आरोग्य का अनारोग्य - राजू परुळेकर- कविता-🏥💔🤔😠💰🤐😥

Started by Atul Kaviraje, July 19, 2025, 07:24:47 PM

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Atul Kaviraje

आरोग्य का अनारोग्य - राजू परुळेकर- कविता-

कभी कहते थे, कोर्ट ना पुलिस की सीढ़ी चढ़े,
पर अब हॉस्पिटल का, नाम भी मन डरे।
परुळेकर ने बोला, यह कैसा रोग है,
स्वास्थ्य सेवा नहीं, यह तो अनारोग्य है।
अर्थ: पहले कहते थे कि कोर्ट या पुलिस स्टेशन की सीढ़ी न चढ़नी पड़े, पर अब अस्पताल का नाम सुनकर भी मन डरने लगा है। परुळेकर ने कहा है कि यह कैसा रोग है, यह स्वास्थ्य सेवा नहीं, बल्कि 'अनारोग्य' है।

मरीज का है हक, सवाल वो पूछे,
डॉक्टर भी उसको, हर बात बताए।
पर यहाँ तो जवाब है, एक ही बस 'कड़वा',
'डॉक्टर तू है या मैं?', यह कैसा गढ़वा।
अर्थ: मरीज का हक है कि वह सवाल पूछे, और डॉक्टर को भी उसे हर बात बतानी चाहिए। पर यहां तो एक ही कड़वा जवाब मिलता है, 'डॉक्टर तू है या मैं?', यह कैसा तरीका है।

मुनाफे की दौड़ में, नैतिकता गिरी,
पुण्य का यह काम, अब धन से भरी।
अनावश्यक टेस्टों का, बढ़ता है भार,
विश्वास की जगह, अब अविश्वास है यार।
अर्थ: मुनाफे की दौड़ में नैतिकता गिर गई है, यह पुण्य का काम अब धन से भर गया है। अनावश्यक टेस्टों का बोझ बढ़ रहा है, और अब विश्वास की जगह अविश्वास है।

सूचना के नाम पर, बस चुप्पी है छाती,
पारदर्शिता की कमी, हर पल है सताती।
मरीज है बेचारा, लाचार और डरा,
क्या हो रहा है उसको, ना कोई खबर।
अर्थ: सूचना के नाम पर बस चुप्पी छाई रहती है, पारदर्शिता की कमी हर पल सताती है। मरीज बेचारा लाचार और डरा हुआ है, उसे कोई खबर नहीं है कि उसके साथ क्या हो रहा है।

अहंकार में डूबे, कुछ डॉक्टर महान,
मरीज को समझते, बस एक सामान।
यह व्यवस्था नहीं, यह तो है जंगल,
जहाँ पैसा ही बोले, हर पल हर पल।
अर्थ: अहंकार में डूबे कुछ डॉक्टर महान, मरीज को बस एक सामान समझते हैं। यह व्यवस्था नहीं, यह तो एक जंगल है, जहां हर पल पैसा ही बोलता है।

सरकारी हो या निजी, हालत है वही,
मानवता का स्पर्श, अब मिलता नहीं।
रोगियों को अब तो, जागरूक होना है,
अपने अधिकारों को, उन्हें पाना है।
अर्थ: चाहे सरकारी हो या निजी, हालत वही है, मानवता का स्पर्श अब मिलता नहीं। मरीजों को अब जागरूक होना है, अपने अधिकारों को उन्हें पाना है।

राजू परुळेकर ने, खोली है आँखें,
इस 'अनारोग्य' पर, करो तुम बातें।
संवाद ही रास्ता है, पारदर्शिता की आस,
तभी तो लौटेगी, स्वास्थ्य में विश्वास।
अर्थ: राजू परुळेकर ने आँखें खोली हैं, इस 'अनारोग्य' पर बात करो। संवाद ही रास्ता है, पारदर्शिता की उम्मीद है, तभी तो स्वास्थ्य में विश्वास लौटेगा।

कविता का संक्षिप्त अर्थ
यह कविता राजू परुळेकर के 'आरोग्याचे अनारोग्य' विषय पर आधारित है। यह बताती है कि कैसे स्वास्थ्य सेवा अब व्यावसायिक हो गई है, जिससे मरीज को सवाल पूछने का अधिकार नहीं मिलता और डॉक्टर निरंकुश रवैया अपनाते हैं। कविता में नैतिकता के पतन, पारदर्शिता की कमी, अविश्वास के माहौल, और मरीज की लाचारी को उजागर किया गया है। अंत में, यह मरीज सशक्तिकरण और बेहतर संवाद के माध्यम से स्वास्थ्य व्यवस्था में विश्वास बहाल करने की आवश्यकता पर जोर देती है।

कविता के लिए प्रतीक और इमोजी

अस्पताल: 🏥 व्यवस्था का प्रतीक।

टूटा हुआ दिल: 💔 बिगड़ती हालत।

प्रश्न चिह्न: 🤔 मरीज के सवाल।

क्रोधित चेहरा: 😠 डॉक्टरों का रवैया।

पैसे का ढेर: 💰 व्यावसायिकता।

बंद मुँह: 🤐 सूचना का अभाव।

दुखी चेहरा: 😥 मरीज की पीड़ा।

कविता का इमोजी सारांश
🏥💔🤔😠💰🤐😥

--अतुल परब
--दिनांक-19.07.2025-शनिवार.
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