🙏 बुद्ध का परिनिर्वाण: एक ऐतिहासिक और भक्तिपूर्ण परिप्रेक्ष्य ☸️-1-

Started by Atul Kaviraje, October 02, 2025, 03:59:37 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

बुद्ध का परिनिर्वाण: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-
(Buddha's Parinirvana: A Historical Perspective)
Buddha's Parinirvana: A Historical View-

🙏 बुद्ध का परिनिर्वाण: एक ऐतिहासिक और भक्तिपूर्ण परिप्रेक्ष्य ☸️-

गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण बौद्ध धर्म के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और श्रद्धापूर्ण घटनाओं में से एक है। यह केवल एक महापुरुष का भौतिक अंत नहीं, बल्कि दुःख के चक्र से पूर्ण मुक्ति और परम शांति की अवस्था में प्रवेश है। आइए, इस ऐतिहासिक घटना का भक्ति भावपूर्ण विस्तृत विवेचन करें।

बुद्ध का परिनिर्वाण: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Buddha's Parinirvana: A Historical Perspective)
"अरोग्या परमा लाभा संतुष्टि परमं धनम् विस्साम परमाजाति निव्वाणं परमं सुखम्।" - धम्मपद
(स्वास्थ्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम संबंधी है, और निर्वाण परम सुख है।)

1. परिनिर्वाण का अर्थ और महत्व ✨
1.1. अर्थ की व्याख्या:

'परिनिर्वाण' (Parinirvana) का शाब्दिक अर्थ है 'पूर्ण निर्वाण' या 'अंतिम मुक्ति'। यह वह अवस्था है जब एक अर्हत (Arhat) या बुद्ध (Buddha) भौतिक शरीर त्याग कर जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र (संसार) से स्थायी रूप से मुक्त हो जाता है।

निर्वाण (Nirvana) ज्ञान प्राप्ति के समय (बोधि वृक्ष के नीचे) प्राप्त होता है, जो दुःख और क्लेशों का नाश है, जबकि महापरिनिर्वाण (Mahaparinirvana) शारीरिक मृत्यु के साथ उस निर्वाण की अंतिम और पूर्ण अभिव्यक्ति है।

भक्ति भाव: यह शोक का नहीं, बल्कि मुक्ति की उपलब्धि का दिन है। यह दर्शाता है कि मानव भी प्रयास से परम शांति पा सकता है। 🕊�

1.2. बौद्ध धर्म में स्थान:

यह बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं (जन्म, ज्ञान प्राप्ति, प्रथम उपदेश और महापरिनिर्वाण) में से एक है, जिसे बौद्ध अनुयायी अत्यंत श्रद्धा से मनाते हैं।

यह अस्थिरता (अनित्य - Impermanence) के सिद्धांत की अंतिम पुष्टि है—स्वयं बुद्ध का शरीर भी नश्वर था। 🍂

1.3. प्रतीकात्मकता:

यह घटना बुद्ध की शिक्षाओं की सार्वभौमिकता और सत्य को प्रमाणित करती है।

2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (समय और स्थान) 🗺�
2.1. तिथि का निर्धारण:

परंपरागत रूप से, बुद्ध का महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व के आसपास माना जाता है, जब उनकी आयु लगभग 80 वर्ष थी।

यह वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) को हुआ, जो उनके जन्म और ज्ञान प्राप्ति की तिथि भी है। 🌕

2.2. घटना स्थल: कुशीनगर:

यह घटना प्राचीन भारत के मल्ल गणराज्य की राजधानी कुशीनगर (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में हिरण्यवती नदी के तट पर हुई थी।

बुद्ध ने अपने अंतिम क्षणों में दो शाल वृक्षों के बीच दाहिनी करवट लेटकर विश्राम किया। 🌳🌳

2.3. अंतिम यात्रा:

