दिगंबर- पर्युषण पर्व की समाप्ति: क्षमा और आत्म-शुद्धि का महापर्व-

Started by Atul Kaviraje, September 07, 2025, 02:22:22 PM

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Atul Kaviraje

पर्युषण पर्व समाप्ती -दिगंबर-

पर्युषण पर्व की समाप्ति: क्षमा और आत्म-शुद्धि का महापर्व-

पर्युषण पर हिंदी कविता-

चरण 1
पर्युषण पर्व हुआ समाप्त,
दस दिनों का तप और त्याग।
मन में आया निर्मल भाव,
दूर हुआ हर क्रोध, हर राग।
अर्थ: पर्युषण पर्व समाप्त हो गया है। इन दस दिनों में किए गए तप और त्याग से मन शुद्ध हो गया है। अब मन में कोई गुस्सा या द्वेष नहीं है।

चरण 2
ज्ञान की ज्योति मन में जागी,
अज्ञान का अँधेरा मिटाया।
आत्मा की शुद्धि की राह पर,
हमने अपना कदम बढ़ाया।
अर्थ: इस पर्व से ज्ञान का प्रकाश मन में आया है और अज्ञानता का अँधेरा दूर हो गया है। हमने अपनी आत्मा को शुद्ध करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाया है।

चरण 3
क्षमापना दिवस आया,
मांगा हमने सबसे प्यार।
मिच्छामि दुक्कड़म् की गूंज से,
हुआ हर रिश्ता फिर से तैयार।
अर्थ: क्षमापना दिवस आ गया है। हमने सभी से प्यार मांगा है और 'मिच्छामि दुक्कड़म्' बोलकर सभी रिश्तों को फिर से ठीक कर लिया है।

चरण 4
अहंकार को हमने त्यागा,
मन में भरी सरलता।
अहिंसा का पाठ सीखा,
जगायी मन में उदारता।
अर्थ: हमने अपने अभिमान को छोड़ दिया है और मन में सादगी भर ली है। हमने अहिंसा के सिद्धांत को समझा है और उदारता का भाव मन में जगाया है।

चरण 5
दान और तप का था महत्व,
संयम से जीवन को सजाया।
ब्रह्मचर्य और शौच का पालन,
जीवन का सार हमने पाया।
अर्थ: इस पर्व के दौरान दान और तप का विशेष महत्व था। हमने संयम से अपने जीवन को संवारा है। ब्रह्मचर्य और मन की शुद्धता का पालन करके, हमने जीवन का असली सार समझा है।

चरण 6
अब मन है हल्का-फुल्का,
न कोई द्वेष, न कोई बैर।
सबके लिए शुभ भावना,
सदा रहे मन में नेह की लहर।
अर्थ: अब मन हल्का महसूस कर रहा है, क्योंकि उसमें कोई द्वेष या दुश्मनी नहीं है। मन में हमेशा सबके लिए अच्छी भावनाएं और प्रेम की भावना बनी रहे।

चरण 7
पर्व तो पूरा हो गया,
पर यह भाव रहेगा हर पल।
क्षमा और मैत्री की राह पर,
चलते रहेंगे हम कल और आज।
अर्थ: भले ही पर्व खत्म हो गया हो, पर इसका भाव हमेशा रहेगा। हम क्षमा और मैत्री की राह पर आज और कल, हमेशा चलते रहेंगे।

--अतुल परब
--दिनांक-06.09.2025-शनिवार.
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