस्लिम तेढ: कौन जिम्मेदार? - प्रा. शेषराव मोरे-⚖️🤝🇮🇳💔🤔✨

Started by Atul Kaviraje, July 18, 2025, 06:22:03 PM

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Atul Kaviraje

हिंदू-मुस्लिम तेढ: कौन जिम्मेदार? - प्रा. शेषराव मोरे के विचारों पर आधारित कविता-

यह कविता प्रा. शेषराव मोरे द्वारा उठाए गए प्रश्नों और उनके विचारों से प्रेरित है, जो भारतीय समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक सीधा और विचारोत्तेजक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

1. पहला चरण
पुरोगामियों की क्या, ये भूल थी भारी?
हिंदू-मुस्लिम में क्यों, बढ़ी है खुमारी?
जो बाँटते रहे, कभी प्यार के नाम,
आज क्यों हैं उनके, ऐसे अंजाम?
अर्थ: क्या प्रगतिशील लोगों की ये बहुत बड़ी गलती थी? हिंदू-मुस्लिम के बीच ये तनाव क्यों बढ़ा है? जो कभी प्यार के नाम पर बाँटते रहे, आज उनके ऐसे परिणाम क्यों हैं?

2. दूसरा चरण
समान नागरी कानून, सब करें विरोध,
मुस्लिम क्यों चाहें, अलग ये बोध?
क्या देश में सबको, नहीं एक है हक़?
क्यों अलग राहें, क्यों अलग ये शक?
अर्थ: समान नागरिक संहिता का सब विरोध क्यों करते हैं? मुस्लिम क्यों अलग पहचान चाहते हैं? क्या देश में सबको एक समान अधिकार नहीं हैं? क्यों अलग रास्ते, क्यों ये अलग संदेह?

3. तीसरा चरण
भारत की ये जान, लोकतंत्र की शान,
क्या हिंदुओं से ही, है इसकी पहचान?
सहनशीलता, सहअस्तित्व का पाठ,
क्या इन्हीं से चलता, ये भारत का ठाठ?
अर्थ: भारत की ये आत्मा, लोकतंत्र की शान, क्या हिंदुओं से ही इसकी पहचान है? सहनशीलता, सहअस्तित्व का पाठ, क्या इन्हीं से भारत की ये गरिमा चलती है?

4. चौथा चरण
ये हिंदू-मुस्लिम में, जो बढ़ी है तेढ़,
ज़िम्मेदार इसका, कौन है अड़ेड़?
क्या राजनीति, या इतिहास का मोल?
या मन की उलझनें, जो करती हैं खोल?
अर्थ: ये हिंदू-मुस्लिम में जो तनाव बढ़ा है, इसका हठी जिम्मेदार कौन है? क्या राजनीति, या इतिहास का मूल्य? या मन की उलझनें, जो इसे और बढ़ाती हैं?

5. पाँचवाँ चरण
हिंदुत्व का उदय, जो दिख रहा आज,
क्या 'प्रगतिशील' ही, हैं इसके सरताज?
जब नकारते रहे, धर्म को यहाँ,
तब जगी ये शक्ति, क्यों पूछें कहाँ?
अर्थ: हिंदुत्व का उदय जो आज दिख रहा है, क्या 'प्रगतिशील' ही इसके मुख्य कारण हैं? जब वे धर्म को यहाँ नकारते रहे, तब ये शक्ति क्यों जगी, अब क्यों पूछें कहाँ?

6. छठा चरण
तुष्टीकरण की नीति, लाई ये दरार,
वोटों की भूख ने, किया ये शिकार।
न कोई विजेता, न कोई है हारा,
समाज का बँटवारा, है सबको खारा।
अर्थ: तुष्टीकरण की नीति इस दरार को ले आई, वोटों की भूख ने इसे शिकार बनाया। न कोई जीता, न कोई हारा, समाज का बँटवारा सबको कड़वा लगता है।

7. सातवाँ चरण
प्रा. मोरे का चिंतन, है ये गहरी बात,
सत्य को खोजो, चाहे हो कितनी रात।
मिलकर ही पाएँगे, हम अमन का धाम,
जब न्याय हो सबको, और प्रेम का नाम।
अर्थ: प्रा. मोरे का चिंतन ये गहरी बात है, सत्य को खोजो, चाहे कितनी भी रात हो। मिलकर ही हम शांति का स्थान पाएँगे, जब सबको न्याय और प्रेम का नाम मिले।

कविता का सारांश इमोजी: ⚖️🤝🇮🇳💔🤔✨
 
--अतुल परब
--दिनांक-18.07.2025-शुक्रवार.
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