षष्ठी श्राद्ध: भक्ति भावपूर्ण लेख-12 सितंबर, शुक्रवार-

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Atul Kaviraje

षष्ठी श्राद्ध-

षष्ठी श्राद्ध: भक्ति भावपूर्ण लेख-

आज, 12 सितंबर, शुक्रवार, षष्ठी श्राद्ध का पावन दिन है। यह दिन उन पूर्वजों को समर्पित है, जिनका निधन किसी भी माह की शुक्ल या कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ हो। श्राद्ध, जिसे 'तर्पण' भी कहते हैं, हमारे पितरों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण कर्म है। यह हमें हमारे उन पूर्वजों से जोड़ता है, जिन्होंने हमें यह जीवन दिया।

श्राद्ध एक ऐसा अनुष्ठान है जो हमें अपनी जड़ों की याद दिलाता है। यह सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जब हम अपने पितरों के लिए श्राद्ध करते हैं, तो हम उन्हें याद करते हैं, उनके योगदान को मानते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। यह हमें बताता है कि जीवन का चक्र कभी समाप्त नहीं होता और हमारे पूर्वज हमेशा हमारे साथ रहते हैं।

षष्ठी श्राद्ध के 10 प्रमुख बिंदु
षष्ठी श्राद्ध का अर्थ और महत्व

षष्ठी श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई हो।

यह श्राद्ध विधि विशेष रूप से उन पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए की जाती है, जो इस तिथि पर हमसे बिछड़ गए।

इसका मुख्य उद्देश्य पितरों को मोक्ष प्रदान करना और उन्हें तृप्त करना है।

श्राद्ध का आध्यात्मिक उद्देश्य

श्राद्ध का अर्थ है 'श्रद्धा से दिया गया भोजन'।

यह कर्मकांड पितरों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा में सहायता करता है।

यह परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।

श्राद्ध की तिथि का महत्व

पितृ पक्ष में प्रत्येक तिथि का अपना महत्व है। षष्ठी तिथि उन आत्माओं के लिए निर्धारित है, जो इस विशेष तिथि पर दिवंगत हुए।

मान्यता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध सीधे पितरों तक पहुँचता है और उन्हें शांति प्रदान करता है।

श्राद्ध करने की विधि

पवित्रता: श्राद्ध करने से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।

स्थान: शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें, जैसे घर का पूजा स्थल या नदी का किनारा।

सामग्री: तिल, जौ, चावल, दूध, गंगाजल, तुलसी के पत्ते और कुश (एक प्रकार की घास) का उपयोग करें।

तर्पण: जल, दूध और काले तिल मिलाकर तर्पण करें, और पितरों का नाम लें।

ब्राह्मण भोजन: एक या अधिक ब्राह्मणों को आमंत्रित करें और उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं।

कौआ, गाय और कुत्ता: श्राद्ध का भोजन निकालने के बाद कौए, गाय और कुत्ते को भी भोजन देना शुभ माना जाता है। 🐦🐄🐕

श्राद्ध का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

श्राद्ध एक तरह का मानसिक और भावनात्मक शुद्धि का कर्म है।

यह हमें अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है, जिससे मन को शांति मिलती है।

यह पीढ़ी दर पीढ़ी संबंधों को मजबूत करता है।

श्राद्ध के नियम और सावधानियां

श्राद्ध हमेशा दिन के समय ही करना चाहिए।

लहसुन और प्याज का उपयोग वर्जित है।

श्राद्ध कर्म के दौरान शांत मन और भक्ति भाव रखना आवश्यक है।

षष्ठी श्राद्ध का फल

इस श्राद्ध से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

पितरों के आशीर्वाद से जीवन में बाधाएँ दूर होती हैं।

परिवार में सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

उदाहरण: श्राद्ध की शक्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था।

इसका एक आधुनिक उदाहरण यह है कि जब कोई व्यक्ति अपने माता-पिता के निधन के बाद उनका श्राद्ध करता है, तो उसे एक गहरी भावनात्मक शांति मिलती है। यह कर्म हमें मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।

भक्ति और समर्पण का भाव

श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा धन या दिखावा नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति है।

अगर कोई व्यक्ति सभी नियमों का पालन नहीं कर पाता, तो भी वह एक गिलास जल और श्रद्धा से भरे मन से अपने पितरों को याद कर सकता है।

आज का संदेश

आज के दिन हम अपने पितरों को याद करें और उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लें।

उनका सम्मान करें और उनके मूल्यों को अपनाएं। यह ही उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। 🙏

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-12.09.2025-शुक्रवार.
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