दिन में बाहर का खाना-'पेट पूजा'-🍕🤝☕️✨

Started by Atul Kaviraje, September 01, 2025, 02:24:30 PM

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Atul Kaviraje

दिन में बाहर का खाना-खाना और पेय पदार्थ गतिविधियाँ, खाना-

शीर्षक: 'पेट पूजा'-

1. पहला चरण:
शहर की गलियों में,
खुशबू का है मेला।
समोसा, पकौड़ी,
और वड़ा पाव का ठेला।
अर्थ: शहर की सड़कों पर खाने की खुशबू फैली हुई है। यहाँ समोसा, पकौड़ी और वड़ा पाव जैसे स्वादिष्ट पकवानों के ठेले लगे हुए हैं। 😋

2. दूसरा चरण:
संडे हो या छुट्टी,
बाहर खाने की बात।
नए-नए स्वाद हैं,
सुबह हो या रात।
अर्थ: चाहे रविवार हो या कोई और छुट्टी, लोग बाहर खाना पसंद करते हैं। हर समय नए-नए पकवानों का स्वाद लिया जा सकता है। 🗓�

3. तीसरा चरण:
कभी चाय की चुस्की,
कभी कॉफ़ी का कप।
दोस्ती की बातें,
होंठों पर ना रुकें तब।
अर्थ: बाहर कैफे में चाय या कॉफ़ी पीते हुए दोस्तों के साथ गपशप करने का मज़ा ही कुछ और है। ☕

4. चौथा चरण:
पिज्जा हो या बर्गर,
पास्ता या है नूडल।
दुनिया भर के व्यंजन,
आजकल हैं फ़ुल-टू-फंड।
अर्थ: अब पिज्जा, बर्गर, पास्ता या नूडल्स जैसे विदेशी व्यंजन भी आसानी से उपलब्ध हैं और लोग इनका आनंद लेते हैं। 🍕🍝

5. पांचवां चरण:
पर सेहत का भी,
हमको रखना है ध्यान।
घर का खाना ही,
है सबसे महान।
अर्थ: बाहर का खाना स्वादिष्ट होता है, लेकिन हमें अपनी सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए। घर का बना खाना सबसे अच्छा और पौष्टिक होता है। 🥗

6. छठा चरण:
ज़रूरी नहीं है,
हर दिन बाहर खाएं।
कभी-कभी ही सही,
पर स्वाद ज़रूर पाएं।
अर्थ: यह ज़रूरी नहीं कि हम हर दिन बाहर ही खाएं। कभी-कभी बाहर खाना एक अच्छा अनुभव हो सकता है। 👍

7. सातवां चरण:
'पेट पूजा' तो बस,
है एक बहाना।
लोगों से मिलना,
रिश्तों को है निभाना।
अर्थ: बाहर खाने का मुख्य उद्देश्य केवल पेट भरना नहीं है, बल्कि लोगों से मिलना-जुलना और रिश्तों को मज़बूत करना भी है। 🤗

कविता का सारांश:
यह कविता बताती है कि बाहर का खाना सिर्फ़ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक अनुभव है। यह हमें नए स्वाद चखने और लोगों से जुड़ने का मौका देता है। हालांकि, हमें स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए इसका आनंद लेना चाहिए।
🍕🤝☕️✨.

--अतुल परब
--दिनांक-31.08.2025-रविवार.
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