सामाजिक समरसता और उसका महत्व-(कविता)-

Started by Atul Kaviraje, August 09, 2025, 02:24:37 PM

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Atul Kaviraje

सामाजिक समरसता और उसका महत्व-(कविता)-

१. प्रथम चरण

एक ही देश में हम सब रहते हैं,
जात-पात के बंधन क्यों सहते हैं,
इंसानियत ही है सबसे बड़ा धर्म,
आओ, हम सब मिलकर ये कहें।

अर्थ: हम सब एक ही देश में रहते हैं, फिर भी जाति-धर्म के बंधनों में क्यों फंसे हैं? इंसानियत ही हमारा सबसे बड़ा धर्म है, यह बात हम सबको मिलकर कहनी चाहिए।

२. द्वितीय चरण

मंदिर की घंटियाँ, मस्जिद की अज़ान,
एक ही हवा में गूंजे, यही है हमारी शान,
सब मिलकर बनाते हैं प्यारा हिंदुस्तान,
यही है समरसता की सही पहचान।

अर्थ: मंदिर की घंटियाँ और मस्जिद की अज़ान एक ही हवा में गूंजती हैं। हम सब मिलकर ही अपने प्यारे हिंदुस्तान को बनाते हैं, और यही सच्ची समरसता है।

३. तृतीय चरण

न कोई छोटा, न कोई बड़ा है यहाँ,
सबके दिल में हो एक ही वतन,
प्रेम और सम्मान से भरे हों हर पल,
यही है समरसता का प्यारा सा जीवन।

अर्थ: इस देश में कोई छोटा या बड़ा नहीं है। सबके दिल में अपने वतन के लिए प्रेम होना चाहिए। जब हर पल प्रेम और सम्मान से भरा हो, तभी समरसता का जीवन संभव है।

४. चतुर्थ चरण

एक ही थाली में जब सब खाते हैं,
अमीर-गरीब का भेद भूल जाते हैं,
एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ आते हैं,
तभी हम समरसता को अपनाते हैं।

अर्थ: जब हम एक साथ बैठकर खाना खाते हैं, तो अमीर-गरीब का भेद भूल जाते हैं। जब हम एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ होते हैं, तभी हम सच्ची समरसता को अपनाते हैं।

५. पंचम चरण

शिक्षा की ज्योति से दूर करें अज्ञान,
सबको मिले समान अधिकार, यही हो हमारी शान,
भेदभाव की दीवार को गिरा दें हम,
प्यार से बनाएँ एक नया विधान।

अर्थ: हमें शिक्षा की ज्योति से अज्ञान को दूर करना है और सबको समान अधिकार देना है। हमें भेदभाव की दीवार गिराकर प्यार से एक नया समाज बनाना है।

६. षष्ठम चरण

गाँव-गाँव में हो समरसता का प्रचार,
हर घर में हो प्रेम और भाईचारे का संचार,
तभी तो बढ़ेगा हमारा देश आगे,
बनेंगे हम एक मजबूत आधार।

अर्थ: गाँव-गाँव में सामाजिक समरसता का प्रचार होना चाहिए। हर घर में प्रेम और भाईचारा फैले, तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा और हम एक मजबूत राष्ट्र बनेंगे।

७. सप्तम चरण

समरसता ही है हमारी सच्ची शक्ति,
समरसता ही है हमारी सच्ची भक्ति,
मिलकर चलो, मिलकर करो तुम काम,
समरसता ही है भारत की सच्ची पहचान।

अर्थ: सामाजिक समरसता ही हमारी सच्ची शक्ति और भक्ति है। हमें मिलकर काम करना चाहिए, क्योंकि समरसता ही भारत की सच्ची पहचान है।

--अतुल परब
--दिनांक-08.08.2025-शुक्रवार.
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