भक्ति के दो पावन केंद्र: गुलाब बाबा और महर्षि नवल- कविता: दो संतों का संगम-

Started by Atul Kaviraje, August 17, 2025, 11:49:50 AM

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Atul Kaviraje

1-गुलाब बाबा यात्रा-काटेल, पुणे-

२-महर्षी नवल उत्सव-संगमवाडी-खडकी-

भक्ति के दो पावन केंद्र: गुलाब बाबा और महर्षि नवल-

हिंदी कविता: दो संतों का संगम-

(१) आज पुणे की पावन धरती पर
आज पुणे की पावन धरती पर, भक्ति का है संगम।
गुलाब बाबा की यात्रा निकली, महर्षि नवल का है उत्सव।
हर दिल में है एक ही धुन, प्रेम और भाईचारे का।
आज पुणे की पावन धरती पर, भक्ति का है संगम।
(अर्थ: इस चरण में पुणे में हो रहे दो आध्यात्मिक आयोजनों का वर्णन है, जो भक्ति और भाईचारे को बढ़ावा देते हैं।)

(२) गुलाब बाबा की यात्रा निकली
गुलाब बाबा की यात्रा निकली, फूलों की चादर बिछाई।
कंधों पर है पालकी, मन में है गहरी श्रद्धा।
सब मिलकर गाते-बजाते, बाबा की जयकार लगाते।
गुलाब बाबा की यात्रा निकली, फूलों की चादर बिछाई।
(अर्थ: यह चरण गुलाब बाबा की यात्रा का दृश्य और भक्तों की श्रद्धा का वर्णन करता है।)

(३) महर्षि नवल का उत्सव है खास
महर्षि नवल का उत्सव है खास, ज्ञान और ध्यान का है प्रकाश।
संगमवाडी और खडकी में, भक्तों का है सुंदर वास।
सत्संग में डूबते हैं, आत्म-ज्ञान की प्यास बुझाते हैं।
महर्षि नवल का उत्सव है खास, ज्ञान और ध्यान का है प्रकाश।
(अर्थ: इस चरण में महर्षि नवल उत्सव के दौरान होने वाले सत्संग और ध्यान का महत्व बताया गया है।)

(४) अलग-अलग हैं राहें
अलग-अलग हैं राहें, पर दोनों की एक ही मंज़िल है।
एक ने सिखाया प्रेम का मार्ग, दूसरे ने ज्ञान का दीपक जलाया।
दोनों ने ही कहा, दिल की सफाई ही सच्ची भक्ति है।
अलग-अलग हैं राहें, पर दोनों की एक ही मंज़िल है।
(अर्थ: यह चरण दोनों संतों के संदेशों की समानता को दर्शाता है, जो प्रेम और ज्ञान पर आधारित हैं।)

(५) फूल और ज्ञान दोनों ही
फूल और ज्ञान दोनों ही, जीवन को सुगंधित करते हैं।
एक भक्ति की खुशबू फैलाता, दूसरा मन को रोशन करता।
संतों की कृपा से ही, हम सही मार्ग पर चलते हैं।
फूल और ज्ञान दोनों ही, जीवन को सुगंधित करते हैं।
(अर्थ: इस चरण में गुलाब बाबा के फूलों के प्रतीक और महर्षि नवल के ज्ञान के प्रतीक का तुलनात्मक वर्णन है।)

(६) एकता का यह पर्व है
एकता का यह पर्व है, प्रेम का संदेश देता।
जात-पात का भेद नहीं, सब मिलकर इसे मनाते।
पुणे की यह परंपरा, सबको गले लगाती है।
एकता का यह पर्व है, प्रेम का संदेश देता।
(अर्थ: यह चरण इन आयोजनों के सामाजिक महत्व और एकता को बढ़ावा देने की भूमिका पर जोर देता है।)

(७) हम सब मिलकर करें प्रणाम
हम सब मिलकर करें प्रणाम, इन महान संतों को।
उन्होंने जो राह दिखाई, उस पर चलते रहेंगे।
हमारा जीवन बने सार्थक, यही है हमारी कामना।
हम सब मिलकर करें प्रणाम, इन महान संतों को।
(अर्थ: यह अंतिम चरण दोनों संतों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेता है।)

--अतुल परब
--दिनांक-16.08.2025-शनिवार.
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