भारत में संघीय ढाँचा: केंद्र-राज्य संबंधों की बदलती गतिशीलता-

Started by Atul Kaviraje, August 27, 2025, 11:33:52 AM

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Atul Kaviraje

भारत में संघीय ढाँचा: केंद्र-राज्य संबंधों की बदलती गतिशीलता-

भारत का संविधान एक संघीय ढाँचे की स्थापना करता है, जहाँ सत्ता केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विभाजित होती है। यह व्यवस्था देश की विविधता और विशालता को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों में, केंद्र-राज्य संबंधों में कई बदलाव आए हैं, जिससे संघीय ढाँचे की गतिशीलता भी प्रभावित हुई है। इस लेख में हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

१. संघीय ढाँचे का अर्थ और विशेषताएँ
अर्थ: संघीय ढाँचा एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली है जहाँ राष्ट्रीय (केंद्र) और क्षेत्रीय (राज्य) सरकारें एक ही क्षेत्र पर शासन करती हैं। दोनों के पास अपने-अपने अधिकार क्षेत्र और शक्तियाँ होती हैं।

विशेषताएँ:

दोहरी सरकार: केंद्र और राज्य स्तर पर अलग-अलग सरकारें।

शक्तियों का विभाजन: संविधान द्वारा शक्तियों को तीन सूचियों (केंद्र, राज्य और समवर्ती) में बाँटा गया है।

लिखित संविधान: संविधान सर्वोपरि होता है और शक्तियों के विभाजन को सुनिश्चित करता है।

स्वतंत्र न्यायपालिका: न्यायपालिका केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करती है।

२. संवैधानिक प्रावधान
सातवीं अनुसूची: यह सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है जो शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित करता है:

संघ सूची (Union List): इसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल हैं, जैसे रक्षा, विदेश मामले, रेलवे, और बैंकिंग।

राज्य सूची (State List): इसमें क्षेत्रीय और स्थानीय महत्व के विषय शामिल हैं, जैसे पुलिस, स्वास्थ्य, कृषि, और स्थानीय शासन।

समवर्ती सूची (Concurrent List): इसमें वे विषय शामिल हैं जिन पर दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं, जैसे शिक्षा, वन, और विवाह।

अनुच्छेद २६३: यह अंतर-राज्य परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है ताकि राज्यों के बीच समन्वय को बढ़ावा दिया जा सके।

३. केंद्र-राज्य संबंधों में बदलाव
शुरुआती दौर (१९५०-१९६७): इस समय कांग्रेस पार्टी का केंद्र और अधिकांश राज्यों में वर्चस्व था। इसलिए, केंद्र-राज्य संबंध सौहार्दपूर्ण थे, लेकिन राज्यों की स्वायत्तता सीमित थी।

बहुदलीय व्यवस्था का युग (१९६७-१९९०): इस दौर में राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें आईं, जिससे राज्यों की स्वायत्तता की माँग बढ़ी। राज्यों ने अधिक वित्तीय और विधायी शक्तियों की माँग की।

गठबंधन सरकार का युग (१९९०-२०१४): इस समय केंद्र में गठबंधन सरकारें बनीं। राज्यों ने केंद्र पर दबाव डाला और उनकी भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो गई। इस दौर में संघीय ढाँचा अधिक सहकारी और समझौता-आधारित बन गया।

वर्तमान युग (२०१४ के बाद): केंद्र में एक मजबूत बहुमत वाली सरकार है। इससे केंद्र का प्रभुत्व बढ़ा है, लेकिन जीएसटी और सहकारी संघवाद जैसी पहल भी देखी गई हैं।

४. वित्तीय संबंध
राज्यों की निर्भरता: राज्य अपनी आय के लिए काफी हद तक केंद्र पर निर्भर हैं। जीएसटी लागू होने के बाद भी, राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को लेकर चिंताएँ हैं।

वित्त आयोग: यह केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण के लिए एक संवैधानिक निकाय है।

केंद्र-प्रायोजित योजनाएँ: ये योजनाएँ केंद्र द्वारा वित्त पोषित होती हैं, लेकिन राज्यों द्वारा लागू की जाती हैं। इससे राज्यों को केंद्र के निर्देशों का पालन करना पड़ता है।

५. विधायी संबंध
समवर्ती सूची: इस सूची पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, लेकिन केंद्र का कानून राज्यों के कानून पर हावी होता है।

राज्यपाल की भूमिका: राज्यपाल केंद्र का एक प्रतिनिधि होता है। उनकी भूमिका को लेकर अक्सर विवाद होता है, खासकर जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं।

६. प्रशासनिक संबंध
अखिल भारतीय सेवाएँ: आईएएस, आईपीएस जैसी अखिल भारतीय सेवाएँ केंद्र और राज्यों दोनों के लिए काम करती हैं, जिससे प्रशासन में एकरूपता आती है।

केंद्रीय बलों का उपयोग: केंद्र सरकार राज्यों में केंद्रीय बलों को भेज सकती है, भले ही राज्य सरकार इसके लिए सहमत न हो।

७. उभरती हुई चुनौतियाँ
राजनीतिक ध्रुवीकरण: केंद्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें होने पर संबंधों में तनाव आता है।

वित्तीय असमानता: कुछ राज्यों को दूसरों की तुलना में कम वित्तीय सहायता मिलती है, जिससे असंतोष पैदा होता है।

केंद्रीय हस्तक्षेप: केंद्र सरकार कई बार राज्यों के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप करती है।

८. समाधान के प्रयास
सरकारीया आयोग: इसने केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार के लिए कई सिफारिशें दीं, जिनमें अंतर-राज्य परिषद की स्थापना भी शामिल है।

पुंछी आयोग: इसने राज्यपाल की भूमिका और वित्तीय संबंधों में सुधार के लिए सुझाव दिए।

जीएसटी परिषद: यह केंद्र और राज्यों को मिलकर कर नीतियों पर निर्णय लेने का एक मंच प्रदान करता है।

९. सहकारी संघवाद
अर्थ: सहकारी संघवाद का मतलब है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर राष्ट्र के हित में काम करती हैं।

उदाहरण: जीएसटी परिषद और नीति आयोग।

प्रतिस्पर्धी संघवाद: यह एक नई अवधारणा है जहाँ राज्य विकास के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं।

१०. निष्कर्ष
भारत में संघीय ढाँचा एक जटिल और गतिशील प्रणाली है। केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। वर्तमान में, सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है। एक मजबूत और स्थिर भारत के लिए यह आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें और एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करें।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-26.08.2025-मंगळवार..
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