सेवादास महाराज यात्रा-आष्टा, नांदेड-"सेवादास की पावन यात्रा"-

Started by Atul Kaviraje, September 27, 2025, 06:22:53 PM

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Atul Kaviraje

सेवादास महाराज यात्रा-आष्टा, नांदेड-

सेवादास महाराज यात्रा, आष्टा (नांदेड़) - भक्ति, समर्पण और समरसता का महाकुंभ-

हिंदी कविता: "सेवादास की पावन यात्रा"-

चरण (Stanza)   हिंदी कविता (Hindi Poem)   प्रत्येक चरण का हिंदी अर्थ (Short Meaning)

१   सत्ताइस सितंबर का शुभ दिन आया,   २७ सितंबर का पावन दिन आया है,
नांदेड़ में भक्ति का रंग छाया।   नांदेड़ में भक्ति का माहौल छा गया है।
आष्टा की भूमि बनी है तीर्थ,   आष्टा गाँव की धरती पवित्र तीर्थ बन गई है,
सेवादास महाराज की गाती है कीर्ति।   जो सेवादास महाराज की महिमा का गुणगान करती है।

२   नाम में छुपा है जीवन का सार,   उनके नाम (सेवादास) में ही जीवन का मूल सार छिपा है,
सेवा ही सच्चा है प्रभु का द्वार।   क्योंकि निःस्वार्थ सेवा ही ईश्वर तक पहुँचने का सच्चा मार्ग है।
त्याग, तपस्या, प्रेम की वो मूर्ति,   वे त्याग, तपस्या और प्रेम की साक्षात् प्रतिमा थे,
हर प्राणी में देखी प्रभु की पूर्ति।   और हर जीव में उन्हें ईश्वर का रूप दिखाई देता था।

३   झुंड बनाकर आते हैं भक्तजन,   हजारों की संख्या में भक्तगण समूह बनाकर आते हैं,
पालकी में विराजे सेवा के रतन।   पालकी में सेवा के रत्न, महाराज जी, विराजमान हैं।
हरिनाम का होता है अखंड जाप,   वहाँ ईश्वर के नाम का लगातार जाप होता रहता है,
दूर होते हैं मन के संताप।   जिससे मन के सभी दुःख और संताप दूर हो जाते हैं।

४   यहाँ न कोई छोटा, न कोई बड़ा,   इस यात्रा में न कोई छोटा माना जाता है, न कोई बड़ा,
सबके लिए खुला है सेवा का घड़ा।   क्योंकि सबके लिए सेवा और प्रसाद का भंडार खुला है।
प्रसाद बँटता है लाखों को रोज़,   रोजाना लाखों भक्तों में भोजन (प्रसाद) वितरित होता है,
समरसता का यह सच्चा है खोज।   यह सामाजिक समानता और एकता का सच्चा प्रमाण है।

५   हाथों से करते हैं निस्वार्थ काम,   भक्त अपने हाथों से बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते हैं,
भूखे को भोजन, लेते हरिनाम।   भूखे को भोजन कराते हैं और ईश्वर का नाम लेते हैं।
सेवा ही पूजा, सेवा ही धर्म,   सेवा ही सच्ची पूजा है और सेवा ही सच्चा धर्म है,
यही सिखाया संत ने यह मर्म।   संत सेवादास महाराज ने हमें यही गहरा रहस्य सिखाया।

६   मन की शुद्धि और ज्ञान का प्रकाश,   यह यात्रा मन की शुद्धि करती है और ज्ञान का प्रकाश फैलाती है,
हर दिल में भरता है सच्चा विश्वास।   और हर हृदय में सच्चा विश्वास भर देती है।
जाओ, सेवा करो, बनो तुम दास,   जाओ, दूसरों की सेवा करो, और स्वयं को विनम्र सेवक मानो,
तभी मिटेगा जीवन का त्रास।   तभी तुम्हारे जीवन के सारे कष्ट दूर होंगे।

७   दिवस यह महान, करे सबका कल्याण,   यह दिन बहुत महान है, यह सभी का भला करता है,
सेवाभाव से हो जग का उत्थान।   सेवा की भावना से ही दुनिया का विकास संभव है।
जय सेवादास! बोले हर कंठ,   हर गला 'जय सेवादास' का जयघोष करे,
प्रेम की बहे यहाँ अमिट पंथ।   और यहाँ प्रेम का अटूट मार्ग बहता रहे।

--अतुल परब
--दिनांक-27.09.2025-शनिवार.
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