भारत में धर्म और राजनीति का संबंध - कविता-🇮🇳⚖️💔🙏✨

Started by Atul Kaviraje, July 29, 2025, 10:16:01 PM

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Atul Kaviraje

भारत में धर्म और राजनीति का संबंध - एक कविता-

चरण 1
भारत की पावन धरती, सदियों पुरानी गाथा,
धर्म और राजनीति का, गहरा है रिश्ता।
आस्था के धागों से बुनी, हर एक पहचान,
सत्ता के गलियारों में, गूँजे धर्म का गान।
🕌🇮🇳
अर्थ: भारत की प्राचीन भूमि पर धर्म और राजनीति का संबंध बहुत पुराना और गहरा है। यहाँ हर व्यक्ति की पहचान आस्था से जुड़ी है, और सत्ता के केंद्रों में अक्सर धर्म की बातें होती हैं।

चरण 2
संविधान ने दिया है, धर्मनिरपेक्ष का पाठ,
राज करे ना कोई धर्म, सबको समान ठाठ।
पर भेद की दीवारों से, कहाँ मिली आज़ादी,
वोट बैंक की खातिर, होती अक्सर बर्बादी।
📜🗳�
अर्थ: संविधान ने हमें धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत दिया है, जिसका अर्थ है कि राज्य का कोई विशेष धर्म नहीं होगा और सभी को समान अधिकार मिलेंगे। लेकिन धर्म के नाम पर भेदभाव की दीवारें अभी भी मौजूद हैं, और अक्सर वोट पाने के लिए धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग किया जाता है, जिससे नुकसान होता है।

चरण 3
हिंदुत्व की ध्वजा, उँची उठी आज है,
राष्ट्रवाद के रंग में, घुल गया यह राज है।
बहुसंख्यक की भावना, कभी-कभी उकसाई,
अल्पसंख्यक के मन में, भय की लौ जलाई।
🚩🔥
अर्थ: आजकल हिंदुत्व की विचारधारा बहुत प्रभावशाली हो गई है और यह राष्ट्रवाद के साथ घुलमिल गई है। कभी-कभी बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को भड़काया जाता है, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय के मन में डर पैदा होता है।

चरण 4
धार्मिक संगठन भी, रखते गहरी पकड़,
नीतियों पे उनका भी, होता है कुछ अकड़।
मंदिर-मस्जिद के नाम पर, छिड़ीं कितनी जंग,
सामाजिक ताने-बाने में, भरते विषैले रंग।
🤝💔
अर्थ: धार्मिक संगठन भी राजनीति में अपनी गहरी पकड़ रखते हैं और नीतियों पर उनका प्रभाव होता है। मंदिर-मस्जिद के नाम पर कई विवाद और लड़ाइयाँ हुई हैं, जिससे समाज में ज़हर घोला गया है।

चरण 5
नेता करें भाषण में, धर्म का उपयोग,
जीतने की खातिर वे, फैलाते हैं वियोग।
सांप्रदायिक हिंसा से, दिल होते हैं चूर,
इंसानियत के रिश्ते, हो जाते हैं दूर।
🗣�😢
अर्थ: नेता अपने भाषणों में धर्म का इस्तेमाल करते हैं और चुनाव जीतने के लिए लोगों में अलगाव पैदा करते हैं। सांप्रदायिक हिंसा से लोगों के दिल टूट जाते हैं और इंसानियत के रिश्ते कमज़ोर हो जाते हैं।

चरण 6
न्यायपालिका ने भी, संभाला है मोर्चा,
धर्मनिरपेक्षता की राह, दिखाई है सोचा।
स्वतंत्रता का दीप जले, सब रहें आबाद,
ना कोई धर्म बड़ा, ना कोई बर्बाद।
⚖️✨
अर्थ: न्यायपालिका ने भी इस स्थिति को संभालने का प्रयास किया है और धर्मनिरपेक्षता का रास्ता दिखाया है। उसका मानना है कि स्वतंत्रता का दीपक जलता रहे और सभी लोग खुश रहें, कोई भी धर्म न तो बड़ा है और न ही कोई बर्बाद हो।

चरण 7
संबंध ये जटिल है, चुनौतियाँ अपार,
सद्भाव का मार्ग चुनना, है इसका सार।
आस्था रहे मन में, राजनीति रहे स्वतंत्र,
तभी बनेगा भारत, सच्चा और सुमंत्र।
🤔🌍
अर्थ: धर्म और राजनीति का यह संबंध बहुत जटिल है और इसमें कई चुनौतियाँ हैं। इसका मूल मंत्र सद्भाव का मार्ग चुनना है। जब आस्था मन में रहेगी और राजनीति स्वतंत्र होगी, तभी भारत एक सच्चा और समृद्ध देश बन पाएगा।

सारांश
यह कविता भारत में धर्म और राजनीति के जटिल संबंध को दर्शाती है। यह बताती है कि कैसे संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात करता है, फिर भी धार्मिक पहचान, हिंदुत्व और चुनावी राजनीति एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। धार्मिक संगठन और नेता, सांप्रदायिक हिंसा, और न्यायपालिका की भूमिका का भी उल्लेख है। अंत में, यह सद्भाव और धर्म और राजनीति के बीच सही संतुलन की आवश्यकता पर बल देती है। 🇮🇳⚖️💔🙏✨

--अतुल परब
--दिनांक-29.07.2025-मंगळवार.
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