पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर पुण्यतिथी- तारखेप्रमाणे-13 अगस्त-2025-

Started by Atul Kaviraje, August 14, 2025, 11:35:48 AM

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Atul Kaviraje

पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर पुण्यतिथी- तारखेप्रमाणे-

आज, 13 अगस्त को, हम पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर की पुण्यतिथि मना रहे हैं। यह दिन हमें एक ऐसी असाधारण नारी के जीवन, त्याग और अटूट भक्ति की याद दिलाता है, जिन्होंने अपने राज्य को न केवल समृद्धि की ऊँचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि धर्म और न्याय का भी परचम लहराया।

पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर: भक्ति, न्याय और त्याग की प्रतिमूर्ति-

पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर का जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गाँव में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मी अहिल्याबाई को उनके ससुर, मल्हारराव होळकर ने उनकी प्रतिभा और धार्मिक प्रवृत्ति को पहचान कर उन्हें अपने पुत्र खंडेराव की वधू बनाया।

धर्म और भक्ति का मार्ग: अहिल्याबाई के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उनकी गहरी धार्मिक आस्था थी। उन्होंने पूरे भारतवर्ष में अनेक मंदिरों, घाटों, और धर्मशालाओं का जीर्णोद्धार करवाया। काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार, और गया में विष्णु मंदिर का निर्माण उनके कुछ महान कार्य हैं। उनकी भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह उनके हर कार्य में झलकती थी। उन्होंने प्रजा को धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव का पाठ पढ़ाया।

प्रजा की सेवा में समर्पित जीवन: पति और पुत्र के असमय निधन के बाद, अहिल्याबाई ने राजपाट की बागडोर संभाली। उन्होंने अपने व्यक्तिगत दुःखों को दरकिनार कर खुद को प्रजा की सेवा में समर्पित कर दिया। उनके शासनकाल में, राज्य की जनता खुशहाल और सुरक्षित थी। उन्होंने किसानों, बुनकरों और व्यापारियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ चलाईं। वे स्वयं दरबार में बैठकर न्याय करती थीं और यह सुनिश्चित करती थीं कि किसी के साथ अन्याय न हो।

महिला सशक्तिकरण का प्रतीक: अहिल्याबाई अपने समय से बहुत आगे थीं। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा और अधिकार दिलाने के लिए भी प्रयास किए। उनका अपना जीवन ही इस बात का प्रमाण है कि एक महिला न केवल घर चला सकती है, बल्कि एक विशाल साम्राज्य का कुशल संचालन भी कर सकती है। वे सभी महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं।

शांति और न्याय का शासन: अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में युद्धों से दूर रहकर शांति और स्थिरता को प्राथमिकता दी। उन्होंने अपनी कूटनीतिक समझ से कई समस्याओं का समाधान किया। उनका मानना था कि न्याय और धर्म के मार्ग पर चलकर ही प्रजा का कल्याण संभव है। उनके शासनकाल को 'सुवर्ण युग' कहा जाता है।

अखंड भारत की संकल्पना: अहिल्याबाई ने केवल अपने राज्य तक ही सीमित न रहकर, पूरे भारतवर्ष में धार्मिक और सामाजिक कार्यों को अंजाम दिया। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में मंदिरों और जल स्रोतों का निर्माण कराया, जिससे तीर्थयात्रियों को सुविधा हो। यह उनके भीतर एक अखंड भारत की संकल्पना को दर्शाता है।

सरलता और त्याग: इतनी बड़ी शासक होने के बावजूद, अहिल्याबाई का जीवन बहुत ही सरल और त्यागपूर्ण था। वे सादे वस्त्र पहनती थीं और सादा जीवन व्यतीत करती थीं। उनका सारा जीवन जनता के हित में समर्पित था।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-13.08.2025-बुधवार.
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