महापरिनिर्वाण से पूर्व, बुद्ध ने राजगृह से वैशाली तक और फिर पावा होते हुए कुशीनगर तक अपनी अंतिम यात्रा की, भिक्षुओं और गृहस्थों को उपदेश देते रहे।

3. अंतिम भोजन और रुग्णता 🍲
3.1. चुंद का भोजन:

पावा में, बुद्ध ने चुंद (Cunda) नामक एक लोहार द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण किया।

ग्रंथों के अनुसार, यह भोजन (सूकरमद्दव) शायद एक विशेष प्रकार का मशरूम या खाद्य पदार्थ था, जिसे खाने के बाद बुद्ध गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। 🤢

3.2. बुद्ध की करुणा:

बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद से कहा कि वे चुंद को यह न बताएं कि बीमारी उस भोजन के कारण हुई थी, ताकि उसे दुःख न हो।

बुद्ध ने कहा कि चुंद का दान (अंतिम दान) और सुजाता का दान (ज्ञान प्राप्ति से पहले का दान) समान रूप से पुण्यशाली हैं। यह उनकी असीम करुणा (करुणा - Compassion) को दर्शाता है। 🙏

3.3. आनंद को दिलासा:

बीमारी की गंभीरता को देखकर शिष्य आनंद व्यथित हो गए, लेकिन बुद्ध ने उन्हें सांत्वना दी और धर्म के प्रकाश पर भरोसा रखने को कहा।

4. अंतिम उपदेश (अप्प दीपो भव) 💡
4.1. अंतिम संदेश:

कुशीनगर पहुँचकर, जब बुद्ध अत्यंत कमजोर थे, तब उन्होंने भिक्षुओं को अपना अंतिम और महत्वपूर्ण उपदेश दिया:

"विहारथ आनन्द, अप्पमादेन सम्पदेथ" - (सभी संस्कृत पदार्थ नश्वर हैं, अप्रमाद के साथ अपना कल्याण करो।)

अप्प दीपो भव (Ap Dipō Bhava) - (स्वयं के लिए प्रकाश बनो।) 🕯�

4.2. धर्म पर बल:

बुद्ध ने कहा कि उनके जाने के बाद धर्म (Dharma) और विनय (Vinaya - नियम) ही उनके गुरु और मार्गदर्शक होंगे।

उन्होंने किसी व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया, जिससे शिक्षाओं पर केंद्रित रहने का संदेश दिया गया।

4.3. सुभद्द का रूपांतरण:

अपने अंतिम क्षणों में भी, बुद्ध ने सुभद्द (Subhadda) नामक एक परिव्राजक (साधक) को उपदेश दिया, जिसने तत्काल अर्हत पद प्राप्त किया और इस तरह, वह बुद्ध का अंतिम शिष्य बना। 🎓

5. महापरिनिर्वाण की घटना 🧘�♂️
5.1. अंतिम विश्राम:

बुद्ध ने दो शाल वृक्षों के बीच अपनी दाहिनी करवट लेटी हुई मुद्रा (परिनिर्वाण मुद्रा) अपनाई, जिसका मुख उत्तर दिशा की ओर था। 🌳🌳

यह मुद्रा कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में प्रतिष्ठित विशाल मूर्ति में देखी जाती है।

5.2. ध्यान की अवस्था:

वे क्रमिक ध्यान की अवस्थाओं (झाना) से गुज़रे, जिससे उनका मन पूर्णतः शांत और एकाग्र हो गया।

यह अनासक्ति (Detachment) और वैराग्य (Renunciation) का चरम उदाहरण था।

5.3. महाप्रयाण:

बुद्ध ने चौथे ध्यान से उठकर और नीचे न आकर, अपनी भौतिक देह का त्याग कर दिया और महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए।

ग्रंथों के अनुसार, उस क्षण पृथ्वी कांप उठी और अलौकिक सुगंधित पुष्पों की वर्षा हुई। 🌸🌍

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-01.10.2025-बुधवार.
===========================================