सार्वजनिक गणेश विसर्जन- कविता: गणेश विदाई-

Started by Atul Kaviraje, September 07, 2025, 02:23:36 PM

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Atul Kaviraje

सार्वजनिक गणेश विसर्जन-

कविता: गणेश विदाई-

1. आज विदाई का दिन आया,
गणपति बप्पा चले हैं।
ढोल-ताशे की धुन पर,
भक्तों के मन हिले हैं।

अर्थ: यह कविता गणपति विसर्जन के दिन की शुरुआत को दर्शाती है, जब ढोल-ताशे की धुन पर भक्तगण भावुक हो जाते हैं। 🎶

2. दस दिन का यह साथ था,
खुशियों की थी भरमार।
ज्ञान दिया, बाधा मिटाई,
झोली भरी हर बार।

अर्थ: इसमें बताया गया है कि 10 दिनों के इस उत्सव में गणेश जी ने भक्तों को ज्ञान दिया, उनकी बाधाएं दूर की और खुशियाँ दीं। ✨

3. घर-घर में थे आप विराजे,
भक्ति का था सागर।
मोदक खाए, आशीर्वाद दिया,
हर दिल में था उजाला।

अर्थ: इस छंद में भगवान गणेश की घर-घर में हुई स्थापना और मोदक खाने का उल्लेख है, जिससे हर घर में भक्ति का वातावरण बन गया था। 🙏

4. आँखें नम हैं, पर दिल में आशा,
फिर मिलेंगे अगले साल।
गणपति बप्पा मोरया का नारा,
गूंजेगा हर हाल।

अर्थ: यह भक्तों की मिश्रित भावनाओं को व्यक्त करता है - विदाई की उदासी और अगले साल फिर से मिलने की आशा। 👋

5. जल में मूर्ति विसर्जित होगी,
मिट्टी से बनी यह काया।
प्रकृति में मिल जाओगे तुम,
यह है माया।

अर्थ: इस छंद में विसर्जन के आध्यात्मिक अर्थ को समझाया गया है कि मूर्ति मिट्टी से बनी है और वह वापस मिट्टी में ही मिल जाएगी। 💧

6. पर्यावरण का रखना है ध्यान,
कंकड़-पत्थर दूर करना।
स्वच्छता का पाठ पढ़ाना,
और सबको जागरूक करना।

अर्थ: यह छंद हमें पर्यावरण-अनुकूल विसर्जन का संदेश देता है, जिससे जल स्रोतों को साफ रखा जा सके। 🌿

7. अब तो चलो बप्पा हमारे,
अगले साल फिर आना।
दुःख-कष्ट सब दूर कर,
हमें फिर से हँसाना।

अर्थ: यह अंतिम छंद भगवान से विनती है कि वे अगले साल फिर से आएं और सभी दुःखों को दूर कर दें। 🤗

--अतुल परब
--दिनांक-06.09.2025-शनिवार.
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