संत बहिणाबाई पाठक पुण्यतिथी-शिऊर, तालुका-वैजापूर, जिल्हा-छत्रपती संभाजी नगर-1-

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2025, 03:03:23 PM

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Atul Kaviraje

संत बहिणाबाई पाठक पुण्यतिथी-शिऊर, तालुका-वैजापूर, जिल्हा-छत्रपती संभाजी नगर-

दिनांक: २२ सितंबर, २०२५
दिन: सोमवार

जय श्रीराम! 🙏

महाराष्ट्र की संत परंपरा में, संत बहिणाबाई पाठक का नाम अत्यंत श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है। वे न केवल एक महान कवयित्री और साधिका थीं, बल्कि एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने अपनी असाधारण भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान से समाज में एक नई चेतना जगाई। उनकी पुण्यतिथि, २२ सितंबर को, शिऊर, तालुका-वैजापूर, जिला-छत्रपती संभाजी नगर में विशेष रूप से मनाई जाती है, जहां उन्होंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बिताया था। यह दिन उनके त्याग, समर्पण और आध्यात्मिक विरासत को याद करने का है।

१. प्रस्तावना और प्रारंभिक जीवन
संत बहिणाबाई का जन्म १६२८ में देवगांव (वैजापूर के पास) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

बचपन से ही भक्ति की ओर झुकाव: बचपन से ही उनका मन भक्ति और अध्यात्म की ओर आकर्षित था। उन्होंने समाज की पारंपरिक सीमाओं को तोड़कर भक्ति का मार्ग अपनाया।

पारिवारिक जीवन: उनका विवाह कम उम्र में ही हुआ था, लेकिन उनके मन में हमेशा भगवान विठ्ठल और संत तुकाराम के प्रति अगाध श्रद्धा थी। 💖

२. गुरु का महत्व: संत तुकाराम
संत बहिणाबाई के जीवन में उनके गुरु, संत तुकाराम, का स्थान सर्वोपरि था।

स्वप्न में गुरु का दर्शन: उन्होंने अपने गुरु तुकाराम को स्वप्न में देखा और उन्हें अपना गुरु मान लिया। यह एक ऐसी घटना थी जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी।

शिष्यत्व का स्वीकार: तुकाराम ने बहिणाबाई को अपनी शिष्या के रूप में स्वीकार किया और उन्हें भक्ति का सच्चा मार्ग दिखाया। 👨�🏫

३. आध्यात्मिक यात्रा और त्याग
संत बहिणाबाई का जीवन त्याग, तपस्या और भक्ति का एक अद्भुत उदाहरण है।

सामाजिक विरोध का सामना: एक महिला होने के नाते और अपने गुरु के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा के कारण उन्हें कई बार सामाजिक विरोध और उपहास का सामना करना पड़ा।

घर-परिवार से अलगाव: उन्हें अपने परिवार से भी विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा और अपना पूरा जीवन भगवान विठ्ठल को समर्पित कर दिया। 🚶�♀️

४. शिऊर का महत्व
संत बहिणाबाई ने अपने जीवन का अंतिम समय शिऊर में बिताया, जिसने इस स्थान को एक पवित्र तीर्थ बना दिया।

शिऊर में निवास: उन्होंने शिऊर में एक कुटीर बनाई और वहीं पर अपना भक्तिमय जीवन व्यतीत किया।

पुण्यतिथि का आयोजन: हर साल उनकी पुण्यतिथि पर, शिऊर में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें महाराष्ट्र के कोने-कोने से भक्तजन आते हैं। 🙏

५. अभंग और काव्य रचनाएँ
संत बहिणाबाई अपनी काव्य रचनाओं, विशेष रूप से अभंगों के लिए प्रसिद्ध हैं।

भावपूर्ण अभंग: उनके अभंगों में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का अद्भुत संगम है। वे सरल भाषा में लिखे गए हैं, जो आम लोगों को भी आसानी से समझ में आते हैं। 📖

महिला संतों का योगदान: उनके अभंग महिला संतों के योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो समाज को आध्यात्मिकता और सशक्तिकरण का संदेश देते हैं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-22.09.2025-सोमवार.
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