लेससे-फेयर: अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत 🧑‍💼- हिंदी कविता: बाजार की राह 🎶-🧑‍

Started by Atul Kaviraje, September 13, 2025, 09:41:19 PM

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Atul Kaviraje

लेससे-फेयर: अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत 🧑�💼-

हिंदी कविता: बाजार की राह 🎶-

चरण 1:
कोई नियम नहीं, कोई पहरा नहीं,
बाजार की खुली है राह।
सरकार का हाथ है पीछे,
व्यक्ति का है अपना स्वाहा।

अर्थ: यह पंक्तियाँ लेससे-फेयर सिद्धांत के मूल विचार को बताती हैं कि सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता और बाजार पूरी तरह से स्वतंत्र है।

चरण 2:
हर व्यापारी अपना सोचे,
अपनी ही तरक्की की चाह।
पर इस दौड़ में, समाज का,
जुड़ता जाता है हर एक भाग।

अर्थ: यहाँ 'अदृश्य हाथ' के विचार का वर्णन है। हर व्यक्ति अपने लाभ के लिए काम करता है, लेकिन इससे पूरे समाज का भला होता है।

चरण 3:
नवाचार की उठी है लहर,
कीमतें भी हैं कम हुई।
खुली प्रतिस्पर्धा से,
हर उपभोक्ता है जीता हुआ।

अर्थ: यह बताता है कि इस सिद्धांत के कारण नवाचार और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, जिससे वस्तुओं की कीमतें कम होती हैं और उपभोक्ताओं को फायदा होता है।

चरण 4:
पर कुछ लोगों को नहीं मिला,
शिक्षा और स्वास्थ्य का द्वार।
भेदभाव बढ़ता जाता,
अमीर और गरीब के बीच का वार।

अर्थ: यह कविता सिद्धांत के नुकसान को दर्शाती है, जहाँ सरकार की कमी से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाएं प्रभावित होती हैं और अमीर-गरीब के बीच का अंतर बढ़ता है।

चरण 5:
एक कंपनी बनी अकेली,
बाजार पर है उसका राज।
उपभोक्ता की है मजबूरी,
यह एकाधिकार का है साज।

अर्थ: यहाँ बाजार की विफलता का उदाहरण दिया गया है, जहाँ कोई एक कंपनी पूरे बाजार पर हावी हो जाती है (एकाधिकार), जिससे उपभोक्ताओं को नुकसान होता है।

चरण 6:
फिर आया एक नया विचार,
कुछ नियम तो ज़रूरी हैं।
समाज को साथ ले चलने के लिए,
संतुलन की राह ज़रूरी है।

अर्थ: यह चरण बताता है कि पूरी तरह से मुक्त बाजार काम नहीं करता, इसलिए संतुलन के लिए कुछ नियमों और सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

चरण 7:
आज मिश्रित राह है दुनिया की,
बाजार और सरकार का मेल।
न पूरा है खुला मैदान,
न पूरा है कोई जेल।

अर्थ: यह आज की दुनिया की वास्तविकता को दर्शाता है, जहाँ अधिकांश देशों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया है, जिसमें सरकार और बाजार दोनों की भूमिका होती है।

कविता सारांश: 🧑�💼🚫⚖️📈📉🤝

--अतुल परब
--दिनांक-13.09.2025-शनिवार.
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