आचार्य शांतिसागर महाराज पुण्यतिथि: कुंठलगिरी-त्याग, तपस्या और शांति का पर्व 🙏-

Started by Atul Kaviraje, August 26, 2025, 11:46:40 AM

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Atul Kaviraje

शांतीसागर महाराज पुण्यतिथी-कुंठलगिरी, पुणे-

आचार्य शांतिसागर महाराज पुण्यतिथि: त्याग, तपस्या और शांति का पर्व 🙏-

आज, सोमवार, 25 अगस्त 2025, जैन धर्म के महान दिगंबर आचार्य, शांतिसागर महाराज की पुण्यतिथि का पावन पर्व है। यह दिवस कुंथलगिरी और पुणे सहित देश भर में जैन समाज द्वारा अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ने जैन धर्म की दिगंबर परंपरा को पुनर्जीवित किया और अपने कठोर तप और त्याग से लाखों लोगों को आध्यात्मिक मार्ग दिखाया। यह लेख उनके पवित्र जीवन, शिक्षाओं और इस पुण्यतिथि के महत्व पर एक भक्तिपूर्ण विवेचन प्रस्तुत करता है।

1. परिचय और धार्मिक महत्व:
आचार्य शांतिसागर महाराज की पुण्यतिथि जैन समाज के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक दिवस है। यह न केवल उनके देह त्याग की स्मृति है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित मूल्यों और सिद्धांतों को पुनः स्मरण करने का भी एक अवसर है। इसे भक्ति और साधना के साथ मनाया जाता है।

2. दिगंबर परंपरा का पुनरुद्धार:
आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज को "आधुनिक दिगंबर परंपरा के पुनरुद्धारकर्ता" के रूप में जाना जाता है। बीसवीं शताब्दी में जब दिगंबर मुनि परंपरा लगभग समाप्त हो चुकी थी, तब उन्होंने कठोर संयम धारण कर इसे पुनर्जीवित किया और अनेक शिष्यों को दीक्षा दी।

3. जीवन और कठोर साधना:
उनका जीवन कठोर तपस्या और त्याग का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। उन्होंने वस्त्रों का त्याग कर दिगंबर दीक्षा ली और बिना किसी साधन के पैदल यात्राएं कीं। उनकी साधना में:

उपवास: वे अक्सर लंबे उपवास करते थे।

मौन: उन्होंने वर्षों तक मौन व्रत का पालन किया।

पदयात्रा: उन्होंने बिना वाहन के पूरे भारत में पदयात्रा की।

4. कुंथलगिरी का ऐतिहासिक महत्व:
कुंथलगिरी, महाराष्ट्र का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण जैन तीर्थस्थल है, जिसे "सिद्धक्षेत्र" माना जाता है। आचार्य शांतिसागर महाराज ने यहाँ पर वर्षों तक साधना की और यहीं पर अपने जीवन के अंतिम क्षणों में समाधिमरण (संथारा) लिया। यह स्थान उनकी पुण्यतिथि के उत्सव का एक प्रमुख केंद्र है।

5. पुणे का संदर्भ:
पुणे शहर में भी आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का गहरा प्रभाव है। यहाँ के जैन मंदिरों और आश्रमों में उनकी पुण्यतिथि पर विशेष धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। पुणे और आसपास के क्षेत्रों में उनकी शिक्षाओं और आदर्शों का पालन करने वाले भक्तों की एक बड़ी संख्या है।

6. उनकी शिक्षाएं और दर्शन:
आचार्य श्री ने जैन दर्शन के सिद्धांतों पर जोर दिया। उनकी मुख्य शिक्षाएं थीं:

अहिंसा: सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा और दया का पालन करना।

अपरिग्रह: अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करना, सादा जीवन जीना।

आत्म-शुद्धि: कर्मों से मुक्ति के लिए तप और ध्यान द्वारा आत्मा की शुद्धि करना।

7. पुण्यतिथि का आयोजन:
इस दिन देशभर में जैन मंदिरों और मठों में विशेष कार्यक्रम होते हैं:

नवांग पूजा: भगवान महावीर और आचार्य श्री की विशेष पूजा की जाती है।

प्रवचन: उनके जीवन और उपदेशों पर विद्वानों द्वारा प्रवचन दिए जाते हैं।

निर्वाण लाडू: उनकी स्मृति में निर्वाण लाडू चढ़ाए जाते हैं और प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं। 🍬

8. वर्तमान समय में प्रासंगिकता:
आचार्य शांतिसागर जी के सिद्धांत आज के उपभोक्तावादी और हिंसक समाज में और भी अधिक प्रासंगिक हैं। उनकी अपरिग्रह की शिक्षा हमें पर्यावरण संरक्षण और एक सरल जीवन जीने का संदेश देती है, जबकि उनकी अहिंसा की शिक्षा विश्व शांति के लिए एक मार्ग दिखाती है। 🌿

9. उदाहरण और उपदेश:

मौन का उदाहरण: एक बार एक व्यक्ति ने उनसे कुछ प्रश्न पूछे, तो उन्होंने उत्तर देने की बजाय मौन धारण किया और केवल इशारा किया कि जीवन में शांति प्राप्त करने के लिए मौन और अंतर्मुखी होना आवश्यक है।

अहिंसा: उन्होंने जीवन भर अपने और दूसरों के प्रति हिंसा से दूर रहने का उपदेश दिया।

10. संदेश और संकल्प:
आचार्य शांतिसागर जी की पुण्यतिथि हमें यह संदेश देती है कि बाहरी सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आत्म-नियंत्रण में ही सच्चा सुख है। आइए, हम इस पावन अवसर पर उनके बताए मार्ग पर चलने और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लें।

इमोजी सारांश:
🙏 आचार्य श्री शांतिसागर
💎 जैन धर्म का रत्न
🧘�♂️ तपस्या और ध्यान
🕊� शांति और अहिंसा
🌿 प्रकृति से प्रेम
🔔 धार्मिक अनुष्ठान
✨ आध्यात्मिक प्रकाश

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-25.08.2025-सोमवार.
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