कृष्ण और अर्जुन की परम मित्रता:-परम सखा, पार्थ और माधव-

Started by Atul Kaviraje, October 02, 2025, 11:01:34 AM

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Atul Kaviraje

कृष्ण और अर्जुन की परम मित्रता: एक दिव्य, भक्तिपूर्ण संबंध! 🙏-

हिंदी कविता: परम सखा, पार्थ और माधव-

चरण 1: रथ पर दो परम सखा
कुरुक्षेत्र की भूमि पर, गूँजा शंखनाद,
रथ पर खड़े थे दो सखा, टल न सका विवाद।
एक था माधव (कृष्ण), दूजा पार्थ (अर्जुन) धनुर्धारी,
दो शरीर, पर एक प्राण, लीला अति न्यारी।
अर्थ: महाभारत के युद्ध मैदान में, एक रथ पर श्रीकृष्ण और अर्जुन खड़े थे। वे दिखने में दो थे, पर उनके प्राण एक थे, उनकी लीला अनोखी थी। 🏹

चरण 2: सारथी का समर्पण
जग के स्वामी, बने थे अर्जुन के सारथी,
थामी लगाम, निभाई सेवा की आरती।
अहंकार तज, सखा धर्म निभाया पूरा,
प्रेम और भक्ति का, बंधन अनुपम, न अधूरा।
अर्थ: सम्पूर्ण जगत के स्वामी श्रीकृष्ण, अर्जुन के रथ के सारथी बने। उन्होंने अहंकार छोड़कर मित्र का धर्म पूरी तरह निभाया। यह प्रेम और भक्ति का अद्भुत बंधन है। 🐴

चरण 3: मोह का पल और गीता-ज्ञान
जब अर्जुन ने देखा अपनों को, मन डोला,
मोह में फँस, धर्मयुद्ध करने से बोला।
तब गुरु-रूप में कृष्ण ने, दिया परम उपदेश,
कहा, "कर्म कर, फल की चिंता का कर दे क्लेश।"
अर्थ: जब अर्जुन ने सामने अपने संबंधियों को देखा, तो वह दुविधा में पड़ गया और युद्ध से मुँह मोड़ा। तब गुरु बनकर श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया, कि फल की चिंता किए बिना कर्म करना ही धर्म है। 💡

चरण 4: विश्वरूप की गाथा
विनती कर, माँगा जब दिव्य रूप का ज्ञान,
दिखाया विश्वरूप, हुआ भय से कंपित प्राण।
क्षण भर में भूला सखा भाव, की शरणागति,
तुम ही ब्रह्म, तुम ही सत्य, तुम ही मेरी गति।
अर्थ: अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट विश्वरूप दिखाया। इसे देखकर अर्जुन भयभीत हो गए और उन्होंने मित्र भाव छोड़कर भगवान के चरणों में शरणागति स्वीकार की। 🌌

चरण 5: निस्वार्थ चयन
सेना को तजकर, चुना था केवल नारायण,
अर्जुन का यह प्रेम, हुआ स्वयं को समर्पण।
जहाँ कृष्ण वहाँ विजय, यह था अटल विश्वास,
सच्ची मित्रता में, नहीं कोई लोभ की आस।
अर्थ: अर्जुन ने कृष्ण की सेना को छोड़कर केवल श्रीकृष्ण को चुना था। उनका यह विश्वास था कि जहाँ भगवान हैं, वहीं विजय है। सच्ची दोस्ती में किसी लाभ की आशा नहीं होती। 💖

चरण 6: विपदा में साथ और रक्षण
विपदा में भी, कृष्ण ने छोड़ा न पल भर साथ,
हर संकट से बचाया, थामे रखा हाथ।
रथ पर बैठकर, झेला हर अस्त्र का आघात,
सारथी ने रक्षित किया, अपने मित्र का गात।
अर्थ: श्रीकृष्ण ने हर विपत्ति में अर्जुन का साथ दिया और उनकी रक्षा की। सारथी बनकर उन्होंने रथ पर आने वाले हर वार को सहा, जिससे अर्जुन सुरक्षित रहे। 🛡�

चरण 7: प्रेम का शाश्वत संदेश
ये मित्रता केवल दो मनुष्यों की नहीं,
ये नर और नारायण की अमर कहानी।
हर युग को देती ये, प्रेम और कर्तव्य का ज्ञान,
कृष्ण-अर्जुन की दोस्ती, जग में है महान।
अर्थ: यह मित्रता केवल दो लोगों के बीच का रिश्ता नहीं है, बल्कि आत्मा (नर) और परमात्मा (नारायण) की शाश्वत कथा है, जो युगों तक प्रेम और कर्तव्य का संदेश देती रहेगी। ✨

--अतुल परब
--दिनांक-01.10.2025-बुधवार.
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