पर्युषण पर्व की समाप्ति: क्षमा और आत्म-शुद्धि का महापर्व-🙏🌟❤️

Started by Atul Kaviraje, September 07, 2025, 02:32:37 PM

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Atul Kaviraje

पर्युषण पर्व समाप्ती -दिगंबर-

पर्युषण पर्व की समाप्ति: क्षमा और आत्म-शुद्धि का महापर्व-

पर्युषण पर्व, जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में मनाया जाता है। दिगंबर जैन परंपरा में यह पर्व दस दिनों तक चलता है, जिसे दसलक्षण धर्म के नाम से जाना जाता है। इन दस दिनों में, जैन अनुयायी आत्म-चिंतन, तप, त्याग, और क्षमा के माध्यम से अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। इस वर्ष, 06 सितंबर, शनिवार को इस महान पर्व की समाप्ति हुई, जो क्षमापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन न केवल पर्व की समाप्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हमें जीवन में क्षमा और मैत्री का महत्व भी सिखाता है। 🙏✨

1. पर्युषण पर्व का महत्व
पर्युषण पर्व 'परि' (चारों ओर से) और 'उष्ण' (वास करना) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है आत्मा में निवास करना। यह आत्मा के करीब जाने, अपनी गलतियों को पहचानने और उन्हें सुधारने का समय है। यह पर्व हमें बाहरी दुनिया से हटकर आंतरिक शांति और आत्म-शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर देता है। 🕊�🧘�♀️

2. दसलक्षण धर्म: दस महागुण
दिगंबर जैन परंपरा में पर्युषण पर्व को दसलक्षण धर्म के रूप में जाना जाता है, जिसमें दस दिनों तक दस उत्कृष्ट गुणों का पालन किया जाता है। ये गुण हैं:

उत्तम क्षमा: क्रोध को त्यागना।

उत्तम मार्दव: अभिमान और अहंकार का त्याग।

उत्तम आर्जव: सरलता और निष्कपटता।

उत्तम शौच: मन, वचन, और कर्म की पवित्रता।

उत्तम सत्य: सत्य बोलना।

उत्तम संयम: इंद्रियों पर नियंत्रण।

उत्तम तप: आत्म-नियंत्रण और इच्छाओं पर विजय।

उत्तम त्याग: सांसारिक वस्तुओं का त्याग।

उत्तम आकिंचन्य: परिग्रह का त्याग।

उत्तम ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का पालन।
इन दस गुणों का पालन कर भक्त अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करते हैं। 🔟🌟

3. क्षमापना दिवस: मैत्री का प्रतीक
पर्व के अंतिम दिन, जिसे क्षमापना दिवस कहते हैं, सभी एक-दूसरे से हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और एक-दूसरे को क्षमा करते हैं। यह दिन 'मिच्छामि दुक्कड़म्' के उद्घोष के साथ मनाया जाता है, जिसका अर्थ है, "मेरे सभी दुष्ट कर्म व्यर्थ हों।" यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि हृदय से किया गया आत्म-शुद्धि का कार्य है। यह दिन हमें सिखाता है कि क्षमा करना और क्षमा मांगना दोनों ही महान गुण हैं।🤝❤️

4. भक्ति भाव और उदाहरण
पर्युषण पर्व के दौरान भक्ति का एक अनूठा भाव देखने को मिलता है। लोग मंदिर जाते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, और धार्मिक ग्रंथों का स्वाध्याय करते हैं। इस दौरान "आगम" (जैन शास्त्र) का वाचन किया जाता है और विद्वान इन शास्त्रों का सार भक्तों को समझाते हैं। भक्तजन सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं और कुछ लोग उपवास भी करते हैं, जिसे "अठाई" या "दसलक्षण तप" कहते हैं। इस भक्ति और त्याग का उद्देश्य अपनी आत्मा को संसार के विकारों से मुक्त करना है। 🙏💖

5. प्रतीक और चिन्ह
हाथ जोड़ना: यह विनम्रता और क्षमा मांगने का प्रतीक है। (🙏)

सूर्य और कमल: सूर्य ज्ञान का प्रतीक है और कमल आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है, जो कीचड़ में भी खिलता है। (☀️🌸)

जैन ध्वज: यह अहिंसा, क्षमा और शांति का प्रतीक है। (🏳�)

स्वस्तिक: यह आत्म-शुद्धि और चार गतियों से मुक्ति का प्रतीक है। (⚛️)

6. पर्युषण की समाप्ति का प्रभाव
पर्व की समाप्ति के बाद भी, इसका प्रभाव जीवन भर रहता है। क्षमा और मैत्री का भाव हमारे मन में स्थायी रूप से स्थापित हो जाता है। लोग अपने जीवन में सादगी, संयम और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास करते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि सच्ची खुशी बाहरी सुखों में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आत्म-शुद्धि में है। 😊✨

7. आत्म-चिंतन और संकल्प
पर्युषण की समाप्ति का दिन हमें यह अवसर देता है कि हम अपने द्वारा किए गए संकल्पों का पुनर्मूल्यांकन करें। क्या हम क्रोध को त्याग पाए? क्या हम अहंकार से मुक्त हुए? इन प्रश्नों का उत्तर हमें आत्म-मंथन से मिलता है। यह समय है नए और बेहतर संकल्प लेने का। 🤔✍️

8. समुदाय और एकता
यह पर्व समुदाय में एकता और सद्भाव को बढ़ाता है। सभी लोग मिलकर धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। एक-दूसरे से क्षमा मांगने और देने की परंपरा समाज में प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनाती है। 🫂💖

9. भविष्य की तैयारी
पर्युषण पर्व की समाप्ति हमें आगामी वर्ष के लिए तैयार करती है। यह हमें एक स्वच्छ मन और शुद्ध हृदय के साथ नए जीवन की शुरुआत करने के लिए प्रेरित करता है। हम अपनी गलतियों से सीखते हैं और भविष्य में उन्हें न दोहराने का संकल्प लेते हैं। 🌱➡️

10. सारांश
पर्युषण पर्व, विशेष रूप से दसलक्षण पर्व की समाप्ति, सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्म-सुधार, क्षमा, और प्रेम का एक गहन अनुभव है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में सबसे बड़ा धन हमारी आत्मा की पवित्रता और दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार है। मिच्छामि दुक्कड़म्! 🙏🌟❤️

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-06.09.2025-शनिवार.
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