पर्युषण पर्वIरंभ-चतुर्थी पक्ष-जैन- पर्युषण पर्व: बुधवार, २० अगस्त २०२५ से शुरू-

Started by Atul Kaviraje, August 21, 2025, 11:26:54 AM

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Atul Kaviraje

पर्युषण पर्वIरंभ-चतुर्थी पक्ष-जैन-

पर्युषण पर्व: बुधवार, २० अगस्त २०२५ से शुरू-

आज, बुधवार, २० अगस्त २०२५ को, जैन समुदाय का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व, पर्युषण पर्व का शुभारंभ हो रहा है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के चतुर्थी पक्ष से शुरू होता है। यह आठ दिनों का आत्म-शुद्धि, तपस्या और क्षमा का पर्व है। इस दौरान जैन धर्म के अनुयायी अपने मन, वचन और कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। यह पर्व हमें आंतरिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। 🙏

१. पर्युषण पर्व का अर्थ और महत्व
'पर्युषण' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: 'परि' (चारों ओर) और 'उषन' (रहना या समीप रहना)। इसका अर्थ है 'आत्मा के समीप रहना'। यह वह समय है जब जैन धर्म के अनुयायी अपनी आत्मा के करीब आते हैं, बाहरी दुनिया के प्रलोभनों से दूर रहते हैं और आत्म-चिंतन में लीन होते हैं।

आत्म-शुद्धि: इस पर्व का मुख्य उद्देश्य अपनी आत्मा को शुद्ध करना है। भक्त उपवास, ध्यान और तपस्या के माध्यम से अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण पाते हैं।

दशलक्षण धर्म: दिगंबर जैन समुदाय में यह पर्व दशलक्षण धर्म (दस उत्तम गुणों) के रूप में मनाया जाता है: उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य।

संयम और त्याग: इस दौरान लोग भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर सादा जीवन जीते हैं।

क्षमापना: पर्युषण का समापन क्षमापना दिवस (क्षमावाणी) से होता है, जब लोग "मिच्छामी दुक्कड़म्" कहकर एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं।

२. पर्व के प्रमुख १० बिंदु
उपवास और तपस्या: इस दौरान अनेक जैन अनुयायी आठ दिनों तक उपवास रखते हैं, जिसे 'अठाई' कहा जाता है। कुछ लोग इससे भी अधिक दिनों तक तपस्या करते हैं। 🧘

सामायिक: यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसमें एक निश्चित समय के लिए व्यक्ति बाहरी विचारों से मुक्त होकर एकाग्रचित्त होकर ध्यान करता है।

प्रतिक्रमण: यह पर्व के दौरान किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें व्यक्ति अपने पिछले पापों और गलतियों के लिए पश्चाताप करता है।

स्वाध्याय: इस पर्व में जैन धर्म के शास्त्रों का अध्ययन और पठन-पाठन किया जाता है, जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है। 📖

क्षमा: इस पर्व का अंतिम दिन क्षमा मांगने और देने का होता है। यह हमें सिखाता है कि क्षमा ही सबसे बड़ा धर्म है।

अहिंसा का पालन: पर्युषण के दौरान अहिंसा पर विशेष जोर दिया जाता है। लोग किसी भी जीव को हानि न पहुँचाने का संकल्प लेते हैं। 🕊�

सादा भोजन: इस दौरान लोग प्याज, लहसुन और जड़ वाली सब्जियों का सेवन नहीं करते, ताकि सूक्ष्म जीवों को भी नुकसान न पहुँचे।

मंदिरों में प्रवचन: जैन मंदिरों में धार्मिक प्रवचन और कथाएं आयोजित की जाती हैं, जिसमें जैन मुनि और साधु-साध्वी भक्तों को सही मार्ग दिखाते हैं।

आकिंचन्य धर्म: यह पर्व हमें धन-संपत्ति और भौतिक वस्तुओं से लगाव छोड़ने की सीख देता है। 💰➡️🧘

संसार त्याग की भावना: यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन अस्थायी है और हमें मोक्ष के मार्ग पर चलना चाहिए।

३. पर्युषण का संदेश
पर्युषण पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आध्यात्मिक शुद्धि में है। यह हमें प्रेम, करुणा और क्षमा का महत्व समझाता है। "मिच्छामी दुक्कड़म्" का भाव केवल शब्दों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह हमारे हृदय से आना चाहिए। यह पर्व हमें अपनी आत्मा को शुद्ध करने और एक बेहतर इंसान बनने का अवसर देता है। 🙏

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-20.08.2025-बुधवार.
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