जैक्स लाकाँ:- हिंदी कविता-

Started by Atul Kaviraje, September 13, 2025, 09:36:19 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

जैक्स लाकाँ:-

हिंदी कविता-

चरण 1:
दर्पण में अपनी छवि देखी,
एक नया रूप मैंने जाना।
यह मैं हूँ या कोई और,
मन में था एक सवाल पुराना।
अर्थ: कविता का पहला चरण दर्पण चरण की बात करता है, जहाँ व्यक्ति अपनी छवि को देखता है और स्वयं की पहचान पर सवाल उठाता है।

चरण 2:
शब्दों के जाल में फँसा,
इच्छाओं का पीछा करता रहा।
जो चाहा वो कभी न मिला,
जो मिला वो बेमानी था।
अर्थ: यह चरण दिखाता है कि कैसे हम अपनी इच्छाओं का पीछा करते हैं जो अक्सर शब्दों और सामाजिक अपेक्षाओं से प्रभावित होती हैं।

चरण 3:
काल्पनिक दुनिया में भटका,
प्रतीकों से रिश्ता जोड़ा।
सच क्या है, यह न जाना,
बस एक भ्रम को पकड़ा।
अर्थ: यहाँ कवि लाकाँ की तीन श्रेणियों को छूता है - काल्पनिक और प्रतीकात्मक दुनिया, और बताता है कि हम अक्सर भ्रम में रहते हैं।

चरण 4:
अचेतन की गहराई में,
छिपे थे कई राज़।
भाषा ने उन्हें व्यक्त किया,
पर अधूरा रह गया अंदाज़।
अर्थ: यह चरण अचेतन की भाषा जैसी संरचना को दर्शाता है, जहाँ हम कुछ कह पाते हैं पर पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाते।

चरण 5:
वास्तविक है एक रिक्त स्थान,
जहाँ शब्दों की पहुँच नहीं।
बस एक एहसास है गहरा,
जिसका कोई नाम नहीं।
अर्थ: यह अंतिम चरण 'वास्तविक' (the Real) की बात करता है, जो कि शब्दों और भाषा के परे है और जिसे पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता।

--अतुल परब
--दिनांक-13.09.2025-शनिवार.
===========================================