अशी घडे कविता असे घडे जीवन

Started by amoul, September 03, 2011, 10:39:22 AM

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amoul

" ओळ " या  रूपकातून  जीवनाची  गोष्ट  मांडण्याच्या  प्रयत्न

ना  तुटल्यात  ओळी  ना  मिटल्यात  ओळी,
फक्त  लिहिताना  काही काही  सुटल्यात  ओळी.
मी  त्या  दिव्य  ओळींना  माझेपणाचा  स्पर्श  करता,
माझ्या  अभद्र  स्पर्शाने  काही  विटल्यात  ओळी.

ती  आहे  स्वैर  आणि  तिच्याच  मनाची  राणी,
ती  ना  कुणा  जुमानी  किती  सांगितले  जरी.
तिने  धरू  पाहिले   मुठीमध्ये  आकाश,
त्या धुंदीत  काही  निसटल्यात  ओळी.

तिच्या  कल्पनेचे   जरी  आकाश  मोठे,
तरीसुद्धा  खोटे  प्रतिभेचे  पंख.
दम  भरुनी  जेव्हा  मी  शब्दांस  बसवितो,
अनार्थामुळे  काही  फसल्यात ओळी.

अविवाकाने  जेव्हा  माजावितो  दंगा,
आणि घेऊन संगा  अपवित्र  कर्मा.
उजळ  करून  माथा  फिरता  वाटेवरी,
तोंडावरी  माझ्या  काही  थुकल्यात  ओळी.

मनामध्ये  आशेची  जळणारी  दीपमाळ,
पण  निराशेचा  चाळ  वाजतो  सदा.
उदासीनतेच्या  काळोखात  पेटवता  मशाली,
कुठूनश्या  वाऱ्याने   काही  विझल्यात  ओळी.

तिला  हवे  होते  शब्दमध्ये  आकाश,
आणि  सूर्याचा   प्रकाश  अर्थासारखा.
त्या  लेखणीची  धडपड  मजेशीर  पाहून,
त्या  बाळहट्टाला  काही  हसल्यात  ओळी.

माझा  महाल  नाही,  आहे  छोटीशी  झोपडी,
चारदोन  पानांची  चोपडी  कवितेची.
माझी  ऐपत  नाही  तारका  विकत  घ्यायची,
गरीब  बापाच्या  पोरींप्रमाणे  काही  सजल्यात  ओळी.

जरी  जागा  असतो   हातात  लेखणी  घेऊन ,
स्वप्न  उराशी  ठेऊन  संपूर्ण  रात्र.
स्वप्ने  रागावतात  आणि  होतात  अबोल,
पहाटे   स्वप्न  बोलतांना  काही  निजल्यात  ओळी.

कधी  अपुराच  राहतो  संवाद   मनाशी,
हृदयाच्या  तळाशी  गप्पाही  अनेक.
वास्तवात  वाटेवरती  किती  खाचखळगे,
त्यात   मनातल्या  मनात  काही  रुसल्यात  ओळी.

आक्रोश  मुका  होता  वेदनेचा  अंतरी,
आणि  वरीवरी  शांतता  पसरलेली.
आसवांचे  पाणी  मुरले  आतल्या  आत,
त्यातून  अमृताच्या  काही  रुजल्यात  ओळी.

हि   शोकांतिका   नाही   माझ्या  कवितेची,
हि  माझ्या  आयुष्याची  वास्तविकता  आहे.
प्रत्येक  ओळ  काही  क्षणांची  आठवण   देते,
जगण्यात  जणू  काही मुरल्यात  ओळी.

......अमोल

केदार मेहेंदळे