प्रेम क्या है? - अपूर्व राजपूत (कवि, गजलकार और गीतकार)-💖📜🎶🌸🗣️❤️✨

Started by Atul Kaviraje, July 19, 2025, 02:48:15 PM

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Atul Kaviraje

प्रेम क्या है? - अपूर्व राजपूत (कवि, गजलकार और गीतकार)  कविता-

यह कविता अपूर्व राजपूत के विचारों से प्रेरित है, जिसमें प्रेम की गहनता और कविता में उसकी अभिव्यक्ति को सरल और अर्थपूर्ण तुकबंदी में पिरोया गया है।

1. पहला चरण
प्रेम का नाम ले, गज़ल याद आए,
शायरी और कविता, मन को लुभाए।
पर आज भी क्या हम, कह पाते दिल से?
जो भाव उमड़ते, इन साँसों के बिल से।
अर्थ: प्रेम का नाम लेते ही गजल याद आती है, शायरी और कविता मन को आकर्षित करती है। पर क्या हम आज भी दिल से वह कह पाते हैं, जो भाव इन साँसों के भीतर से उमड़ते हैं?

2. दूसरा चरण
कवि की नज़र में, प्रेम नहीं बस बात,
ये तो है जीवन, ये दिन, ये रात।
हर कण में झाँके, हर रूप में पाए,
जो भीतर जगाता, वो गहरा भाव है।
अर्थ: कवि की नज़र में, प्रेम केवल बातें नहीं हैं, यह तो जीवन है, यह दिन और रात है। हर कण में प्रेम को झाँकना, हर रूप में उसे पाना, जो भीतर जगाता है, वह गहरा भाव है।

3. तीसरा चरण
कविता क्या है फिर, ये शब्द या मौन?
आत्मा की आहट, पहचानेगा कौन?
भावों का सागर, जब लहर ले जाए,
शब्दों की कश्ती, तब प्रेम को गाए।
अर्थ: तो फिर कविता क्या है, ये शब्द या मौन? आत्मा की आहट को कौन पहचानेगा? जब भावनाओं का सागर लहरें लेता है, तब शब्दों की कश्ती प्रेम को गाती है।

4. चौथा चरण
अहसास की गहराई, शब्दों का सिंगार,
कौन इसमें भारी, कौन है सरकार?
अपूर्वा कहे, भावना ही है प्राण,
शब्द तो लिबास है, उसकी है पहचान।
अर्थ: अहसास की गहराई और शब्दों का सिंगार, इनमें से कौन महत्वपूर्ण है, कौन स्वामी है? अपूर्व कहते हैं, भावना ही प्राण है, शब्द तो उसका लिबास हैं, उसकी पहचान हैं।

5. पाँचवाँ चरण
पुरुष का प्रेम, थोड़ा सीधा लगे,
जुनून की अग्नि में, अक्सर ये जगे।
खुले शब्दों में, वो बात कहेगा,
समर्पण का भाव, अक्सर बहेगा।
अर्थ: पुरुष का प्रेम थोड़ा सीधा लगता है, यह अक्सर जुनून की अग्नि में जागता है। वह खुले शब्दों में बात कहेगा, समर्पण का भाव अक्सर बहेगा।

6. छठा चरण
स्त्री का प्रेम, है कोमल, वो सूक्ष्म,
प्रतीकों में लिपटे, भाव हैं अदृश्य।
इशारों में कहना, आँखों से समझना,
ये विरह की पीड़ा, ये याद का थमना।
अर्थ: स्त्री का प्रेम कोमल और सूक्ष्म है, उसके भाव प्रतीकों में लिपटे हुए अदृश्य होते हैं। इशारों में कहना, आँखों से समझना, यह विरह की पीड़ा है, यह याद का ठहरना है।

7. सातवाँ चरण
पर प्रेम तो प्रेम है, न नर, न नारी,
जो दिल से उठे, वो है सब पर भारी।
राजपूत का चिंतन, यही तो है सार,
प्रेम है वो शक्ति, जो करती उद्धार।
अर्थ: पर प्रेम तो प्रेम है, न नर का है, न नारी का। जो दिल से उठे, वह सब पर भारी है। राजपूत का चिंतन यही सार है, प्रेम वह शक्ति है जो उद्धार करती है।

कविता का सारांश इमोजी: 💖📜🎶🌸🗣�❤️✨

--अतुल परब
--दिनांक-19.07.2025-शनिवार.
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