भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण दिवस: त्याग, तपस्या और अहिंसा का संदेश-

Started by Atul Kaviraje, August 01, 2025, 10:48:43 AM

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Atul Kaviraje

भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण दिवस-

भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण दिवस: त्याग, तपस्या और अहिंसा का संदेश-

आज का दिन (आप चाहें तो यहाँ उचित तिथि और दिन डाल सकते हैं) जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन त्याग, तपस्या, अहिंसा और आध्यात्मिक मुक्ति के उनके महान संदेश को स्मरण करने का एक पवित्र अवसर है। भगवान पार्श्वनाथ ने लगभग 3000 साल पहले इस धरती पर जन्म लिया और अपने जीवन के माध्यम से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया। उनका निर्वाण झारखंड के सम्मेद शिखर (पारसनाथ पहाड़ी) पर हुआ था, जो जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

भगवान पार्श्वनाथ के जीवन और निर्वाण दिवस का महत्व 🙏
1. अहिंसा के प्रतीक: भगवान पार्श्वनाथ ने अहिंसा को अपने दर्शन का केंद्रीय सिद्धांत बनाया। उन्होंने "अहिंसा परमो धर्मः" के सिद्धांत को वास्तविक अर्थों में जिया और दूसरों को भी इसके पालन की प्रेरणा दी। उनका निर्वाण दिवस हमें सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्रेम के महत्व की याद दिलाता है।

2. चातुर्याम धर्म के प्रणेता: उन्होंने चार प्रमुख व्रत स्थापित किए - अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना) और अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना)। इन सिद्धांतों ने जैन धर्म की नींव रखी और नैतिकता के उच्च मानदंड स्थापित किए। महावीर स्वामी ने इसमें पाँचवाँ व्रत 'ब्रह्मचर्य' जोड़ा।

3. कर्मों के बंधन से मुक्ति: निर्वाण का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से पूर्ण मुक्ति। भगवान पार्श्वनाथ ने अपनी गहन तपस्या और ज्ञान के माध्यम से सभी कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया। उनका निर्वाण दिवस हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिक साधना के माध्यम से हम भी आत्मिक शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

4. सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र: जैन धर्म के तीन रत्न - सम्यक दर्शन (सही विश्वास), सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान), और सम्यक चरित्र (सही आचरण) - भगवान पार्श्वनाथ के उपदेशों में गहराई से निहित थे। उनका निर्वाण दिवस इन रत्नों का पालन करने की प्रेरणा देता है।

5. वैराग्य और त्याग का आदर्श: उन्होंने राजकुमार होते हुए भी सभी सांसारिक सुखों का त्याग कर कठोर तपस्या का मार्ग अपनाया। उनका जीवन हमें वैराग्य और त्याग के महत्व का पाठ पढ़ाता है, जिससे हम आंतरिक शांति और संतोष प्राप्त कर सकें।

6. क्रोध पर विजय: किंवदंती है कि उन्होंने कमठ के पूर्व जन्म के शत्रुतापूर्ण कर्मों को भी अपने तप से शांत किया। यह घटना उनके क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण और शांतिपूर्ण स्वभाव को दर्शाती है।

7. सर्प-चिह्न का महत्व: भगवान पार्श्वनाथ का प्रतीक चिह्न सर्प है, विशेष रूप से एक सर्प का फन उनके सिर के ऊपर छाया करता हुआ दिखाया जाता है। यह प्रतीक उनके अहिंसा के सिद्धांत और दूसरों की रक्षा करने की उनकी क्षमता को दर्शाता है।

8. सम्मेद शिखर का महत्व: यह वह पवित्र स्थल है जहाँ भगवान पार्श्वनाथ को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह जैन धर्मावलंबियों के लिए एक अत्यंत पूजनीय स्थान है और उनके निर्वाण दिवस पर यहाँ विशेष अनुष्ठान और प्रार्थनाएँ की जाती हैं।

9. विश्व शांति का संदेश: भगवान पार्श्वनाथ का जीवन और उपदेश केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रासंगिक हैं। उनके अहिंसा और शांति के संदेश आज के अशांत विश्व में और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं।

10. आत्म-शुद्धि का अवसर: निर्वाण दिवस केवल स्मरण का दिन नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि, चिंतन और अपने जीवन में पार्श्वनाथ के सिद्धांतों को अपनाने का एक अवसर है। यह हमें अपने भीतर झाँकने और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेरित करता है।

इस पावन अवसर पर, हम भगवान पार्श्वनाथ के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लें और एक शांतिपूर्ण, अहिंसक तथा नैतिक समाज के निर्माण में अपना योगदान दें।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-31.07.2025-गुरुवार.
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