श्री श्री लाहिड़ी महाशय जयंती: क्रियायोग के पुनरुद्धारक का आविर्भाव-1-🙏🧘‍♂️⛰️

Started by Atul Kaviraje, October 01, 2025, 12:28:28 PM

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Atul Kaviraje

श्री लाहिरी महाशय जयंती-

श्री श्री लाहिड़ी महाशय (श्यामाचरण लाहिड़ी) आधुनिक क्रियायोग के पुनरुद्धारक और एक महान योगावतार थे, जिनकी जयंती हर साल 30 सितंबर को मनाई जाती है।

श्री श्री लाहिड़ी महाशय जयंती: क्रियायोग के पुनरुद्धारक का आविर्भाव-

तिथि: ३० सितंबर, मंगलवार (वास्तविक जयंती तिथि के अनुसार)

थीम: भक्ति भाव पूर्ण, उदाहरणों सहित, चित्रात्मक वर्णन, प्रतीकों और इमोजी के साथ, संपूर्ण एवं विवेचनपरक विस्तृत लेख।

श्री श्री लाहिड़ी महाशय (१८२८-१८९५), जिन्हें 'योगावतार' के नाम से भी जाना जाता है, उस युग के एक महान संत थे जब भारत में आध्यात्मिक ज्ञान सिकुड़ता जा रहा था। उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने प्राचीन, गोपनीय क्रियायोग की साधना पद्धति को हिमालय से निकालकर, साधारण गृहस्थों तक पहुँचाया। उनकी जयंती 30 सितंबर को क्रियायोग के अनुयायियों के लिए ज्ञान और मुक्ति का एक पावन पर्व है।

१. लाहिड़ी महाशय: परिचय और आविर्भाव 🌅
१.१. जन्म और गृहस्थ जीवन: उनका जन्म ३० सितंबर, १८२८ को बंगाल के घुरणी गाँव में हुआ। उन्होंने एक साधारण गृहस्थ का जीवन जिया—विवाह किया, बच्चों का पालन-पोषण किया और सरकारी नौकरी (सैन्य इंजीनियरिंग शाखा में क्लर्क) की।

१.२. 'योगावतार' की उपाधि: उन्हें क्रियायोग के प्रसार के लिए उनके गुरु महावतार बाबाजी द्वारा 'योगावतार' की उपाधि दी गई थी, जिसका अर्थ है 'योग का अवतार'।

१.३. क्रियायोग का पुनरुद्धार: उन्होंने क्रियायोग की प्राचीन, जटिल प्रविधि को एक व्यावहारिक और संक्षिप्त रूप दिया, जिसे संन्यासी और गृहस्थ दोनों आसानी से अपना सकें।

२. महावतार बाबाजी से दिव्य पुनर्मिलन (रानीखेत) ⛰️
२.१. गाजीपुर से रानीखेत: नौकरी के सिलसिले में वे जब गाजीपुर से रानीखेत के पास हिमालय की तलहटी में थे, तब उनका पुनर्मिलन उनके पूर्व जन्म के गुरु महावतार बाबाजी से हुआ।

२.२. 'चमत्कारी' दीक्षा: बाबाजी ने उन्हें क्रियायोग की दीक्षा दी, जिसके बाद लाहिड़ी महाशय को तुरंत आत्मिक अनुभूति प्राप्त हुई। यह एक गुरु-शिष्य के शाश्वत बंधन का पुनर्जागरण था। ✨

२.३. गुरु का आदेश: बाबाजी ने उन्हें आदेश दिया कि वे हिमालय में न रहें, बल्कि गृहस्थ जीवन में लौटकर इस मुक्तिदायी क्रियायोग को योग्य साधकों तक पहुँचाएँ।

३. क्रियायोग: लाहिड़ी महाशय की सर्वश्रेष्ठ भेंट 🧘�♂️
३.१. क्रियायोग का सार: क्रियायोग राजयोग की एक वैज्ञानिक प्रविधि है, जिसमें प्राणायाम और इंद्रिय संयम के द्वारा प्राणशक्ति को मेरूदंड में ऊपर-नीचे प्रवाहित किया जाता है।

३.२. लक्ष्य: इसका उद्देश्य आध्यात्मिक विकास की गति को तीव्र करना, मन को शांत करना और आत्मा का ईश्वर से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करना है।

३.३. 'बनत, बनत, बन जाए': उनका कालातीत संदेश था: "बनत, बनत, बन जाए" (करते रहो, करते रहो, यह सिद्ध हो जाएगा), जो सतत अभ्यास की महत्ता बताता है।

४. क्रियायोग की सार्वभौमिकता और विशेषता 🤝
४.१. गृहस्थों के लिए वरदान: लाहिड़ी महाशय की प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि एक गृहस्थ मनुष्य भी अपने सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए योग के उच्चतम शिखर पर आरूढ़ हो सकता है। 👨�👩�👧�👦

४.२. भेदभावरहित: उन्होंने योग की शिक्षा देने के लिए धर्म, जाति या समुदाय को महत्व नहीं दिया। उन्होंने हर वर्ग के लोगों को क्रियायोग की दीक्षा दी।

४.३. बाइबिल और गीता का समन्वय: लाहिड़ी महाशय अक्सर ईसाई धर्म और सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों के बीच की एकता को समझाते थे।

५. लाहिड़ी महाशय का विनम्र जीवन 🌹
५.१. सादगी: चमत्कारिक शक्तियों के बावजूद वे अत्यंत विनम्र और साधारण जीवन जीते थे। वह कभी स्वयं को गुरु नहीं कहते थे।

५.२. आसन और दर्शन: वह वाराणसी में अपने घर के एक छोटे से कमरे में बैठते थे, जहाँ कोई भी उन्हें मिल सकता था। वे प्रायः परम चेतना की समाधि अवस्था में रहते थे।

५.३. त्याग और कर्तव्य: उन्होंने सिखाया कि सच्चा त्याग बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होता है—अर्थात् संसार में रहते हुए अनासक्त रहना।

इमोजी सारansh (Emoji Summary):
🙏🧘�♂️⛰️🏡✨📖 - क्रियायोग के पुनरुद्धारक, विनम्र गृहस्थ योगी, लाहिड़ी महाशय को वंदन।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-30.09.2025-मंगळवार. 
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